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संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक, ओलिवियर डी शूटर (Olivier de Schutter) की भोजन के
अधिकार पर 2010 की एक रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि 2007-2008 में वैश्विक खाद्य संकट
को बढ़ावा देने में खाद्य वस्तुओं में अनुमान या अटकलें लगाने की एक विशेष भूमिका
थी।2007-08 में वैश्विक खाद्य संकट के कारण अभूतपूर्व संख्या (एक अरब के करीब) में
लोगों को भूखे सोना पड़ा क्यों कि इस समय वैश्विक खाद्य कीमतें अत्यधिक बढ़ गयी
थीं।इस अवधि में चावल की वैश्विक कीमत में 165 प्रतिशत और गेहूं की कीमतों में 67
प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। तो आइए जानते हैं, कि खाद्य अटकलें क्या हैं और यह कैसे
कार्य करता है।
खाद्य कीमतों में बदलाव से लाभ कमाने के उद्देश्य से व्यापारियों द्वारा वायदा अनुबंधों की
खरीद और बिक्री को खाद्य अटकलें कहा जाता है।खाद्य उत्पादकों और खरीदारों के लिए
खाद्य अटकलें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकती हैं।कुछ संगठनों को लगता है
कि अत्यधिक खाद्य अटकलें बाजार को और अधिक अस्थिर बना सकती हैं और उन्होंने
अधिक विनियमन के लिए अभियान चलाया है।
वायदा अनुबंध एक खाद्य उत्पादक को एक
गारंटीकृत मूल्य के लिए भविष्य की तारीख में अपना माल बेचने की अनुमति देता है। यह
हेजिंग (Hedging) का एक रूप है और किसानों को जोखिमों से बचाने में मदद कर सकता
है।खाद्य सट्टेबाज वायदा अनुबंध खरीदते और बेचते हैं और कृषि वस्तुओं की कीमतों में
बदलाव से लाभ की तलाश करते हैं।कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि अत्यधिक अटकलें बाजार
को विकृत कर सकती हैं जिससे कि खाद्य कीमतें अब केवल आपूर्ति और मांग पर आधारित
नहीं रह गई हैं।खाद्य अटकलों को व्यापक रूप से 2007-08 के विश्व खाद्य मूल्य संकट के
लिए एक मुख्य कारक माना जाता है और इसलिए तब से अमेरिका (America) और यूरोपीय
(European) संघ दोनों में खाद्य अटकलों को सीमित करने के लिए कड़े नियम बनाए जा रहे
हैं।बैंकों, हेज फंड या पेंशन फंड जैसे वैश्विक खिलाड़ियों द्वारा खाद्य अटकलें लगाना गेहूं,
मक्का और सोया जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव का कारण बनती
हैं।1776 में एडम स्मिथ (Adam Smith) ने यह तर्क दिया था कि कमोडिटी ट्रेडिंग
(Commodities trading) से पैसा कमाने का एकमात्र तरीका कम दाम में खरीदना तथा उच्च
दाम में बेचना है, जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव और खाद्य कमी को कम किया जा सकता
है। लेकिन वैश्विक गरीबों के लिए, खाद्य अटकलें और अत्यधिक परिणामी मूल्य गरीबी या
अकाल में भी वृद्धि कर सकता है।खाद्य जमाखोरी के विपरीत, खाद्य अटकलों का मतलब
यह नहीं है कि वास्तविक भोजन की कमी को और अधिक बढ़ाया जाएगा।कीमतों में बदलाव
केवल व्यापारिक गतिविधि के कारण होता है।भारत मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है तथा
किसानों के लिए खेती एक बहुत ही जोखिम भरा व्यवसाय हो सकता है। किसानों को न
केवल खराब मौसम या उनकी फसलों को नष्ट करने वाले कीड़ों के बारे में चिंता करनी
पड़ती है, बल्कि उन्हें खाद्य कीमतों के बारे में भी चिंता करनी पड़ती है जो रोपण और कटाई
के बीच नाटकीय रूप से बदल सकते हैं।
