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भारतीय इतिहास में कई बदलाव विभिन्न समयों पर देखने को मिलते हैं और यहाँ पर अनेकों वंशों का शासन रहा है। विभिन्न राजवंशों को यदि हम देखें तो मौर्य, कुषाण, सातवाहन, गुप्त, चोल, चालुक्य, प्रतिहार आदि प्रमुख राजवंशों में से थे। लखनऊ विभिन्न समय पर अलग-अलग राजवंशों के प्रभाव में रहा था। मौर्य काल के दौर में यह मौर्य साम्राज्य का अंग बना और बाद में कुषाणों के साम्राज्य का। गुप्तों के उदय के दौरान यह गुप्त साम्राज्य के अधिकार क्षेत्र में आ गया। गुप्तों का काल 319 ईसवी से 550 ईसवी तक रहा।
गुप्तों के पतन के बाद यह भूखंड कई छोटे साम्राज्यों के अंतर्गत रहा परन्तु 7वीं शताब्दी के दौरान उत्तरभारत का सबसे शक्तिशाली वंश का उदय हुआ। यह वंश था गुर्जर प्रतिहार राजवंश। गुर्जर प्रतिहार राजवंश की स्थापना नागभट्ट ने 725 ईसवी में की थी। कई मत के अनुसार यह राजवंश लक्ष्मण के वंशजों द्वारा बसाया गया था। ग्वालियर से प्राप्त एक अभिलेख में इस राजवंश के उदय का विवरण प्रस्तुत किया गया है। अपने चरमकाल में गुर्जर प्रतिहार राजवंश हिमालय की तराई से लेकर बंगाल, असम और सौराष्ट्र तक फैला हुआ था। प्रतिहार राजवंश के सबसे प्रतापी राजा मिहिर भोज थे जिनके कई अभिलेख भारत के विभिन्न भागों से हमें प्राप्त होते हैं। चित्र में मध्य प्रदेश की उदयगिरी गुफा में स्थापित विष्णु के वराह अवतार को दर्शाया गया है और साथ ही साथ गुर्जर प्रतिहार राजा मिहिर भोज द्वारा जारी किया गया सिक्का भी दर्शाया गया है। क्योंकि राजा मिहिर भोज भगवान विष्णु के भक्त थे इसलिए उनके सिक्कों पर यह प्रतिमा गढ़ी जाती थी। गुर्जर प्रतिहार राजाओं के शासन काल में अनेकों बार बाहरी हमले हुए जिनसे इन्होने भारत को बचाए रखा था।
उत्तरभारत में इस काल में अनेकों मंदिरों का निर्माण कार्य किया गया था। कई मंदिरों के अवशेष लखनऊ और आस-पास के इलाकों में भी प्राप्त होते हैं। प्रतिहारों के काल में ही कन्नौज का महत्वपूर्ण त्रेकोनात्मक संघर्ष हुआ था। इस संघर्ष में बंगाल का पाल वंश, दक्षिण के राष्ट्रकूट और प्रतिहार शामिल थे। गुर्जर प्रतिहार वंश ने ही गुजरात के सोमनाथ मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था। कन्नौज इस वंश का शक्ति श्रोत था। 11वीं शताब्दी में इस राजवंश का पतन हो गया। लखनऊ संग्रहालय में इस काल से जुड़ी अनेकों मूर्तियाँ रखी गयी हैं जो कि लखनऊ व आस-पास के क्षेत्रों से लायी गयी हैं। प्रतिहारों का काल मात्र शक्ति या वास्तु के अनुरूप ही उत्तम नहीं था अपितु शिक्षा, कला, धर्म, दर्शन आदि के भी दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण था।
1. द वकाटक गुप्त एज, आर सी मजूमदार, ए एस अल्तेकर
2. अर्ली इंडिया, रोमिला थापर
3. प्राचीन भारत का इतिहास भाग 1-2, के सी श्रीवास्तव