घोड़े की सुंदर और मजबूत नस्लें हैं, नेबस्ट्रुपर और मारवाड़ी घोड़ा

स्तनधारी
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घोड़े की सुंदर और मजबूत नस्लें हैं, नेबस्ट्रुपर और मारवाड़ी घोड़ा
यूरोप (Europe) में डेनमार्क (Denmark) का नेबस्ट्रुपर (Knabstrupper) घोड़ा तथा भारत में राजस्थान का मारवाड़ी (Marwari) घोड़ा, घोड़े की सुंदर और मजबूत नस्लें हैं, जिन्हें विश्व घोड़ा बाजार में अत्यधिक पसंद किया जाता है। तो चलिए, जानते हैं, घोड़े की इन दोनों नस्लों के बारे में। नेबस्ट्रुपर, डेनमार्क की एक दुर्लभ नस्ल है, जिसे मुख्य रूप से अपने आवरण पर मौजूद धब्बों या चिन्हों द्वारा पहचाना जाता है, जो काफी हद तक तेंदुएं के शरीर पर मौजूद धब्बों के समान दिखायी देते हैं। दुनिया भर में इस नस्ल के लगभग 600 सदस्य ही वर्तमान समय में मौजूद हैं। इन घोड़ों को घुड़सवारों द्वारा अत्यधिक पसंद किया जाता है, जो कि, बच्चों के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। यह नस्ल मुख्य रूप से अपनी गति और धीरज के लिए जानी जाती है। औपचारिक रूप से, नेबस्ट्रुपर को डेनमार्क में लगभग तीन शताब्दियों पहले विकसित किया गया था। 1812 में मेजर विलार्स लून (Major Villars Lunn) ने डेनमार्क के नॉर्डसेलैंड (Nordsealand) में अपना नेबस्ट्रुप फार्म (Farm) बनाया, जिसके बाद, इस नस्ल को नेबस्ट्रुपर नाम से जाना जाने लगा। लून ने एक समान रंग वाले वयस्क घोड़े के साथ प्रजनन के लिए तेंदुएं जैसे धब्बों या चिन्हों वाली भूरे रंग की या चेस्टनट (Chestnut) घोड़ी उत्पन्न की। परिणामस्वरूप एक भव्य या प्रभावशाली चिन्हों वाली संतति उत्पन्न हुई। बाद में, घोड़ी तथा उसकी संतति का अन्य घोड़ों के साथ भी प्रजनन कराया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हीं के समान अनेकों नये घोड़े पैदा हुए। इस प्रकार नेबस्ट्रुपर की एक स्वतंत्र नस्ल स्थापित हुई। 1971 में, इस नस्ल में कुछ और बदलाव करने हेतु प्रजनन के लिए अप्पलोसा स्टालियन (Appaloosa stallions) को डेनमार्क में आयात किया गया। इनसे उत्पन्न घोड़ों की अधिकता से शुद्ध नेबस्ट्रुप नस्ल वाले घोड़ों की संख्या में भारी गिरावट आयी। इन घोड़ों का धब्बेदार या चित्तीदार आवरण वास्तव में 'लियोपार्ड कॉम्प्लेक्स (Leopard complex)' नाम के आनुवंशिक तंत्र के कारण होता है। डेनमार्क के अलावा, नॉर्वे (Norway), स्वीडन (Sweden), स्विटज़रलैंड (Switzerland), इटली (Italy), जर्मनी (Germany), ब्रिटेन (Britain), संयुक्त राज्य अमेरिका (America) आदि देशों में भी यह नस्ल उत्पन्न की जाती है। अपनी शानदार बनावट के कारण 1848-1850 के युद्ध (स्लेसविग युद्ध - Schleswig war) के दौरान डेनमार्क के अधिकारियों द्वारा सैन्य उपयोग के लिए इस नस्ल को बहुत अधिक पसंद किया गया था। वर्तमान समय में नेबस्ट्रुपर को विकसित करने का प्राथमिक उद्देश्य उन्हें डेनिश (Danish) सवारी के लिए उपयोग किये जाने वाले घोड़े के रूप में संरक्षित करना है, चाहे फिर वे किसी भी आकार के हों। नेबस्ट्रुपर के तीन अलग-अलग प्रकार विकसित किये गए हैं, जिनमें स्पोर्ट हॉर्स (Sport Horse), बारोक (Baroque) तथा पोनी (Pony) हॉर्स शामिल हैं। इसकी व्यवहारिक विशेषताओं को देंखे तो, यह नस्ल विनम्र, उच्च उत्साही, ऊर्जावान, शिष्ट या अनुशासित होती है। छोटे कान और स्पष्ट आंखों के साथ इसका चेहरा अत्यधिक भावबोधक होता है। मजबूत पीठ के साथ इसके कंधे थोड़ा झुके हुए होते हैं, जबकि पैर शक्तिशाली और पर्याप्त रूप से मांसल होते हैं। सफेद रंग की त्वचा पर कई रंग के धब्बे पाये जाते हैं, जो कि, काले, ग्रे (Gray) या चमकदार भूरे रंग के हो सकते हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से शो जंपिंग (Show jumping), सवारी, गाड़ी खींचने, सर्कस (Circus) इत्यादि में किया जाता है।

