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हाल ही में भारत ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाई। देश की आज़ादी के
साथ ही आज से 75 वर्षों पूर्व, भारत की भूमि से एक बड़ा भू-भाग एक नए देश के रूप में पाकिस्तान
के नाम से पृथक हो गया। दो देशों के इस दर्दनाक ऐतिहासिक विभाजन में न केवल अनगिनत
परिवार अलग-अलग हो गए, बल्कि हमारी प्राचीन और ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरें या विरासतें
भी बट गई।
भारत और पाकिस्तान के ऐतिहासिक विभाजन का संग्रहालयों पर बेहद गंभीर प्रभाव पड़े।
उदाहरण के तौर पर चंदयान जिसे दक्षिण एशियाई साहित्य और कला का एक मील का पत्थर
माना जाता है, को ले सकते हैं। चंदयान की रचना 1379 में सूफी आध्यात्मिक नेता दाउद ने की थी,
और यह लोरिक तथा चंदा की प्रेम कहानी का वर्णन करता है, जो अवधि भाषा और अरबी लिपि में
लिखी गयी थी। यह ट्रांस कल्चर सौंदर्यशास्त्र (trans culture aesthetics) के एक उत्कृष्ट कार्य
के रूप में जीवित है, जिसमें संस्कृत, फारसी, अरबी और भारतीय भाषाओं की साहित्यिक संवेदनाएं
विलीन हो जाती हैं।
दुनिया भर के संग्रहों में बिखरे हुए, चंदयान की शुरुआती सचित्र पांडुलिपियों की केवल पांच प्रतियां,
15वीं और 16वीं शताब्दी से बची हैं। लेकिन, कई पुरावशेषों की तरह, विभाजन ने इन प्रतियों को भी
गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया। 1947 से पहले लाहौर संग्रहालय द्वारा अधिग्रहित, यह चंदयान
पांडुलिपि अपने स्थायी संग्रह में कला और पुरातत्व की बहुमूल्य वस्तुओं में से एक थी, जिसे 1947
के विभाजन में भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित कर दिया गया था। 
हालांकि सभी
पांडुलिपियों को वित्तीय लाभ के लिए नहीं बांटा गया, लेकिन कुछ को खंडित किया गया था।
विभाजन के समय, लाहौर संग्रहालय सरकारी संपत्तियों और देनदारियों के बीच बहस का एक
आधार बन गया, जो सिद्धांत रूप में विभाजन परिषद द्वारा स्थापित विभाजन के नियमों के
अधीन थे। एक ओर इसके पुरातात्विक भंडार भारत के साथ 50:50 के विभाजन के अधीन थे, वही
इसके स्थायी संग्रह को 60:40 में विभाजित किया गया था, जो औपनिवेशिक पंजाब के क्षेत्र को
विभाजित करने के लिए उपयोग किए गए अनुपात के अनुरूप था।
इसका मतलब था कि संग्रहालय की पेंटिंग, मूर्तिकला, कपड़ा और सजावटी कला वर्गों का 60%
पाकिस्तान में पश्चिमी पंजाब के पास रहा, जबकि 40% भारत में पूर्वी पंजाब को दिया गया।
चंदयान जैसी विरासत की भौतिक अखंडता से विभाजन के समय समझौता किया गया था।
10 अप्रैल 1948 को दो नवगठित सरकारों के प्रतिनिधियों के बीच लंबी और जटिल बातचीत के
बाद लाहौर में विभाजित सरकारी संग्रहालय का संग्रह, भारतीय सीमा के इस तरफ आया। चंदयान
पांडुलिपि के केवल 24 फोलियो बचे हैं। लेकिन जब उन्हें पहली बार 16 वीं शताब्दी में
कमीशन किया गया था, तब उनकी संख्या 250 से भी अधिक थी। ये पृष्ठ वर्तमान में
तीन संग्रहालयों: चंडीगढ़ में सरकारी संग्रहालय, तथा लाहौर संग्रहालय और कराची
संग्रहालय (दोनों पाकिस्तान में) में फैले हुए हैं।
भारत और पाकिस्तान के विभाजन में सांस्कृतिक विरासत का विभाजन भी शामिल था। हालांकि,
आजादी की घोषणा के बाद पंजाब और बंगाल में फैली सांप्रदायिक हिंसा ने अपरिवर्तनीय रूप से
मूर्त और अमूर्त विरासत को नष्ट कर दिया। लाहौर संग्रहालय (1865 में स्थापित), अविभाजित
भारत की विशाल सांस्कृतिक विरासत का भंडार, सर गंगा राम द्वारा डिजाइन की गई एक राजसी
इमारत में रखा गया। सौभाग्य से, 1947 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान, दोनों तरफ के संग्रहालयों
को कोई नुकसान नहीं हुआ।
 दंगे शांत होने के तुरंत बाद, यह निर्णय लिया गया कि लाहौर
