क्या उत्तर प्रदेश के हाथी रखते हैं, प्राचीन विलुप्त जीव – वूली मैमथ से संबंध?

मानव : 40000 ई.पू. से 10000 ई.पू.
17-08-2024 09:39 AM
Post Viewership from Post Date to 17- Sep-2024 (31st Day)
City Readerships (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
1910 111 0 2021
* Please see metrics definition on bottom of this page.
क्या उत्तर प्रदेश के हाथी रखते हैं, प्राचीन विलुप्त जीव – वूली मैमथ से संबंध?
2020 में, उत्तर प्रदेश के तीन पशु अभयारण्य – दुधवा व अमानगढ़ बाघ अभयारण्य और शिवालिक वन प्रभाग में की गई हाथियों की जनगणना के अनुसार, हमारे राज्य में हाथियों की संख्या, 2017 में 232 से बढ़कर, 352 हो गई है। आज, पृथ्वी पर हाथियों की तीन जीवित प्रजातियां पाई जाती हैं: एशियाई हाथी, अफ़्रीकी वन हाथी और अफ़्रीकी सवाना हाथी। ये हाथी, उन स्तनधारियों के वंशज हैं, जो लाखों साल पहले पृथ्वी पर रहते थे। वूली मैमथ(Woolly mammoth), इनके सबसे प्रसिद्ध पूर्वजों में से एक हैं । जीवाश्म विज्ञान में प्रगति के साथ, आज इन विलुप्त प्रजातियों और उनके जीवित रिश्तेदारों के बीच मौजूद संबंधों को समझने का कार्य पहले की तुलना में आसान हो गया है। तो आइए, आज पुराजैविकी(Paleobiology) के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं। हम वूली मैमथ तथा उनकी विलुप्ति के कारणों पर भी चर्चा करेंगे। आगे, हम रूस के रैंगल द्वीप पर एक नज़र डालेंगे, जो इस जीव के विलुप्त होने से पहले, उनका आखिरी शरणस्थल था। वास्तव में, जीवाश्म विज्ञान(Palaeontology), जानवरों और पौधों के जीवाश्मों का अध्ययन है। जबकि, पुराजैविकी, जीवाश्म विज्ञान की एक शाखा है, जो जीवाश्म जीवों के जीव विज्ञान का अध्ययन है। जीवाश्म विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान के तरीकों और निष्कर्षों को, पृथ्वी जीवाश्म विज्ञान (जीवाश्मों के आधार पर, पृथ्वी पर मौजूद वर्तमान जीवन का अध्ययन) के साथ जोड़ती है। यह अध्ययन, हमें लाखों वर्ष पुराने जीवाश्मों के आधार पर, जीवन के इतिहास के बारे में उल्लेखित सवालों के जवाब देने, और इसे समझने के लिए जीवों के वर्तमान ज्ञान को लागू करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, साइबेरियाई स्थानीय लोगों(Siberian locals) द्वारा खोजे गए, वूली मैमथ – दीमा(Dima), ल्यूबा(Lyuba) और युका(Yuka) के संरक्षित अवशेष, इस विलुप्त स्तनपायी की गहरी समझ के लिए वैज्ञानिकों को सौंप दिए गए थे। युका अब तक पाए गए वूली मैमथ के सबसे अच्छे संरक्षित नमूनों में से एक है | अधिकांश जीवाश्म, इतनी अच्छी स्थिति में नहीं पाए गए हैं। इसलिए, जीवाश्म विज्ञानियों को जीवों की हड्डियों के केवल कुछ टुकड़ों से निष्कर्ष निकालने के लिए विकास की लंबी अवधि का अध्ययन करना पड़ता है।
वूली मैमथ, लगभग 3,00,000 साल पहले से लेकर लगभग 10,000 साल पहले तक, यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका के ठंडे टुंड्रा(Tundra) प्रदेशों में रहते थे। लेकिन, इनका अंतिम ज्ञात समूह लगभग 1,650 वर्ष ईसा पूर्व तक जीवित था। ये जानवर, झाड़ियों और घास जैसे भोजन के लिए, बर्फ़ के नीचे खुदाई करने हेतु , अपने 15 फ़ुट लंबे दांतों का उपयोग करके इन पौधों पर चरते थे। वूली मैमथ संभवतः आज के अफ़्रीकी हाथियों के आकार के, अर्थात लगभग 13 फ़ीट लंबे थे। लेकिन, इन मैमथ के कान बहुत छोटे होते थे, जो उन्हें अपने शरीर की गर्मी को खोने से बचाते थे। उनका शरीर, रोंए या महीन बालों की दो परतों से भी ढंका हुआ था। बालों की बाहरी परत, 20 इंच लंबी हो सकती थी, और मैमथ को माइनस 58 डिग्री फ़ारेनहाइट(Fahrenheit) तक के तापमान में भी, गर्म बने रहने में मदद करती थी।
