कैसे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, लखनऊ के छात्रों को रटने से सीखने की ओर प्रेरित कर रही है?

ध्वनि II - भाषाएँ
18-11-2025 09:18 AM
कैसे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, लखनऊ के छात्रों को रटने से सीखने की ओर प्रेरित कर रही है?

भारत की शिक्षा व्यवस्था एक ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। 2020 में लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy - NEP 2020) ने देश की पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में नई ऊर्जा भर दी है। इस नीति का मुख्य उद्देश्य है - बच्चों को रटने के बजाय सीखने, समझने और सोचने की ओर प्रेरित करना। यूनेस्को (UNESCO) और यूनिसेफ (UNICEF) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि जब बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं, तो वे अधिक प्रभावी ढंग से सीखते हैं और उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। यही कारण है कि यह नीति न केवल पाठ्यक्रम के ढांचे को बदलती है, बल्कि शिक्षा के मूल उद्देश्य को भी परिभाषित करती है - “ज्ञान का प्रसार नहीं, बल्कि समझ का विकास।” इस नीति का प्रभाव अब स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक देखा जा रहा है, जहाँ छात्रों को अपने रुचि और क्षमता के अनुसार सीखने की स्वतंत्रता दी जा रही है।
आज के इस लेख में हम समझेंगे किराष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य और महत्व क्या है, और यह शिक्षा को अधिक समावेशी, लचीला और कौशल-आधारित कैसे बना रही है। फिर हम जानेंगे कि नई शिक्षा संरचना 5+3+3+4 मॉडल किस तरह पुरानी 10+2 प्रणाली को बदल रही है। इसके बाद, हम मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा के महत्व पर चर्चा करेंगे, जो इस नीति की सबसे बड़ी विशेषता है। साथ ही, हम त्रिभाषा नीति (Three Language Policy) को विस्तार से समझेंगे - यह कैसे बहुभाषावाद को बढ़ावा देकर देश की एकता को सशक्त बनाती है। इसके अलावा, हम देखेंगे कि किस प्रकार तकनीकी और डिजिटल शिक्षा के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हर कोने तक पहुँच रही है। अंत में, हम इस नीति के लाभों को समझेंगे, जो छात्रों में रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और “सीखने की संस्कृति” को बढ़ावा दे रहे हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) का उद्देश्य और महत्व
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य केवल पाठ्यपुस्तक पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि बच्चों को जीवन के लिए तैयार करना है। यह नीति पारंपरिक रटने की शिक्षा पद्धति को पीछे छोड़, समग्र और बहुआयामी शिक्षा पर जोर देती है। इसका मतलब है कि छात्र केवल विषयों को याद न करें, बल्कि उनकी रचनात्मक सोच, समस्या-समाधान की क्षमता, सामाजिक और नैतिक समझ, और वैश्विक दृष्टिकोण विकसित हो।
नीति इस बात को सुनिश्चित करती है कि छात्र अपने रुचि के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करें और साथ ही व्यावहारिक कौशल सीखें। उदाहरण के लिए, विज्ञान के साथ-साथ उन्हें संगीत, कला, खेल, और व्यवसायिक कौशल भी सिखाए जाएंगे। इससे वे केवल परीक्षा पास करने वाले छात्र नहीं रहेंगे, बल्कि समाज में जिम्मेदार और सक्षम नागरिक बनेंगे। इस नीति के माध्यम से यह संदेश भी जाता है कि शिक्षा का असली उद्देश्य ज्ञान का संग्रह नहीं, बल्कि समझ और जीवन में उसका सही उपयोग है।

नई शिक्षा संरचना – 5+3+3+4 मॉडल
एनईपी 2020 ने पारंपरिक 10+2 मॉडल की जगह 5+3+3+4 शिक्षा संरचना लागू की है, जो छात्रों की उम्र और उनकी सीखने की क्षमता के अनुसार अनुकूलित है। इस नई प्रणाली में बच्चों को चार मुख्य चरणों में विभाजित किया गया है:

  • फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) (3-8 वर्ष): इस उम्र में बच्चे सीखने की मूलभूत क्षमता विकसित करते हैं। एनईपी के अनुसार, इस चरण में शिक्षा खेल और गतिविधि-आधारित होनी चाहिए। इसे “खेल-खेल में सीखना” कहा जा सकता है। बच्चों का ध्यान छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स, चित्रकारी, कहानियों और इंटरैक्टिव (interactive) गतिविधियों में लगाया जाता है।
  • प्रिपरेटरी स्टेज (8-11 वर्ष): इस चरण में बच्चों को खोजपरक और इंटरैक्टिव शिक्षादी जाती है। इसका उद्देश्य उनके तार्किक सोच और संज्ञानात्मक क्षमता को बढ़ाना है। उदाहरण के लिए, विज्ञान प्रयोग और सामूहिक गतिविधियों के माध्यम से सीखना।
  • मिडिल स्टेज (11-14 वर्ष): इस चरण में विषय-आधारित पढ़ाई पर ध्यान दिया जाता है। बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान और सैद्धांतिक ज्ञान का संतुलन सिखाया जाता है।
  • सेकेंडरी स्टेज (14-18 वर्ष): यह गहन विषय अध्ययन और कौशल विकास का चरण है। छात्र इस समय अपनी रुचि के अनुसार विशेषज्ञता हासिल करने वाले विषयों का चयन कर सकते हैं और व्यावसायिक कौशल सीख सकते हैं।