इस जोखिम का प्रबंधन करने के लिए, कई किसान
वायदा अनुबंध पर हस्ताक्षर करके समय से पहले ही अपने अनाज की कीमत तय कर लेते
हैं। परंपरागत रूप से किसान इन अनुबंधों को उनके साथ करते हैं, जो अंततः उनका उत्पाद
खरीदेंगे।हालांकि आज अधिकांश किसान वित्तीय निवेशक या बैंक के साथ वायदा अनुबंध पर
हस्ताक्षर करते हैं।बैंक वास्तव में अनुबंध के अंत में उत्पाद नहीं खरीदते हैं। इसके बजाय वे
खाद्य कीमतों पर दांव लगाते हैं,यदि कीमतें उनके पक्ष में बदलती हैं तो वे अनुबंध को
समाप्त होने से पहले ही बेच सकते हैं और पैसा कमा सकते हैं।वास्तव में भौतिक भोजन
खरीदने या बेचने वाले लोगों को हेजर्स (hedgers) कहा जाता है, क्योंकि वे कीमतों में बदलाव
के जोखिम को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं। खाद्य उत्पाद खरीदे बिना दांव लगाने
वाले लोग वास्तव में सट्टेबाज कहलाते हैं।1990 के दशक में सट्टेबाजों ने बाजार का केवल
12 प्रतिशत हिस्सा बनाया, लेकिन 2000 के दशक में विनियमन के बाद, यह संख्या अब
लगभग 60 प्रतिशत हो गई है।सट्टेबाज किसानों के लिए अच्छे हो सकते हैं।जब वायदा
अनुबंध करने के लिए कोई वास्तविक खाद्य खरीदार उपलब्ध नहीं होते हैं तो वे उन्हें
जोखिम से बचाते हैं।लेकिन बहुत से लोग चिंता करते हैं कि बहुत अधिक अटकलें वास्तव में
खतरनाक तरीकों से खाद्य कीमतों को प्रभावित कर सकती हैं।आपूर्ति और मांग के साथ
कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है।इस मामले में, सट्टेबाज न केवल वायदा अनुबंधों की
कीमतों की बोली लगा सकते हैं, बल्कि मौजूदा खाद्य कीमतों को भी सीधे प्रभावित कर
सकते हैं, जो अर्थव्यवस्था में बडे पैमाने पर नुकसान का कारण बन सकता है।
बहुत सारे
अर्थशास्त्री सोचते हैं कि वायदा अनुबंधों और मौजूदा खाद्य कीमतों की कीमतें पूरी तरह से
अलग हैं।कीमतों को प्रभावित करने के लिए अटकलों को वास्तविक आपूर्ति या मांग को
प्रभावित करना होगा।कई अर्थशास्त्री और कार्यकर्ता यह सोचते हैं कि कीमतों को और अधिक
स्थिर रखने के लिए सरकारों को खाद्य बाजारों में अटकलों को सीमित करना चाहिए।खाद्य
अटकलों के नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए भारत ने भी मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए प्रमुखकृषि उत्पादों का वायदा कारोबार रोक दिया है। चूंकि विश्व के वनस्पति तेलों के सबसे बड़े
आयातक और गेहूँ और चावल के प्रमुख उत्पादक खाद्य महंगाई पर काबू पाने के लिए संघर्ष
कर रहे हैं, इसलिए भारत के बाजार नियामक ने प्रमुख कृषि उत्पादों के वायदा कारोबार को
एक साल के लिए स्थगित करने का आदेश दिया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/34AjO8f
https://bit.ly/3f1YZo4
https://bit.ly/3zCpnOI
https://reut.rs/3f4JM5D
https://bit.ly/3GeNC8f
चित्र संदर्भ   
1. लाइबेरिया में एक यूएनसीएचआर खाद्य वितरण बिंदु (UNCHR food delivery point) पर बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. महिला सब्जी विक्रेताओं को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. भारतीय किसान दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारतीय और दक्षिण एशियाई व्यंजनों में आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले भारतीय मसालों की एक श्रृंखला को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)