लखनऊ की गलियों का शर्मीला रहस्य: छुई-मुई पौधे का रहस्य और उसका अनोखा स्वभाव

व्यवहारिक
22-08-2025 09:27 AM
लखनऊ की गलियों का शर्मीला रहस्य: छुई-मुई पौधे का रहस्य और उसका अनोखा स्वभाव

लखनऊवासियों, हमारी नवाबी तहज़ीब और समृद्ध संस्कृति जितनी अद्भुत है, उतनी ही खास है हमारे शहर की प्रकृति और हरियाली। इस शहर की गलियों में घूमते हुए या अपने घर के आँगन, किसी पार्क या पुराने बाग़-बगीचों में आपने ज़रूर एक छोटा-सा, नाजुक पौधा देखा होगा, जिसकी पत्तियाँ बस हल्के से छूते ही जैसे शरमा कर सिकुड़ जाती हैं और कुछ ही देर बाद फिर से खुलकर हवा के साथ हौले-हौले लहराने लगती हैं। यह अद्भुत पौधा है छुई-मुई, जिसे लोग प्यार से लज्जावती भी कहते हैं। पहली नज़र में यह एक साधारण सा पौधा लगता है, लेकिन इसका यह व्यवहार हमेशा बच्चों में जिज्ञासा और बड़े-बुजुर्गों में हैरानी पैदा कर देता है। लखनऊ की गलियों, मोहल्लों के आँगनों, पुराने हेरिटेज (heritage) बागानों और गोमती नदी किनारे की नमी भरी मिट्टी में यह पौधा अक्सर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। जैसे हमारे शहर की तहज़ीब में संकोच और नफ़ासत बसी हुई है, वैसे ही यह छोटा सा पौधा भी अपने भीतर एक शर्मीलापन और नाजुक एहसास समेटे खड़ा मिलता है। बच्चों के लिए यह किसी खेल का हिस्सा बन जाता है, पत्तियों को छूते ही उनका झट से मुड़ जाना उन्हें हँसी और हैरानी दोनों देता है, और बड़ों के लिए यह प्रकृति का ऐसा छोटा सा करिश्मा है जो सोचने पर मजबूर कर देता है कि प्रकृति कितनी संवेदनशील और रहस्यमयी हो सकती है।
इस लेख में हम छुई-मुई पौधे के रहस्यमय स्वभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि यह पौधा क्या है और कैसे इसका व्यवहार इसे अन्य पौधों से अलग बनाता है। फिर, हम समझेंगे कि जब इसे छुआ जाता है तो इसकी पत्तियाँ सिकुड़ क्यों जाती हैं और इसके पीछे क्या वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है। आगे, हम पढ़ेंगे कि निक्टिनैस्टी (nyctinasty) जैसी जैविक गतिविधियाँ कैसे पौधों की आंतरिक घड़ी को नियंत्रित करती हैं। इसके बाद, हम देखेंगे कि इस प्रतिक्रिया का उद्देश्य क्या है और यह पौधे को क्या लाभ देती है। अंत में, हम उन अन्य पौधों के उदाहरण भी जानेंगे जो इस प्रकार की अनोखी प्रक्रिया को प्रदर्शित करते हैं।

छुई-मुई पौधे का परिचय और इसका अनोखा स्वभाव
आपने बचपन में या अब तक कभी न कभी किसी बगीचे, पार्क या गमले में एक छोटे, नाजुक और हरे पौधे को जरूर देखा होगा, जिसे छूते ही उसकी पत्तियाँ अचानक सिकुड़कर बंद हो जाती हैं। यही है छुई-मुई, जिसे लज्जावती भी कहा जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम मिमोसा पुडिका (Mimosa pudica) है। मूल रूप से यह पौधा दक्षिण अमेरिका का निवासी है, लेकिन आज यह भारत के कई हिस्सों में आमतौर पर दिख जाता है। गुलाबी और बैंगनी रंग के छोटे-छोटे फूलों वाला यह पौधा बच्चों के बीच उत्सुकता और खेल का कारण बनता है। मोहल्लों की गलियों, पुराने बागों और नमी वाली जमीनों में यह पौधा अक्सर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। इसका यह अनोखा व्यवहार, यानी छूते ही पत्तियों का सिकुड़ना, बच्चों और बड़ों दोनों को मोहित करता है। यह पौधा हमें प्रकृति की जटिलता और उसकी संवेदनशीलता का एक सुंदर उदाहरण देता है, मानो यह हमारे आसपास चुपचाप खड़ा होकर हमें प्रकृति से जोड़ रहा हो।