संग्रहालय के संग्रह की भी पंजाब विश्वविद्यालय के विभाजन की तर्ज पर पुस्तकालय की किताबें,
पांडुलिपियां, एएसआई (ASI) की कलाकृतियां आदि को भी विभाजित करने की आवश्यकता है।
परिणाम स्वरूप 10 अप्रैल 1948 को लाहौर में विभाजित संग्रह, 1949 के अंत में पंजाब के इस
तरफ आ गया।
लाहौर अविभाजित पंजाब की सांस्कृतिक राजधानी थी, लेकिन भूमि के इस हिस्से में पहली ईसा
पूर्व की मूर्तियों और कला के नाजुक टुकड़ों को रखने के लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं था। बटवारे
की प्रक्रिया इतनी भी सरल नहीं थीं। मृणालिनी वेंकटेश्वरन (Mrinalini Venkateswaran), जो
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Cambridge University) से 1947 के बाद पंजाब में संग्रहालयों के
विकास पर काम कर रही हैं, के अनुसार चर्चा के कई दौर हुए, अलग-अलग चीजों के लिए अलग-
अलग फॉर्मूले लागू किए गए - यह एक जटिल, लंबी प्रक्रिया थी। इस प्रक्रिया में कई लोग जैसे
राजनेता, नौकरशाह, और संग्रहालयों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विशेषज्ञ शामिल थे।
मूर्तियों और चित्रों, जिन्हें किताबों में पुन: प्रस्तुत किया गया था, को विभाजित नहीं किया गया था
और पाकिस्तान सरकार द्वारा अपने पास रखा गया था। इसी तरह, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की
पुरातत्व सामग्री को विभाजित नहीं किया गया था क्योंकि ये स्थल पाकिस्तान में थे। 
पूर्व-
ऐतिहासिक "डांसिंग गर्ल (dancing girl)", एक अपवाद है (राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में
प्रदर्शित) और बहुत विवाद का हिस्सा रहा है। क्षेत्रीय अधिकार का हवाला देते हुए पाकिस्तानी
नागरिकों द्वारा कई बार इस पर दावा भी किया गया है।
चंडीगढ़ संग्रहालय के पूर्व निदेशक, स्वर्गीय वीएन सिंह, जिन्होंने लाहौर संग्रहालय का दौरा किया
था, ने एक बार गांधार की मूर्तियों के विभाजन के बारे में एक दिलचस्प विवरण देखा, जहां उन्होंने
देखा की बुद्ध का एक पैर चंडीगढ़ संग्रहालय के कब्जे में है, जबकि दूसरा लाहौर में है। चंडीगढ़
संग्रहालय को कुल 627 गांधार मूर्तियां, 450 लघु पेंटिंग, नंद लाल बोस, एएन टैगोर, जैमिनी रॉय
आदि समकालीन कलाकारों की 18 पेंटिंग, आठ तन्खा और कुछ सजावटी कलाकृतियां प्राप्त हुईं।
शुरू में भारतीय पंजाब में लाहौर संघ्रालय से प्राप्त अमूल्य धरोहर को रखने की कोइ व्यवस्था ही
नहीं थी ! जब वस्तुएं लाहौर से अमृतसर पहुंचीं, तो पहले कुछ दिन शिमला में रखी गयी और फिर
पटिआला में। 1950 में जब चंडीगढ़, भारतीय पंजाब की राजधानी बनी तब जाकर इस धरोहर के
लिए एक अलग सुरक्षित संघ्रालय बना।
संदर्भ
https://bit.ly/3KfkAZ7
https://bit.ly/2QVbfZx
चित्र संदर्भ
1. चंदयान पांडुलिपि अपने स्थायी संग्रह में कला और पुरातत्व की बहुमूल्य वस्तुओं में से एक थी, जिसे 1947 के विभाजन में भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित कर दिया गया था। चंदयान तथा 1747 के बंटवारे को दर्शाता एक चित्रण (youtube, wikimedia)
2. मुगल सल्तनत काल (सीए 1550-60) चंदयान की पांडुलिपि से फोलियो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पलायन करते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. ऐतिहासिक डांसिंग गर्ल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. चंडीगढ़ संग्रहालय के पूर्व निदेशक, स्वर्गीय वीएन सिंह, जिन्होंने लाहौर संग्रहालय का दौरा किया था, ने एक बार गांधार की मूर्तियों के विभाजन के बारे में एक दिलचस्प विवरण देखा, जहां उन्होंने देखा की बुद्ध का एक पैर चंडीगढ़ संग्रहालय के कब्जे में है, जबकि दूसरा लाहौर में है। जिसको दर्शाता एक चित्रण (youtube)