भारत के मारवाड़ी घोड़े की बात की जाए तो, यह राजस्थान राज्य में मारवाड़ क्षेत्र के ऐतिहासिक शाही घोड़ों की नस्ल है। इनका उपयोग क्षेत्र के राठौर शासकों के योद्धा सैनिकों द्वारा किया जाता था। इस प्रकार इनका उपयोग सदियों से युद्ध के घोड़ों के रूप में किया गया, जहां इसने अपने कौशल का प्रदर्शन किया। यह नस्ल, इसी क्षेत्र की काठियावाड़ी नस्ल से मिलती-जुलती है। मारवाड़ी घोड़े की उत्पत्ति की सटीक जानकारी अभी मौजूद नहीं है, लेकिन अनुवांशिक शोधकर्ताओं के अनुसार वे उन अरबी (Arabian) घोड़ों के वंशज हैं, जिनका प्रजनन देशी भारतीय छोटे घोड़ों के साथ कराया गया था। इस नस्ल में मंगोलियाई (Mongolian) घोड़ों का भी कुछ प्रभाव दिखाई देता है। माना जाता है कि, यह नस्ल 12 वीं शताब्दी ईस्वी में अस्तित्व में आयी। 1193 में, जब राठौर शासकों को अपना मूल राज्य छोड़कर पश्चिमी भारत के दूरदराज वाले इलाकों (भारतीय और थार रेगिस्तान) में जाना पड़ा, तब उनकी इस यात्रा में मारवाड़ी घोड़ों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मारवाड़ी घोड़े को साहसी व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। गंभीर रूप से घायल होने पर भी यह अपने सवार की तब तक रक्षा करता था, जब तक कि, वह अपने सवार को मुसीबत से बाहर न निकाल दे। इसका प्रमुख उदाहरण महाराणा प्रताप का घोड़ा 'चेतक' है, जिसे मारवाड़ी नस्ल का माना जाता है। चेतक का वर्णन एक दुर्लभ, तीव्र बुद्धि, संयमित और साहसी घोड़े के रूप में किया गया है। इसे अपने छोटे शरीर, घने बालों वाली पूंछ, संकीर्ण पीठ, तीक्ष्ण दृष्टि वाली बड़ी आंखें, मजबूत कंधे, चौड़े माथे और छाती के लिए जाना जाता था। लंबे चेहरे और चमकदार आँखों के साथ चेतक का शरीर अत्यधिक मांसल और आकर्षक था। इसकी सबसे विशिष्ट विशेषता उसके सुंदर घुमावदार और मुड़े हुए कान थे, जिनके शीर्ष आपस में मिलते थे। इसकी गर्दन मोर के समान (संस्कृत में मयूरा ग्रीवा) थी। अपनी बहादुरी के कारण चेतक ने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की जान बचाई थी।

समय बीतने के साथ, युद्ध धीरे-धीरे समाप्त होने लगे, जिससे युद्ध के लिए मारवाड़ी घोड़े की आवश्यकता ख़त्म होने लगी। परिणामस्वरूप, इस नस्ल की मांग में भारी गिरावट आयी। ब्रिटिश शासन और स्वतंत्रता के बाद भी यह प्रवृत्ति जारी रही। 1990 के दशक के प्रारंभ में हुए एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार इस नस्ल के केवल 500 से 600 घोड़े ही बचे थे। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश काल के दौरान, क्षेत्र से संबंधित राष्ट्रवादी लोगों ने इनकी घटती संख्या पर पुनर्विचार करना शुरू किया और नस्ल के पुनरुद्धार के लिए पहल की। इस प्रकार, निरंतर प्रयासों के द्वारा इस नस्ल को विलुप्त होने से बचाया गया। 1992 के जैविक संरक्षण संधि के तहत भारत से इस नस्ल के निर्यात को निषिद्ध कर दिया गया। इसके अलावा, राजस्थान के जोधपुर के चोपासनी (Chopasni) में, मारवाड़ी हॉर्स ब्रीडिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (Horse Breeding and Research Institute) के नाम से एक संस्था भी स्थापित की गई, जो इन घोड़ों को बढ़ावा देने, सुधारने और बनाए रखने के लिए विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन करती है। ग्रामीण राजस्थान में, मारवाड़ी घोड़े को कई त्योहारों और विवाह में नृत्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। मारवाड़ी घोड़े की व्यवहारिक विशेषताएँ देखें तो, यह एक वफादार, बहादुर, कुलीन, अनुकूल और स्नेही घोड़ा माना जाता है। इसका शरीर पतला और परिष्कृत होता है, तथा कान अंदर की ओर मुड़े होते हैं, जिसके शीर्ष भाग आपस में मिलते हैं। मारवाड़ी घोड़ों की औसत ऊंचाई 154 और 164 सेंटीमीटर के बीच होती है। इनके शरीर का रंग काला, ग्रे, भूरा आदि हो सकता है। यह नस्ल 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। सामान्य रूप से इनका उपयोग सवारी, खेल कूद की गतिविधियों, परिवहन, हॉर्स शो (Horse shows), सफारी (Safaris), शादी और अन्य समारोह में किया जाता है।


संदर्भ:
https://bit.ly/3s4HmZo
https://bit.ly/3pskQrH
https://bit.ly/2ZvLAg4
https://bit.ly/3ud0lmb
https://bit.ly/3auCMxq
https://bit.ly/37sKvtU

चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में नेबस्ट्रुपर घोड़ा और मारवाड़ी घोड़ा दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर में डेनमार्क के नेबस्ट्रुपर घोड़े को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में भारत के राजस्थान के मारवाड़ी घोड़े को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
अंतिम तस्वीर मेवाड़ के महाराणा प्रताप और उनके घोड़े चेतक की प्रतिमा को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)