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फफूंद या कवक पृथ्वी पर मौजूद एक ऐसे जीव हैं जो एक अरब साल पहले ही अस्तित्व में आ गए थे। मशरूम (mushroom) की सबसे प्राचीन (लगभग एक अरब साल पुरानी) प्रजाति औरास्पैरा गेराल्डे (Ourasphaira giraldae) (जीवाश्म प्रजाति) की खोज जीवाश्म विज्ञानी कोरेंटिन लोरोन (Corentin Loron) द्वारा की गयी थी। मशरूम की इस पृथ्वी पर कई प्रजातियां मौजूद हैं जिनमें से कुछ पोषक तत्व से भरपूर हैं तो कुछ जानलेवा विषैले। इन्हीं में से एक है साइलोसिबिन (Psilocybin) मशरूम या जादूई मशरूम जिसे शोधकर्ता मानसिक विकारों के निदान के रूप में देख रहे हैं तो वहीं कई देशों में इसे कड़ाई से प्रतिबंधित किया गया है। साइकेडेलिक मशरूम (psychedelic mushroom) का उपयोग कितना प्राचीन है इसके प्राचीन साक्ष्यों के आधार पर कई अनुमान लगाए जाते हैं? टेरेंस मैककेना (Terence McKenna) के सिद्धांत "स्टोन्ड एप" (Stoned Ape) का आधार भी साइकेडेलिक मशरूम है? कुछ साक्ष्यों से पता चलता है कि जादू मशरूम का उपयोग 10,000 ई.पू. से हो रहा है।
केवल दो मिलियन (million) वर्षों में मानव मस्तिष्क का आकार तीन गुना कैसे हो गया?
इस तथ्य को सिद्ध करने के लिए टेरेंस मैककेना (Terrence McKenna) और उनके भाई डेनिस मैककेना (Dennis McKenna) द्वारा 1970 के दशक में स्टोन्ड एप थ्योरी (Stoned Ape Theory) पेश की। मैककेना के अनुसार साइलोसिबिन (Psilocybin) के सेवन से मानव मस्तिष्क की सूचना- प्रसंस्करण क्षमताओं का तीव्रता से पुनर्गठन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप संज्ञानात्मकता का तेजी से विकास शुरू हुआ, जिसके कारण होमो सेपियन्स (Homo sapiens) के पुरातत्व रिकॉर्ड में लिखी गई प्रारंभिक कला, भाषा और तकनीक का विकास हुआ। इन मशरूम के सेवन से मानव मस्तिष्क में उच्चतर चेतना का जागरण हुआ। उन्होंने कहा, साइलोसिबिन ने हमें पशु के दिमाग से बाहर निकाला और स्पष्ट भाषण और कल्पना की दुनिया में प्रवेश कराया। जैसा कि मानव सांस्कृतिक विकास के दौरान मानव ने कुछ वन्य जीवों को पालना शुरू किया था, जिसके चलते मनुष्यों ने मवेशियों के गोबर के आसपास बहुत अधिक समय बिताना शुरू कर दिया। और, क्योंकि साइलोसिबिन मशरूम आमतौर पर गाय के गोबर में होता है, मानव द्वारा इसका उपभोग करना प्रारंभ कर दिया गया। यह वह समय था जब धार्मिक अनुष्ठान, कैलेंडर बनाना और प्राकृतिक जादू अस्तित्व में आ गए थे। हालांकि इस सिद्धान्त पर अभी सर्व सहमति नहीं है।
पुरातात्विक खोजो से ज्ञात साक्ष्य प्राचीन काल में साइलोसिबिन युक्त मशरूम के प्रयोग के बारे में बताते हैं। स्पेन (Spain) के विल्लार डेल ह्युमो (Villar del Humo) के पास की प्रागैतिहासिक भित्ति-चित्र से अनुमान लगाया जा सकता है कि 6000 साल पहले साइलोसिबे हिस्पानिका (Psilocybe hispanica) का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में किया गया था और वहीं दक्षिणी अल्जीरिया (Algeria) के तस्सीली गुफाओं में 7000 से 9000 साल पहले की कला में साइलोसिबे माईरी (Psilocybe mairei) को दिखाया गया है। प्राचीन काल में मेसोअमेरिका (Mesoamerica) में साइलोसिबिन मशरूम का आध्यात्मिक और धार्मिक अनुष्ठानों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। 15वीं और 16वीं सदी में मेसोअमेरिका पर कब्जा करने के बाद स्पेनिश लोगों ने इन मशरूमों के उपयोग में प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन वहां के लोगों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने के लिए 400 से अधिक वर्षों तक इसका गोपनीय रूप से उपयोग किया। वहीं इसमें मौजूद "नशे" के बारे में पहली बार पश्चिम में चार बच्चों द्वारा गलती से साइलोसिबे सेमिलनसाटा (Psilocybe semilanceata) (हेलुसीनोजेनिक मशरूम (hallucinogenic mushroom) की एक प्रजाति) का सेवन करने के बाद पता चला।
