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वास्तव में, घड़ियाल के लिए बंदी-प्रजनन (Captive-breeding) कार्यक्रम देश के दो सफल वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रमों में से एक है। कुकरैल घड़ियाल पुनर्वास केंद्र मुख्य रूप से घड़ियालों की घटती आबादी को ठीक करने के लिए ही स्थापित किया गया था। हालांकि, स्थानीय क्षेत्रों से बचाये गये दलदली मगरमच्छों को भी यहां संरक्षण प्रदान किया गया। इसके अलावा गंगा एक्शन प्लान (Ganga Action Plan) के हिस्से के रूप में, यहां नरम खोल वाले कछुओं (Soft shell turtle) को भी संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। घड़ियाल जिसे वैज्ञानिक तौर पर गैविआलिस गैंगेटिकस (Gavialis Gangeticus) कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की एक स्थानीय प्रजाति है, जिसकी संख्या गंगा नदी में 1970 के दशक के मध्य से घटने लगी। बांध, बैराज (Barrage), और पानी के बहाव ने उपयुक्त नदी आवासों को सीमांत या अनुपयुक्त झीलों में बदला तथा घड़ियालों के अस्तित्व को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया। अपने लंबे, दांतेदार रॉस्ट्रम (Rostrum) के कारण घड़ियाल अक्सर मछली पकड़ने वाले जाल में उलझ जाते हैं। इन जालों से निकलने के प्रयास में घड़ियाल अक्सर मारे जाते हैं। नदी के किनारों से रेत का निष्कर्षण घड़ियालों के व्यवहार को बाधित करता है। इसके अलावा निरंतर खनन गतिविधियां घड़ियालों के अंडे देने वाले क्षेत्रों या अंडे को सेंकने की क्रिया को बाधित करते हैं, जिससे अंडों की मृत्यु दर में वृद्धि होती है। ये सभी कारण घड़ियालों की संख्या में गिरावट के मुख्य कारण बने। इसके बाद से देश में गंभीर रूप से संकटग्रस्त इस जीव के संरक्षण और पुनर्वास के लिए प्रयास किये जाने लगे। केंद्र से घड़ियालों को दुनिया भर के विभिन्न चिड़ियाघरों और प्राकृतिक पार्कों में भी भेजा गया है। ओडिशा, कानपुर, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, चेन्नई के अलावा भूटान (Bhutan), टोक्यो (Tokyo), न्यूयॉर्क (New York), पाकिस्तान (Pakistan) और अफगानिस्तान (Afghanistan) कुछ ऐसे स्थान हैं, जहाँ कुकरैल केंद्र से स्वस्थ घड़ियाल भेजे गए हैं। पानी के भीतर और प्राकृतिक आवासों में मुक्त घड़ियालों के व्यवहार को समझने के लिए केंद्र  'जैव-लॉगिंग' (Bio-logging) जैसी विधियों का उपयोग करता है। इस विधि में एक हल्के वजन वाला कैमरा (Camera) जानवरों के सिर पर लगाया जाता है, जो कि, चार घंटे के बाद अपने आप अलग हो जाता है। चूंकि, एक बार छोड़े जाने के बाद इन सरीसृपों पर कड़ी नजर रखना मुश्किल होता है, इसलिए यह कैमरा गहन अध्ययन के लिए अधिक जानकारी प्रदान करता है। कैमरा घड़ियालों की तैरने की गति, उनके द्वारा अक्सर की जाने वाली क्रियाओं आदि पर नजर रखता है। पिछले तीन वर्षों से, किशोर घड़ियालों को प्लास्टिक (Plastic) से बने मवेशी टैग (Tags) के साथ छोड़ा जाता है। यह टैग उनकी पूंछ पर लगाया जाता है। 
घड़ियालों की पहचान के लिए इन टैगों पर संख्याएं अंकित होती हैं। जब सरीसृप धूप सेंकने बाहर निकलते हैं, तब उन्हें आसानी से दूरबीन की मदद से देखा जा सकता है, तथा उन पर लगे टैग के माध्यम से उनकी पहचान कर ली जाती है। 2014 में, दस जानवरों को उच्च आवृत्ति वाले रेडियो (Radio) टैग के साथ घाघरा नदी में छोड़ा गया था। कोरोना महामारी के दौरान हुई तालाबंदी में उत्तरप्रदेश के बहराइच वन प्रभाग (Bahraich forest division) द्वारा घाघरा नदी में चालीस घड़ियाल छोड़े गए, जिन्हें लखनऊ के कुकरैल घड़ियाल पुनर्वास केंद्र से लाया गया था। इस वर्ष आठ नर और 32 मादाओं को नदी में स्थानांतरित किया गया है। घाघरा नदी भारत की सबसे स्वच्छ नदियों में से एक है तथा घड़ियाल इन नदियों की स्वच्छता का एक अच्छा संकेतक हैं।