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इन पहाड़ियों का जिक्र बौद्ध और जैन धर्म के ग्रंथों में मिलता है और यह एक पवित्र स्थान की तरह मानी जाती हैं। बौद्ध धर्म में राजगीर का एक खास महत्व है यही वह जगह है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के 16 वर्ष बाद इस शिखर पर लगभग 5000 लोगों को प्रज्ञा परमिता का पाठ पढ़ाया था। शून्यता के अर्थ को समझने पर केंद्रित इस शिक्षा को धर्म चक्र का दूसरा मोड़ माना जाता है। राजगीर ही वह जगह है जहां बुध के पहले दो शिष्यों सरिपुत्र और मौद्गल्यायन ने बौद्ध धर्म को अपनाया था। यहां बुद्ध ने एक जंगली हाथी को भी शांत किया था। यहां मगध साम्राज्य के नरेश बिंदुसार ने बुद्ध के अनुयायियों को वेलुवन या बांस का वन भेंट किया था। यह जगह शहर के ज्यादा करीब ना होने की वजह से ध्यान लगाने के लिए आदर्श मानी जाती है। बुद्ध की पहली यात्रा भी राजगीर से ही शुरू हुई थी। वेलुवन के निकट स्थित ऋतपर्ण गुफा में बुध की महान शिष्य और उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी महाकश्यप ने बुद्ध की शिक्षाओं को याद कर सूत्रों में लिखा था। गिद्ध शिखर पर दिए गए बुद्ध के ज्ञान को कई सूत्रों (सद्धर्मपुण्डरिका सूत्र, सुरंगम समाधि सूत्र और प्रज्ञा परमिता सूत्र) में इकट्ठा कर रखा गया है। महापाक्ष्य के यह शिक्षाएं लिखने के बाद शाक्यमुनि ने इन्हें नागाओं के संरक्षण में रख दिया था ताकि उचित समय आने पर मानव जाति को यह मिल सके और वह इससे लाभान्वित हो सके। 
इतिहास में चीन के यात्रियों ने गिद्ध शिखर का ज़िक्र किया है। फा ह्येन ने यहां हरियाली और शांति के बीच एक कंदरा होने का भी वर्णन किया है। एक और यात्री चांग ने लिखा है कि सम्राट बिंबिसार ने पहाड़ी तक जाता हुआ एक रास्ता बनवाया था जिसकी शुरुआत में अमरवन था। अमरवन एक आम का वन है जो चिकित्सक जीवक ने बुद्ध को भेंट किया था। चांग ने यहां एक मठ होने की भी बात लिखी है जहां अनेकों अनुयाई ध्यान लगाने के लिए एकत्रित होते थे। राजगीर पर्वतों के निकट ही एक शांति स्तूप है। निकट ही हिंदुओं का पवित्र स्थान ब्रह्मा कुंड है जहां सात गर्म झरनों (सप्तर्षी) का पानी मिलता है। ब्रह्मा कुंड में चमत्कारी उपचार करने की शक्ति होने का लोगों में विश्वास है। अन्य कुंड जैसे सूर्यकुंड, त्वचा संबंधी बीमारियों को ठीक करने के लिए प्रसिद्ध है। महाभारत के राजा जरासंध का अखाड़ा और कई प्रसिद्ध मंदिर जैसे नौकाल मंदिर लाल मंदिर और वीरायतन भी यहां है। वर्ष 1978 में यहां 35.84 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाली पंत वन्य जीव अभ्यारण की स्थापना हुई थी जिसने इस क्षेत्र का महत्व और बढ़ा दिया।
