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जुड़वा या तिड़वा बच्चे लाखों में से इक्के-दुक्के ही पैदा होते हैं जिसका कारण पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है।
मुख्य रूप से दो प्रकार के गुणक हैं: मोनोज़ायगोटिक (Monozygotic) या डायज़ायगोटिक (Dizygotic)। डायज़ायगोटिक गुणक तब होते हैं जब एक से अधिक निषेचित अंडे एक भ्रूण बन जाते हैं तथा मोनोज़ायगोटिक गुणांक तब होते हैं जब अंडे निषेचन के बाद विभाजित होते हैं, जिसका अर्थ है कि गुणक एक ही डीएनए साझा करते हैं। वैज्ञानिकों को वास्तव में समझ में नहीं आ पाया है कि निषेचित अंडे इस बिंदु पर युग्मन कैसे करते हैं। दो अलग-अलग अंडों का निषेचन अक्सर दो अलग-अलग शुक्राणु के रूप में नहीं होता है। समान ट्रिपलेट्स होने के लिए, युग्मन को दो बार विभाजित करने की जरूरत है, जो कि और भी दुर्लभ है। और सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि- एक-दूसरे से अलग दिखने वाले या मोनोज़ायगोटिक या बिल्कुल एक से दिखने वाले जुड़वा या डायज़ाइगॉटिक।
मोनोज़ायगोटिक जुड़वा बच्चों का निर्माण तब होता है जब एक अंडे से किसी शुक्राणु द्वारा निषेचन किया जाता है लेकिन दो एम्ब्रीओ का निर्माण होता है। इस तरह जन्म लेने वाले जुड़वा बच्चों की आनुवांशिक संरचना एक ही होती है। जबकि डायज़ाइगॉटिक जुड़वा बच्चे तब बनते हैं जब दो अलग शुक्राणु दो अंडों को निषेचित करते हैं और दो अलग दिखने वाले बच्चे पैदा होते हैं। ऐसे बच्चों की आनुवांशिक संरचना अलग होती है।
जुड़वा बच्चे कई बार आनुवांशिक कारणों से भी होते हैं जिसका सीधा अर्थ है कि यदि परिवार में कभी जुड़वा बच्चे पैदा हुए हैं तो जुड़वा बच्चे पैदा होने की संभावना में भी वृद्धि हो जाती है।