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                                            भारत एक अत्यंत ही विशाल और विविधिता से भरा हुआ देश है जहाँ पर विभिन्न प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं। वर्तमान विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जहाँ पर बाघों की संख्या अन्य देशों से कहीं अधिक है। यहाँ पर विभिन्न जंगलों आदि का निर्माण किया गया है और कई जंगलों आदि को संरक्षित किया गया है। इन जंगलों में यदि देखा जाए तो पन्ना, जिम कॉर्बेट (Jim Corbett), बांधवगढ़ आदि प्रमुख हैं। जिस प्रकार से भारत की जनसँख्या बढ़ रही है, उस अनुसार यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण बिंदु हो जाता है कि जंगलों आदि की ओर मनुष्यों को जाने से रोका जाए। मनुष्यों की बढ़ती हुयी आबादी एक महत्वपूर्ण बिंदु है जिसने भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में जंगलों की कटाई का कार्य किया है।
औद्योगिक क्रान्ति का इतिहास किसी से छिपा नहीं है। यह वह दौर था जब नदियों आदि के रास्ते से जंगलों की लकड़ी को नियत स्थान पर भेजा जाता था। कृषि के लिए भी एक बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई हुयी है। मनुष्यों ने मज़े या आनंद के लिए भी बहुत ही बड़े पैमाने पर जीवों की ह्त्या की और आज वर्तमान जगत में ये जीव विलुप्तप्राय हो चुके हैं। ऐसे में इन जीवों और इनके प्राथमिक निवास के संरक्षण की आवश्यकता है। भारत के परिपेक्ष्य से पहले हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर पर्यावास संरक्षण है क्या?
पर्यावास संरक्षण एक प्रबंधन प्रथा है जो कि प्राकृतिक निवासों का संरक्षण और पुनर्स्थापन करती है और वहां पर पाए जाने वाले जीवों को या प्रजातियों को होने वाली क्षति से रोकने का कार्य करती है। 19वीं शताब्दी के बाद से संरक्षण के कार्य को लेकर वैश्विक स्तर पर सोचा जाना शुरू हुआ। 1842 में मद्रास बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू (Madras Board Of Revenue) ने स्थानीय संरक्षण के प्रयासों की शुरुआत की। एलेग्जेंडर गिब्सन (Alexander Gibson) के नेतृत्व में वन संरक्षण के कार्य को एक व्यवस्थित रूप से अपनाया गया। यह दुनिया का पहला वन राज्य संरक्षण का मामला था। गवर्नर-जनरल लार्ड डलहौज़ी (Governor-General Lord Dalhousie) ने 1855 में पहला स्थायी वन संरक्षण का कार्यक्रम शुरू किया था जो कि बाद में दूसरे उपनिवेशों और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी फ़ैल गया।
भारत की बात की जाए तो यहाँ पर याज्ञवल्क्य स्मृति में पेड़ों को काटने पर एक दंड का विधान लिखा गया है। यह लेख करीब 5वीं शताब्दी का है। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में नियमित वन विभाग की रचना की गयी थी जिसका नेतृत्व वन पाल (वन रक्षक) किया करते थे। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में पेड़ों और पौधों के औषधीय गुणों के अनुसार उनकी एक कीमत तय की गयी थी। उस किताब में बिना अनुमति के पेड़ की कटाई पर दंड का भी प्रावधान दिया गया था। अर्थशाश्त्र में जंगलों को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया था। मौर्य काल में वन प्रशासन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था। अशोक के अभिलेखों में जैव विविधिता के कल्याण के बारे में विवरण प्रस्तुत किया गया है।
भारत में वन संरक्षण के इतिहास में ‘चिपको आन्दोलन’ का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान है जिसे आज भी याद किया जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Habitat_conservation
2. https://www.toehold.in/blog/the-geography-of-freedom-india-amazing-natural-habitats/
3. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK232378/
4. https://www.acceleratesd.org/post/wildlife-and-habitat-conservation-in-india
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Conservation_in_India