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प्राचीन अवध साम्राज्य की राजधानी वर्तमान समय का लखनऊ है। लखनऊ को यहाँ के नवाबों ने बड़े नाजों से सजाया था। अवध वर्तमान भारत के सबसे उपजाऊ प्रांत का हिस्सा है, यहाँ पर प्राचीन काल से ही उपजाऊ स्थल होने के कारण जनसँख्या का घनत्व अत्यधिक था। अवध नाम भगवान् पुरुषोत्तम राम के जन्मस्थली के नाम अयोध्या से लिया गया है। अवध क्षेत्र पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत ही महत्वपूर्ण था, तथा यहाँ पर मध्य काल मुग़ल साम्राज्य का आधिपत्य रहा था। शुरूआती दौर में अवध साम्राज्य मुगलों के आधिपत्य में था, जो कि कालांतर में मुगलों की शक्ति कम होने के साथ ही यहाँ पर अवध के नवाबों का पूर्ण आधिपत्य हो गया। अवध साम्राज्य की शक्ति अत्यंत ही अधिक हो गयी थी, जिसके कारण ब्रिटिश हुकूमत का सीधा हस्तक्षेप इस साम्राज्य पर पड़ गया। बक्सर की लड़ाई जो कि अवध और ब्रिटिश शासन के मध्य हुई थी, उस लड़ाई में अवध की हार हुई थी और वहीँ से अवध ब्रिटिश शासन के हिस्से में झुक गया था।
सन 1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी के वारेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) ने यहाँ के राजा को पूर्ण रूप से स्वतंत्र शासक बनने के लिए प्रेरित किया तथा 1819 में यह पूर्ण साम्राज्य बना। अवध की पुरानी राजधानी फैजाबाद में थी, जो कि बाद में लखनऊ में स्थान्तरित हुई। लखनऊ में राजधानी आने के बाद यहाँ पर बड़े स्तर पर वास्तु का कार्य किया गया और वो वास्तु आज भी हमें दिखाई दे जाते हैं। कालान्तर में अवध 1857 की क्रान्ति में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और आजादी की प्रथम लड़ाई में अपनी अहम् भूमिका को प्रदर्शित किया। आज भी लखनऊ में हमें 1857 के क्रान्ति के अवशेष दिखाई दे जाते हैं। 1857 की क्रान्ति के बाद अवध अभियान की शुरुआत अंग्रेजों ने किया और समय के साथ साथ यहाँ पर हो रहे छिटपुट विद्रोहों के दमन का कार्य किया था।
जैसा कि अवध के राजचिन्ह पर हमें दो मछलियाँ दिखाई देती हैं, तो ये मछलियाँ गंगा और जमुना के तहजीब को दिखाने का कार्य करती हैं, आज भी हम उस समय के मकानों में मछलियों का अंकन आसानी से देख सकते हैं। ये दोनों मछलियाँ जीवन के साथ साथ दो नदियों के भी प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं। इन मछलियों के बीच में धनुष बाण का अंकन किया गया है, जो कि पाल की दो भुजाओं के मध्य में हैं। ये पाल की भुजाएं महाभारत के नायकों की भुजाओं के रूप में जानी जाती है। अवध राजचिन्ह में प्रयोग में लायी जाने वाली मछलियाँ, आज भी उत्तर प्रदेश के राज्य चिन्ह में बनी हुई हैं। अवध साम्राज्य का यह चिन्ह आज भी हमें उत्तर प्रदेश की ध्वजा पर दिखाई देता है। ये प्राचीन समय से ही आज तक हमारे मध्य में शामिल है तथा गंगा जमुना तहजीब को प्रस्तुत करने का कार्य आज भी ये राजचिन्ह करते आ रहे हैं।
सन्दर्भ
https://www.hubert-herald.nl/BhaAwadh.htm
https://www.hubert-herald.nl/BhaUttarPradesh.htm
https://en.wikipedia.org/wiki/Oudh_State
चित्र सन्दर्भ :
मुख्य चित्र में अवध के सिक्कों पर मुद्रित राजचिन्ह को दिखाया गया है। (Prarang)
दूसरे चित्र में लखनऊ पार्लियामेंट हाउस (Parliament House) की ईमारत पर उत्तर प्रदेश का राजकीय चिन्ह दिखाया गया है। (Flickr)
अंतिम चित्र में अवध का शासकीय चिन्ह दिखाया गया है। (Wikimedia)