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देशभर में दुर्गा पूजा की तैयारियां पूरे जोर-शोर से चल रही हैं। लेकिन हमारे लखनऊ में इस वर्ष की
महिषासुर मर्दिनी या दुर्गा पूजा कई मायनों में अनोखी एवं यादगार होने वाली है, क्यों की लखनऊ
के जानकीपुरम इलाके में इस वर्ष की दुर्गा पूजा और दशहरा उत्सव के लिए एक विशाल एवं भव्य
पंडाल बनाया जा है। यह इतना विशाल होगा की इसे अपने भव्य आकार के कारण गिनीज बुक
ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book of World Records) में भी शामिल किया जा सकता है।
राजधानी के जानकीपुरम इलाके में दुर्गा पूजा और दशहरा उत्सव के लिए बनाए जा रहे इस
शानदार पंडाल की ऊंचाई करीब 135 फीट है। इसी पंडाल पर गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड की
नजरें भी टिकी हैं। इसकी विशालता एवं भव्यता सभी को आश्चर्यचकित कर रही है। 'इस बार दुर्गा
पूजा पंडाल को वृंदावन के चंद्रोदय मंदिर की प्रतिकृति के रूप में बनाया जा रह हैं।
इसे बनाने के
लिए 52 कारीगर 90 दिनों से लगे हुए हैं तथा इसके निर्माण के लिए बांस आसाम से लाये गए हैं
और कपड़ा गुजरात से आया है। इसे बनाने वाले कारीगर और दुर्गा पूजा से लेकर दशहरे तक पूजा
कराने वाले पुजारी भी बंगाल से ही पधारे हैं। इस भव्य पंडाल के निर्माण में अभी तक ढांचे पर 56
लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। इससे पहले 135 फीट की ऊंचाई का एक पंडाल साल 2021 में ही पश्चिम
बंगाल के लेकटाउन (Laketown) में बनाया गया था। हालांकि अधिकारी इस बात को लेकर पूरी
तरह से आश्वस्त हैं कि यह पूजा पंडाल इस बार गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में अपनी जगह
बनाएगा और लखनऊ का गौरव बढ़ाएगा। इस अवसर पर देवी के शक्ति रूप और विशेष रूप से
महिषासुर मर्दिनी के पंडाल अति दर्शनीय होंगे।
दरसल महिषासुर हिन्दू धर्म में बेहद शक्तिशाली असुर था। वह ब्रह्म-ऋषि कश्यप और दनु का
पोता तथा रम्भा का पुत्र एवं महिषी का भाई था। इसे साहित्य में एक धोखेबाज दानव के रूप में
चित्रित किया गया है, जो आकार और रूप बदलने में माहिर था। महिषासुर एक संस्कृत शब्द है जो
महिषा से बना है जिसका अर्थ है "भैंस" और असुर का अर्थ है "दानव", जिसका अनुवाद "भैंस
दानव" होता है।
अपनी असुर प्रवृत्ति के अनुरूप एक बार महिषासुर ने देवताओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
महिषासुर को यह वरदान प्राप्त था कि कोई भी मनुष्य उसे मार नहीं सकता। देवों और राक्षसों
(असुरों) के बीच की लड़ाई में, इंद्र के नेतृत्व में सभी देवता महिषासुर से हार गए थे। अंततः हार के
बाद सभी देवता पहाड़ों में इकट्ठे हुए जहां उनकी संयुक्त दैवीय ऊर्जा, देवी दुर्गा में समा गई। इसके
पश्चात माँ दुर्गा ने सिंह पर सवार होकर महिषासुर के साथ भयंकर युद्ध किया और उसे मार डाला।
इसके बाद, उनका नाम महिषासुरमर्दिनी रखा गया, जिसका अर्थ है महिषासुर को मारने वाली।
भैंस राक्षस महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा को चित्रित करने वाली कलाकृति पूरे भारत,
नेपाल और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती है। महिषासुर की कथा देवी महात्म्य के रूप में जानी
जाने वाली शक्तिवाद परंपराओं के प्रमुख ग्रंथों में बताई गई है, जो मार्कण्डेय पुराण का हिस्सा है।
एक अन्य विस्तृत किवदंती के अनुसार महिषासुर और देवी दुर्गा में अंत तक जमकर लड़ाई हुई।
देवी और उसके शेर द्वारा अपनी सेना को बेरहमी से नष्ट होते देख महिषासुर ने एक राजसी और
भयंकर भैंस का रूप धारण कर लिया और देवी की सेना को भयभीत कर दिया। महिषासुर देवी के
शेर को मारने के लिए दौड़ा। इससे देवी क्रोधित हो गईं।