यह संरचना बच्चों की प्राकृतिक जिज्ञासा को बढ़ावा देती है और उन्हें धीरे-धीरे जटिल विषयों और विचारों की ओर तैयार करती है, जिससे सीखना न केवल आसान बल्कि रोचक भी बन जाता है।

मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा का महत्व
एनईपी 2020 के अनुसार, बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाना उनकी शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यूनेस्को और यूनिसेफ के शोध भी बताते हैं कि बच्चे जब अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करते हैं, तो उनकी सोचने-समझने की क्षमता, स्मरण शक्ति और समस्या हल करने की क्षमता काफी बढ़ जाती है। मातृभाषा में शिक्षा केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है। यह बच्चों को अपनी संस्कृति और पहचान से जोड़ती है। इससे बच्चे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं और उनमें सांस्कृतिक संवेदनशीलता विकसित होती है। यह नीति खासकर भारत जैसे बहुभाषी देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शिक्षा को सभी के लिए समावेशी और समझने योग्य बनाती है।

त्रिभाषा नीति (Three Language Policy) और उसका प्रभाव
त्रिभाषा नीति का मुख्य उद्देश्य छात्रों को बहुभाषावाद और राष्ट्रीय एकता की भावना देना है। इसके तहत छात्र तीन भाषाएँ सीखते हैं:

  1. भारतीय मूल भाषा (हिंदी या अन्य)
  2. क्षेत्रीय भाषा (जैसे तमिल, बंगाली, मराठी)
  3. अंग्रेज़ी

हिंदी भाषी राज्यों में तीसरी भाषा गैर-हिंदी भारतीय भाषा होती है, जबकि गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी तीसरी भाषा होती है। इससे छात्रों को न केवल भाषाई दक्षता मिलती है, बल्कि वे भारत की सांस्कृतिक विविधता और लोकप्रियता की गहराई को भी समझते हैं। अंग्रेज़ी के माध्यम से छात्र वैश्विक स्तर पर संवाद और प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होते हैं। इस नीति से बच्चों में सामाजिक समझ, सांस्कृतिक संवेदनशीलता और वैश्विक जागरूकता बढ़ती है।

तकनीकी और डिजिटल शिक्षा का समावेश
एनईपी 2020 में शिक्षा को डिजिटल माध्यम से जोड़ना भी प्रमुख पहल है। पीएम ईविद्या (PM eVidya), दीक्षा (DIKSHA) और स्वयं (SWAYAM) जैसे माध्यमों से छात्र अब कहीं भी, कभी भी आध्यात्मिक पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। यह डिजिटल शिक्षा ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में भी शिक्षार्थियों तक पहुँच रही है। इन प्लेटफ़ॉर्म्स (platforms) से छात्र ऑनलाइन कोर्स (online course), वीडियो लेक्चर (video lecture) और मल्टीमॉडल (multimodal) सामग्री का लाभ उठा सकते हैं। महामारी के दौरान, इस तकनीकी और डिजिटल शिक्षा ने छात्रों की शिक्षा में निरंतरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी बच्चा पीछे न रहे, चाहे वह शहर में हो या गांव में।

नई नीति के छात्रों के लिए लाभ
एनईपी 2020 बच्चों को केवल परीक्षा पास करने वाला छात्र नहीं, बल्कि जीवन में सक्षम, रचनात्मक और आत्मविश्वासी व्यक्ति बनाती है। इसके माध्यम से छात्र सिर्फ़ अकादमिक ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक और जीवन कौशल भी सीखते हैं।

  • उनकी रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच बढ़ती है।
  • विभिन्न भाषाओं में संवाद करने की क्षमता विकसित होती है।
  • डिजिटल शिक्षा के माध्यम से तकनीकी दक्षता आती है।
  • व्यावसायिक और कौशल आधारित शिक्षा से छात्रों को रोज़गार और करियर के लिए तैयार किया जाता है।

इस तरह, नई शिक्षा नीति केवल शिक्षा प्रणाली का सुधार नहीं है, बल्कि यह भारत की अगली पीढ़ी को एक मजबूत, सक्षम और वैश्विक रूप से तैयार नागरिक बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/26jalfny 
https://tinyurl.com/22y249a3 
https://tinyurl.com/29d4fmxx 
https://tinyurl.com/2c9beay6 
https://tinyurl.com/4r6ayj5c 



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