यहां प्रश्न यह उठता है कि, वूली मैमथ विलुप्त क्यों हो गए? दरअसल, एक व्यापक रूप से स्वीकृत सिद्धांत यह है कि, आग एवं भाला, हुक और जाल जैसे उपकरणों के विकास ने, मनुष्यों को बड़े शिकारी बनने में मदद की, जिससे मैमथ, ग्राउंड स्लॉथ(Ground sloths), गैंडा और अन्य स्तनधारी विलुप्त हो गए। हालांकि, कुछ शोधकर्ता जलवायु परिवर्तन, आवास हानि और बीमारी के प्रकोप को भी, इनकी विलुप्ति के संभावित कारण मानते हैं।
जलवायु परिवर्तन की गर्म प्रवृत्ति के कारण, वनस्पतियों में बदलाव आया। इसलिए, जब गर्म जलवायु के कारण, आर्कटिक टुंड्रा(Arctic tundra) में वनस्पति के आखिरी हिस्से गायब हो गए, तो इस पर भोजन के लिए निर्भर रहने वाले मैमथ भी गायब हो गए। वास्तव में, रैंगल द्वीप (Wrangel Island), साइबेरिया के तट से, 80 मील उत्तर में स्थित एक भूभाग है। वहां, वूली मैमथ, हज़ारों वर्षों तक जीवित रहे थे। एक तथ्य यह है कि, जब मिस्र में महान पिरामिड (Great Pyramids) बनाए गए थे, तब भी वे जीवित थे। जब 4,000 साल पहले रैंगल द्वीप के मैमथ गायब हो गए, तो ये मैमथ हमेशा के लिए विलुप्त हो गए।
साथ ही, वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि, इस द्वीप पर मैमथ की आबादी, लगभग 10,000 वर्षों पहले, 10 से भी कम हाथियों से बने एक छोटे झुंड द्वारा स्थापित थी। यह झुंड, 6,000 वर्षों तक जीवित था, लेकिन, इसके मैमथ, कई आनुवंशिक विकारों से पीड़ित थे।
किसी भी जानवर के जीनोम(Genome) से, उसकी आबादी के बारे में, भारी मात्रा में जानकारी प्राप्त होती है। बड़ी आबादी में ऐसी आनुवंशिक विविधता बहुत अधिक होती है। परिणामस्वरूप, एक जानवर को अपने माता-पिता से, कई जीनों(Genes) के विभिन्न संस्करण विरासत में मिलेंगे। हालांकि, एक छोटी आबादी में, जानवर, कई जीनों की समान प्रतियां प्राप्त करके, सहज बन जाएंगे। इसी बात को सही ठहराते हुए, रैंगल द्वीप के सबसे पुराने जीवाश्मों में, कई जीनों के समान संस्करण मौजूद हैं।
परिणामस्वरूप, मैमथों को संभवतः उच्च स्तर की वंशानुगत बीमारियां झेलनी पड़ीं। फिर भी, ये बीमार मैमथ सैकड़ों पीढ़ियों तक जीवित रहने में कामयाब रहे, क्योंकि, उनका कोई शिकारी या प्रतिस्पर्धी नहीं था। परंतु, अंततः वे विलुप्त हो गए।


संदर्भ
https://tinyurl.com/324cpuxn
https://tinyurl.com/4u82zrpf
https://tinyurl.com/3ejz7bma
https://tinyurl.com/2upekkfr


चित्र संदर्भ

1. वूली मैमथ को संदर्भित करता एक चित्रण (pixabay)
2. वूली मैमथ के काल्पनिक जीवाश्म को संदर्भित करता एक चित्रण (pixabay)
3. मैमथ के रेखाचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (pixabay)
4. विमिनेशियम के खंडहरों के पास मिले स्टेपी मैमथ के अवशेष को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)


Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.

D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.

E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.