जब देवी ने महिषासुर को इतने क्रोध में
अपनी ओर बढ़ते हुए देखा, तो उन्होंने भैंस का आकार लिए उस असुर पर अपना फंदा फेंक दिया
और उसे बांध दिया। लेकिन महिषासुर ने जल्द ही अपने भैंस रूप को त्याग दिया और शेर बन
गया। लेकिन जब देवी ने उसके सिंह रूप का सिर काट दिया, तो उसने मानव रूप धारण कर लिया।
देवी ने तुरंत ही मानव रूप का भी वध कर दिया, और फिर दुष्ट महिषासुर ने एक विशाल हाथी का
रूप धारण कर लिया। जब देवी ने अपनी तलवार से उसकी सूंड काट दी, तो असुर ने फिर से भैंस का
रूप धारण कर लिया और तीनों लोकों को हिला दिया।
क्रोधित देवी और महिषासुर के बीच तब भयंकर युद्ध हुआ। आखिरकार देवी ने उसकी गर्दन को
अपने पैरों के नीचे कुचल दिया और उसे भाले से मारा। देवी के पैर के नीचे असहाय रूप से पकड़े
गए, महिषासुर ने फिर से मानव रूप लेने की कोशिश की, लेकिन वह केवल अपनी कमर तक ही
खुद को प्रकट कर पाया। जल्द ही देवी ने उनका सिर भी काट दिया। इस प्रकार युद्ध समाप्त हो
गया और महिषासुर की पूरी सेना नष्ट हो गई।
देवताओं ने दिव्य द्रष्टाओं के साथ देवी की स्तुति की। महिषासुर के अंत के उपलक्ष्य में गंधर्वों ने
मधुर संगीत गाया और अप्सराओं ने सुंदर नृत्य किया। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम, महिषासुर
मर्दिनी, अर्थात राक्षस महिष का नाश करने वाली देवी का एक लोकप्रिय भजन है। इस दिव्य भजन
की रचना देवी की मानवता पर दयालु प्रकृति के लिए एवं उनकी स्तुति करने के लिए की गई थी।
यह स्तोत्रम अपने शुरुआती शब्दों 'अय गिरी नंदिनी' के साथ-साथ 'जया जया महिषासुर मर्दिनी' के
अंत शब्दों के साथ भी बहुत लोकप्रिय है। दोनों शब्द अक्सर इस स्तोत्र के नाम के पर्यायवाची के
रूप में कार्य करते हैं।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के गीतों का गहरा अर्थ है और देवी से संबंधित कई विशेषताओं और कृत्यों
जैसे कि उनके योद्धा कौशल और राक्षसों (महिषासुर, सुंभ, निशुंभ, रक्तबीज, धूम्रलोचन और
अन्य) के साथ लड़ाई की व्याख्या करता है। इसके अलावा, स्तोत्रम के बोल उनके रूपों या शक्ति
जैसे काली, पार्वती, भगवती और कमला के बारे में बताते हैं। देवी की महानता को दर्शाने के लिए
इस स्तोत्र की रचना शानदार तरीके से की गई है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम गुरु आदि शंकराचार्य
द्वारा रचित है और माना जाता है कि यह भारत में शाक्त परंपरा के उदय के दौरान और 20 वीं
शताब्दी के मध्य से भी लोकप्रिय हुआ। हालांकि, कुछ लोग इस स्तोत्र को भगवती पद्य पुष्पांजलि
स्तोत्रम के एक भाग के रूप में कहते हुए रामकृष्ण कवि को श्रेय देते हैं। इस स्तोत्र का पाठ कब
करना है, इसके बारे में कोई विशेष प्रतिबंध नहीं हैं। आप जब चाहें इसका जप कर सकते हैं।
हालाँकि, इस स्तोत्र पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम के प्रत्येक श्लोक के
अर्थ को समझते हुए शांतिपूर्ण वातावरण में इसका पाठ करें।
सन्दर्भ
https://bit.ly/3Spnwpb
https://bit.ly/3C26giM
https://bit.ly/3SNPFpI
https://bit.ly/3dYzMxU
चित्र संदर्भ
1. महिसासुर एवं लखनऊ के दुर्गा पंडाल को दर्शाता एक चित्रण (youtube, Flickr)
2. रात्रि में लखनऊ के दुर्गा पंडाल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. मां दुर्गा एवं महिसासुर के बीच युद्ध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कटी गर्दन के साथ महिसासुर को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
5. माता के महिसासुर मर्दिनी स्वरूप को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
6. महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम को दर्शाता एक चित्रण (google)