लखनऊ सहित देशभर के कई हिस्सों में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से उगाए जाने वाली सुरक्षित व पौष्टिक खाद्य फसल

फल और सब्जियाँ
13-09-2022 10:38 AM
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लखनऊ सहित देशभर के कई हिस्सों में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से उगाए जाने वाली सुरक्षित व पौष्टिक खाद्य फसल

आजकल ताजा और रसायन मुक्त फल तथा सब्जियों की बढ़ती माँग के चलते शहरों में खेती के उन्नत तरीकों पर अधिक जोर दिया जा रहा है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक जिसके माध्यम से मिट्टी, प्राकृतिक जल और ऊर्जा के बिना ही फसल उगाई जा सकती है। कई नई कंपनियाँ इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। जिनमें बार्टन ब्रीज़ (Barton Breeze), अर्बनकिसान (UrbanKisaan), पिंड फ्रेश ट्राइटन (Pind FreshTriton), लिविंग फ़ूड कंपनी (Living Food Co) और केज़ लिविंग एग्रो2ओ (Kaze Living Agro2o) आदि शामिल हैं। इसके अलावा कई बड़े निवेशकों ने भी इस क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाई है। इसका मुख्य कारण यह है कि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से फसल उगाने में 90% तक कम पानी की खपत होती है। ताजे पानी का लगभग 70% हिस्सा कृषि के पारंपरिक तरीके में उपयोग होता है। भारत जहाँ 50% आबादी के पास सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है वहाँ खेती की हाइड्रोपोनिक्स विधि एक लाभदायक तरीका है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि वर्ष 2050 तक पूरे विश्व की आबादी 10 अरब तक पहुँचने की संभावना है। इतनी बड़ी आबादी के कारण पीने के पानी की कमी होना स्वभाविक है। ऐसे में ऊर्ध्वाधर खेती और इससे होने वाली पानी की बचत से खाद्य उत्पादन को बनाए रखने का दावा किया जाता है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से पानी, श्रम और जमीन की बचत होती है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इसे एक व्यवहार्य व्यवसाय मॉडल बनाने के लिए, यह महत्वपूर्ण है की इस क्षेत्र में कार्यरत स्टार्टअप (Startups), यूरोप (Europe) और उत्तरी अमेरिका (North America) के मॉडल को आंख बंद करके न दोहराएँ बल्कि स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखकर हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करें। तभी यह तकनीक भारत में कारगर साबित हो सकती है। इसके अलावा, उन फसलों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है जो भारत में आसानी से उगाई जा सकती हैं। उदाहरण के लिए हरी पत्तेदार सब्जियाँ, टमाटर, कंद, परागित फसलें और फल इत्यादि।
परंपरागत फसलों की तुलना में हाइड्रोपोनिक्स फसलों को अधिक रखरखाव की आवश्यकता होती है जिसमें अधिक लागत लगती है। उदाहरण के लिए, तापमान नियंत्रण प्रणाली के लिए कूलिंग पैड (Cooling Pad), तापमान सेंसर (Temperature Sensor) और फैन सिस्टम (Fan System) की आवश्यकता होती है। इस तकनीक के भारतीयकरण करने के लिए कच्चे माल का आयात करने की भी आवश्यकता होती है। जिससे लागत अधिक हो गई है, जिससे केवल उच्च मूल्य वाली फसलें जैसे पत्तेदार सब्जियाँ जैसे लैटस (Lettuce), तुलसी (Basil) और अन्य विदेशी जड़ी-बूटियाँ ही उगाई जा रही हैं। हालाँकि इस लागत को कम करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं।
भारत के शहरों में ऊर्ध्वाधर खेती की हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के कई लाभ हो सकते हैं:
