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आजकल अक्सर सुनने में आता है कि एंटीबायोटिक (Antibiotic) दवाएं असर नहीं कर रही हैं, जबकि यही दवाई पहले सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध होती थी, तो ऐसा क्या हो रहा जो समान दवाई समान बीमारी पर कोई प्रभाव नहीं डाल रही हैं। इस तथ्य को गहनता से समझने के लिए हमें सबसे पहले समझना होगा इसके प्रमुख कारक के विषय में अर्थात जीवाणु के विषय में। यह एककोशिकीय जीव प्रकृति में सर्वत्र पाया जाता है जिनमें से कुछ लाभदायक होते हैं तो कुछ रोग जनक।
रोगजनक जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं बनाई जाती हैं, किंतु कुछ समय से यह प्रभावी नहीं हो रही हैं। इन समस्याओं को देखते हुए वैज्ञानिकों ने जीवाणुओं की कोशिका का अध्ययन करना प्रारंभ किया जिसे ज्ञात हुआ किे ये जीवाणु स्वयं को इन एंटीबायोटिक दवाएं के प्रतिरोधी के रूप में तैयार कर रहे हैं, ये अपने डीएनए को इस प्रकार विकसित कर रहे हैं जिससे इनके शरीर की कोशिका जीवाणुनाशक दवाओं को शरीर में प्रवेश ही ना करने दे या उन्हें शरीर से निष्कासित कर दें। साथ ही जीवाणुनाशक दवाओं को इनकी आकृति के अनुसार तैयार किया जाता है, अतः इससे बचने के लिए यह जीवाणु अपनी आकृति में परिवर्तन कर देते हैं या इनकी कोशिकाएं प्रतिक्रिया करना बंद कर देती हैं तथा लम्बे समय के लिए निष्क्रिय हो जाती हैं, जिसे "स्लिपर सैल" (Sleeper Cell) या परसिस्टर्स (Persisters) जीवाणु कहा जाता है, जिनकी खोज 1944 में की गयी थी। जैसे ही जीवाणुनाशक दवाओं का उपयोग बंद किया जाता है, तो ये परसिस्टर्स पुनः सक्रिय हो जाते हैं, एक नवीनतम शोध से ज्ञात हुआ है कि जब परसिस्टर्स शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाओं में छिपे होते हैं, उस दौरान ये हमारे प्रतिरक्षा तंत्र का अभिन्न अंग मैक्रोफ्गेस(macrophages) की मारक क्षमता को कम कर देते हैं, साथ ही जीवाणुनाशक दवाओं को बंद करने के बाद ये हमारे शरीर में अन्य घातक रोग भी उत्पन्न कर सकते हैं।
परसिस्टर्स प्रमुखतः सूक्ष्म जीवाणुओं को जीवाणुनाशक दवाओं से बचाने के लिए अस्थाई रूप से सक्रिय होते हैं। इनकी कोई विशेष प्रजाति नहीं है, इन्हीं के प्रभाव के कारण तपेदिक जैसी बीमारियां सही होने में लम्बा समय ले लेती हैं। स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Swiss Federal Institute of Technology) के यूइची वेकमोटो और नीरज धर ने परसिस्टर्स की इस धारणा पर प्रश्न उठाया कि ये बढ़ते नहीं है या बहुत धीमी गति से बढ़ते हैं, इनके द्वारा किये गये अध्ययन से ज्ञात हुआ कि तपेदिक के लिए माइकोबैक्टेरियम स्मेग्मैटिस (Mycobacterium smegmatis) उत्तरदायी हैं तथा परसिस्टर्स बढ़ते हैं किंतु ये सामन दर पर मरते भी हैं, इसलिए इनकी आबादी के लिए भ्रम उत्पन्न हो जाता है। किंतु वैज्ञानिकों का मानना है कि परसिस्टर्स की वास्तविक जीवन प्रणाली के विषय में अभी हमें ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं हुयी हैं। हालांकि वैज्ञानिक अब जीवाणुओं के विरूद्ध अपनी रणनीति बदलने का प्रयास कर रहे हैं, वे खोज कर रहे हैं कि किस प्रकार हमारे प्रतिरक्षा तंत्र में उपस्थित परसिस्टर्स को समाप्त किया जाए।
डॉ हेलैन बताते हैं कि: "परसिस्टर्स पहले की तुलना में हमारे प्रतिरक्षा तंत्र पर अधिक गहरा प्रभाव डाल रहे हैं, फिर भी वे जीवाणु की संभावित कमजोरी को प्रकट कर देते हैं। परसिस्टर्स का उपचार करना मुश्किल होता है, क्योंकि वे एंटीबायोटिक्स के लिए अदृश्य होते हैं, लेकिन परसिस्टर्स की हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कमजोर करने की प्रक्रिया के दौरान इन्हें समाप्त किया जा सकता है। हम संभावित रूप के इनकी कार्यप्रणाली को लक्षित कर कुशलतापूर्वक इनके संक्रमण का उपचार कर सकते हैं।"
संदर्भ :
1. https://www.nationalgeographic.com/science/phenomena/2013/01/03/sleeper-cells-the-secret-lives-of-invincible-bacteria/