File:Mimosa Pudica.gif

पत्तियों के सिकुड़ने का वैज्ञानिक कारण: ओस्मोसिस और पोटैशियम आयन की भूमिका
जब आप छुई-मुई की पत्तियों को हल्के से छूते हैं, तो यह ऐसा लगता है जैसे वह डर गई हो और अपनी पत्तियों को बंद कर ली हो। इस दिलचस्प प्रतिक्रिया के पीछे एक बेहद अद्भुत वैज्ञानिक कारण है। जैसे ही पत्तियों को छुआ जाता है, पत्तियों के आधार पर मौजूद कोशिकाओं में पोटैशियम (potassium) आयनों की मात्रा तेजी से घट जाती है। इस बदलाव की वजह से ओस्मोसिस (osmosis) नामक प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिसमें कोशिकाओं का पानी बाहर निकल जाता है। पानी की कमी होते ही पत्तियाँ सिकुड़कर मुड़ जाती हैं। यह पौधे का स्वाभाविक सुरक्षा तंत्र है, ताकि कोई कीट या जानवर उससे दूर हो जाए। देखने में यह मजेदार लगता है, लेकिन हर बार ऐसा होने पर पौधे को अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करना पड़ता है। बच्चे इसे अक्सर खेल-खेल में छूते रहते हैं, पर असल में यह पौधे की रक्षा के लिए बनी एक रणनीति है, जो प्रकृति के सूक्ष्म रहस्यों को समझने का मौका देती है।

निक्तिनैस्टी (Nyctinasty): पौधों की जैविक घड़ी और गति का रहस्य
छुई-मुई केवल छूने पर ही नहीं, बल्कि समय और रोशनी के हिसाब से भी अपना रूप बदलता है। रात होते ही इसकी पत्तियाँ अपने आप बंद हो जाती हैं और जैसे ही सुबह की पहली किरण पड़ती है, वे फिर से खुल जाती हैं। इस अद्भुत स्वभाव को विज्ञान की भाषा में "निक्तिनैस्टी" कहा जाता है। यह प्रतिक्रिया पत्तियों के डंठल के पास स्थित एक विशेष अंग "पल्विनस" (Pulvinus) की वजह से होती है। पल्विनस में मौजूद मोटर कोशिकाएँ पानी और आयनों की हलचल को नियंत्रित करती हैं, जिससे पत्तियाँ खुलती और बंद होती हैं। इस प्राकृतिक घड़ी को समझने के लिए चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) और अन्य वैज्ञानिकों ने गहराई से अध्ययन किया। बगीचों या पार्कों में सुबह-सुबह टहलते हुए आप खुद देख सकते हैं कि कैसे यह छोटा सा पौधा हर रोज समय का पालन करता है। यह मानो पौधे और समय के बीच छुपी हुई एक लय है, जो हमें प्रकृति के अदृश्य नियमों का एहसास कराती है।

छुई-मुई और अन्य पौधों में इस व्यवहार का उद्देश्य और लाभ
अब यह सवाल उठता है कि पौधे को अपनी पत्तियाँ सिकोड़ने या रात में बंद करने की जरूरत क्यों होती है? इसका सबसे बड़ा कारण सुरक्षा और अनुकूलन है। जब कोई कीड़ा या जानवर पत्तियों को छूता है, तो अचानक सिकुड़ने वाली यह प्रतिक्रिया उसे चौंका देती है और वह पौधे को नुकसान पहुँचाने से रुक जाता है। रात में पत्तियाँ बंद करके पौधा अपने भीतर की नमी को सुरक्षित रखता है और ठंडी हवाओं से खुद को बचाता है। यह क्रिया पौधे को ऊर्जा बचाने में मदद करती है और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को संतुलित रखती है। इस तरह यह पौधा कीटों, जानवरों और अन्य प्राकृतिक चुनौतियों से खुद को सुरक्षित करता है। ऐसा लगता है मानो यह नन्हा सा पौधा कह रहा हो, “मैं छोटा हूँ, लेकिन अपनी सुरक्षा करना जानता हूँ।” यह हमें सिखाता है कि हर छोटे जीव में भी जीने और बचाव करने का स्वाभाविक ज्ञान होता है।

दुनिया के अन्य निक्टिनैस्टिक पौधे और उनका प्राकृतिक महत्व
छुई-मुई अकेला ऐसा पौधा नहीं है, जो समय या स्पर्श के अनुसार प्रतिक्रिया करता है। दुनिया में कई पौधे इसी तरह का स्वभाव दिखाते हैं। मटर, लोबिया, तिपतिया घास जैसे फलियों वाले पौधे और गुलबहार, कमल, मॉर्निंग ग्लोरी (morning glory), ट्यूलिप (tulip) जैसे फूलों वाले पौधे भी समय और रोशनी के अनुसार अपनी पत्तियाँ या फूल खोलते और बंद करते हैं। इन पौधों का यह स्वभाव उन्हें मौसम और कीटों की चुनौतियों से बचाता है। अगर आप अपने बगीचे में ऐसे पौधे लगाते हैं, तो आप न केवल सुंदरता और हरियाली का आनंद लेंगे, बल्कि प्रकृति के इस अद्भुत रहस्य को करीब से देखने का मौका भी पाएँगे। बच्चों के लिए यह पौधे प्रकृति को समझने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने का एक मजेदार माध्यम भी बन सकते हैं।

 

संदर्भ-
https://shorturl.at/jDwZ3 
https://shorturl.at/2BXz8 

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