1. लगातार बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन की आपूर्ति,
2. भूमि के बड़े हिस्से को प्राकृतिक परिदृश्य में वापस बदलना,
3. मीथेन उत्पादन के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए मानव और कृषि अपशिष्ट के जैविक हिस्से का सुरक्षित और कुशलता से उपयोग करना,
4. भविष्य के लिए पीने योग्य पानी का संरक्षण करना,
5. परित्यक्त और खाली पड़े स्थानों को कृषि कार्य के लिए उपयोग करना,
6. वातावरण को दूषित करने वाले और रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं के संक्रमण चक्र को तोड़ना,
7. जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली फसल की हानि के बिना साल भर भोजन और फसलें प्राप्त करना,
8. कीटनाशकों के बड़े पैमाने पर उपयोग की आवश्यकता को समाप्त करना,
9. व्यवसायिक रूप से पौधों और फसलों को व्यवहार्य बनाना और
10. शहरों में एक स्वच्छ और स्वास्थ्य के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करना।
उत्तर प्रदेश की राजधानी, हमारे लखनऊ में कई स्थानों पर लंबवत फूल इत्यादि के पौधे देखे जा सकते हैं। इस वर्ष अप्रैल में, लखनऊ नगर निगम ने बाजार को ऊर्ध्वाधर उद्यानों से सजाने, बाजार को दिन में दो बार साफ करने और बाजार में रंग कोड (Code) और साइनेज (Signage) मानदंडों का कड़ाई से कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है। सिविरों की साफ- सफाई, और कई स्थानों पर हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करके लंबवत उद्यानों के निर्माण का फैसला लिया गया। वर्तमान में, लखनऊ में कई स्थानों पर लंबवत उद्यान देखे जा सकते हैं। खासकर मेट्रो की दीवारों जैसे स्थानों पर। लखनऊ में रहने वाली अदिति अग्रवाल ने खेती को व्यवसायिक रूप से आरंभ करने की पहल की। कार्बनिक खेती के अलावा लखनऊ में एक हाइपर लोकल हाइड्रोनिक फॉर्म (Hyper Local Hydronic Farm) है, जहां उत्तम गुणवत्ता वाली फल तथा सब्जियाँ उगाई जाती हैं। कार्बनिक के परे खेती की शुरुआत लखनऊ के रहने वाले दीपांकर गुप्ता और गौरव रस्तोगी ने 2 साल पहले की थी।
इसके अलावा गोप्योर फार्म (Go Pure Farm) की शुरुआत शहर में रहने वाले ऋषभ द्ववेदी और प्रज्ञा द्विवेदी ने अपनी उच्च वेतन वाली कॉरपोरेट नौकरियाँ छोड़ने के बाद की थी।
गो प्योर एक हाइड्रोपोनिक खेती व्यवसाय है जो सब्जियाँ उगाने के लिए सुरक्षित और पौष्टिक है। उनके पास एक पॉलीहाउस (Polyhouse) है जो पौधों को उगने के लिए सही वातावरण प्रदान करने के लिए तापमान, मौसम और आद्रता को नियंत्रित करता है। यहाँ उगने वाले पौधे कीटनाशक मुक्त होते हैं। वे अभी तक चेरी टमाटर, ककड़ी, करेला, लौकी, ब्रोकली आदि सब्जियाँ उगा चुके हैं। ट्रांसपोर्ट नगर में एक इनडोर फार्म (Indoor Farm) है जो ओयस्टर मशरूम (Oyster Mushroom) उगाने में सक्षम है। नितिन श्रीवास्तव और नवीन गुप्ता द्वारा शुरू किए गए इस फॉर्म में बड़ी मात्रा में यह मशरूम उगाए जाते हैं। वे बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग करके सुरक्षित तरीके से मशरूम उगाते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3RjaZ63
https://bit.ly/3Rhd9Dr
https://bit.ly/3QhhJAj
https://bit.ly/3KJQcpT

चित्र संदर्भ
1. हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से उगाए जाने वाली मिर्च को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. हंगेरियन वैक्स पेपर्स उगाने के लिए डीप वाटर कल्चर तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से खेती करते भारतीय किसान को दर्शाता एक चित्रण (youtube)