साइलोसिबिन मशरूम, जिसे सामान्यत: जादुई मशरूम (magic mushrooms) के रूप में जाना जाता है, एक प्रकार का कवक है इसमें साइलोसिबिन होता है जो साइलोकिन (psilocin) में बदल जाता है। इस मशरूम के जैविक जीन (Biological genes) में कोपलैंडिया (Copelandia), जिम्नोपिलस (Gymnopilus), इनोकेबे (Inocybe), पानियोलस (Panaeolus), फोलोटिना (Pholiotina), प्लूटस (Pluteus) और साइलोसाइब (Psilocybe) पाए जाते हैं। जैसे कि ऊपर उल्लेख किया गया है पश्चिमी गोलार्ध की संस्कृतियों में इस मशरूम का उपयोग धार्मिक, दैवीय या आध्यात्मिक संदर्भों में किया जाता था। इन्हें अफ्रीका (Africa) और यूरोप (Europe) के पाषाण युग की भित्ति कला में चित्रित किया गया है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा चित्रण उत्तर-मध्य और दक्षिण अमेरिका (North, Central and South America) की पूर्व-कोलंबियन मूर्तियों (Pre-Columbian sculptures) और ग्लिफ़ (glyphs) में पाया गया है।
आदिवासी समाजों के बीच चिकित्सीय और आध्यात्मिक उपयोग में जादू मशरूम का उपयोग सैकड़ों और संभवतः हजारों वर्षों से किया जा रहा है। अध्ययनों से पता चला है कि पूर्व-कोलंबियन मेसोअमेरिकन समाजों (pre-Columbian Mesoamerican societies) में मनोवैज्ञानिक पदार्थों का उपयोग सामान्य बात थी। साइबेरिया (Siberia) में साइकोएक्टिव मशरूम (psychoactive mushrooms ) के धार्मिक उपयोग का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त, प्राचीन ग्रीस (Greece) में "द एल्यूसिनियन सीक्रेट्स" (The Eleusinian Mysteries), एक "पुनर्जन्म" संस्कार के लिए "किकेन", एक साइकेडेलिक काढ़ा (psychedelic ) जिसे एर्गोट फंगस (ergot fungus) और साइकेडेलिक मशरूम से बनाया जाता है, का उपयोग किया जाता था। इनसे जूड़े रहस्यों को उजागर करने वालों को मौत की सजा सुनाई जाती थी, जिससे ये परिवर्तनकारी उपचार हुए, और गोपनीयता की शपथ ली गई। केवल ग्रीक ही नहीं वरन् मध्य अमेरिका की माया (Mayan) और एज़्टेक (Aztec) संस्कृतियों की मूर्तियों,  भित्ति चित्रों में भी मतिभ्रमजनक मशरूम (hallucinogenic mushrooms) के उपयोग के संकेत मिलते हैं। कहा जाता है कि देवताओं के साथ संवाद करने के लिए साइकेडेलिक मशरूम का उपयोग किया जाता था। 
विश्वभर में इस मशरूम के उपयोग के अधिकार हेतु अलग-अलग कानून बनाए गए हैं। साइलोसिबिन और साइलोकिन को साइकोट्रोपिक सब्सटेन्स (Psychotropic Substances) पर संयुक्त राष्ट्र 1971 के सम्मेलन के तहत अनुसूची I दवाओं के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। अनुसूची I में सूचिबद्ध दवाओं को दुरुपयोग या एक उच्च क्षमता वाली दवाओं के रूप में परिभाषित किया गया है जिनके कोई मान्यता प्राप्त चिकित्सीय उपयोग नहीं हैं। कई राष्ट्रीय, राज्य और प्रांतीय दवा कानूनों में, साइलोसाइबिन मशरूम की कानूनी स्थिति के बारे में अस्पष्टता है, साथ ही कुछ स्थानों में लाइसेंस के साथ इसका उपयोग किया जा सकता है। साइलोसिब (Psilocybe) बीजाणुओं की कानूनी स्थिति और भी अधिक अस्पष्ट है, क्योंकि बीजाणुओं में न तो साइलोसिबिन (Psilocybin) होता है और न ही साइलोसिन (Psilocin) होता है, इसलिए कई न्यायालयों में इसे बेचना या रखना गैरकानूनी नहीं है। हालांकि कई न्यायालय दवा निर्माण में उपयोग होने वाली वस्तुओं को प्रतिबंधित करने वाले व्यापक कानूनों के तहत आपत्ति अभिव्यक्त कर सकते हैं। 
हालाँकि, इतिहास में दर्जनों संस्कृतियों में इस मशरूम के कई औषधीय और धार्मिक उपयोग हुए हैं और अनुसूची I में सूचिबद्ध दवाओं की तुलना में इसके दुरुपयोग की क्षमता काफी कम है। शोधकर्ता इसमें मानसिक विकारों को दूर करने की क्षमता देखते हैं और इस पर कई नैदानिक परीक्षण कर रहे हैं तथा इसके उपयोग हेतु एफडीए (FDA) से अनुमति प्राप्त करने की पहल कर रहे हैं। इस मशरूम में अवसाद, जुनूनी-बाध्यकारी विकार, धूम्रपान छोड़ना, शराब की लत, कोकीन (cocaine) की लत, सिरदर्द, कैंसर व वे लोग जो किसी घातक बिमारी के कारण जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़े हैं अत्यधिक मानसिक तनाव से गुजरते हैं, इस प्रकार के अवासाद आदि विकारों के निदान की संभावना मौजूद है। 2018 में, एफडीए ने कंपास पाथवे (Compass Pathways) को अवसाद के इलाज के रूप में साइलोकोबिन मशरूम का अध्ययन करने की अनुमति दी थी। इसके उपयोग के काफी जोखिम भी हैं यह हृदय प्रणाली को प्रभावित करता है और रक्तचाप या अनियमित दिल की धड़कन को बढ़ा सकता है। इसमें गंभीर और स्थायी मनोवैज्ञानिक समस्याओं को उत्पन्न करने की क्षमता निहित है। हालांकि चिकीत्सीय शोधों के बाद इसके दुष्प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है, शोधकर्ता इसके प्रति आशावादी विचारधारा रख रहे हैं।