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 कुछ शोधकर्ताओं को मोरक्को (Morocco), जो उत्तरी अफ्रीका का एक देश है, में 315000 वर्ष पुराने मानवो के अवशेष मिले हैं। यह खोज हमारी मानव प्रजातियों (Homo sapiens) की उत्पत्ति को हमारे आज के अनुमान से भी 100000 वर्षों पीछे की बता सकती है। यह खोज उस अनुमान के भी खिलाफ है जो यह कहता है कि हमारी उत्पत्ति सिर्फ पूर्वी अफ्रीका में ही हुई है। शोधकर्ताओं की मानें तो यह उत्तरी अफ्रीका में ऐसे जीवाश्म की पहली ही खोज है। यह इस बात का भी सबूत है कि न केवल दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका बल्कि पूरे अफ्रीका में मानव जाति का इतिहास रहा है क्योंकि इससे पहले की खोज केवल पूर्वी तथा दक्षिण अफ्रीका में ही हुई थी। मोरक्को की खोज के अवशेष जिसमें टूटी हुई खोपड़ी और एक निचला जबड़ा शामिल है, संभवतः पांच अलग-अलग व्यक्तियों के हैं जिसमें तीन युवक, एक किशोर तथा एक 8 साल का बच्चा हो सकता है।
इस शोध के लेखक तथा एक वैज्ञानिक,मिस्टर हबलिन (Mr. Hublin) 1980 के करीब जेबेल इरहाउड(Jebel Irhoud)नामक एक पुरातात्विक स्थल से परिचित हुए,जब उन्हें उस स्थान पर एक बच्चे के निचले जबड़े की हड्डी का जीवाश्म देखने को मिला। उसके पहले 1961 में खनन कार्य करने वालों को वहां एक पूर्ण मानव खोपड़ी मिली थी। बाद में एक मस्तिष्क कोश (braincase) के साथ पत्थर के कुछ औजार तथा मानव निवास के अन्य सबूत भी मिले थे। शोधकर्ताओं का अनुमान था कि वे हड्डियां लगभग 40000 साल पुरानी थी और तब उन्होंने प्रस्ताव रखा कि निएंडरथल (Neanderthals) उत्तरी अफ्रीका में रहते थे। निएंडरथल और आर्केक(Archaic) मानवों की विलुप्त प्रजाति थी जो 40000 सालों पहले यूरेशिया में रहते थे।
हाल ही में खोजकर्ताओं ने कहा है कि जेबेल इरहाउड के मानव एक पुरातन प्रजाति रही होगी जो उत्तरी अफ्रीका में, सहारा के दक्षिण से होमोसेपियंस द्वारा प्रस्थापित होने तक जीवित रही होगी। अधिकांश वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्वी अफ्रीका में ही हमारे मानव प्रजाति का विकास हुआ है। इसका सबूत यह है कि इथियोपिया (Ethiopia )(पूर्वी अफ्रीका में एक देश) से होमोसेपियंस के 2 सबसे पुराने ज्ञात जीवाश्म पाए गए थे। वे क्रमशः 196,000 और 160,000 सालों पुरानी खोपड़िया है। वहीं दूसरी ओर, दुनिया की वर्तमान समय की आबादी के डीएनए अध्ययन भी 200000 सालों पहले अफ्रीकी मूल में उत्पत्ति की ओर इशारा करता है।
जेबेल इरहाउड में पाए गए जीवाश्म के दांत हालांकि वर्तमान मानव के दांतो की तुलना में बड़े थे, परंतु फिर भी वह होमोसेपियंस से ज्यादा मिलते जुलते थे और न कि निएंडरथल या अन्य आर्केक मानव से। तथा वहां की खोपड़ी भी बाद के होमोसेपियंस की तुलना में लंबी थी और इससे साबित होता है कि हमारे और उनके दिमाग अलग अलग तरह से विकसित हुए थे। यह बातें वर्तमान मानव में होमोसेपियंस के वंश के विकास को हमारे सामने प्रस्तुत करती है। हबलिन कहते हैं कि, “शायद वर्तमान मानव को अपने दिमाग के आकार में परिवर्तन होने से पहले ही अपने विशिष्ट चेहरे मिल गए होंगे।“ इसके अलावा जेबेल इरहाउड के जीवाश्म और अन्य होमोसेपियंस के अफ्रीका के कुछ अलग हिस्सों से मिले जीवश्मो का मिश्रण हमारी प्रजाति के लिए विविध तरह से उत्पत्ति को इंगित करता है और पूर्वी अफ्रीका के मूल के बारे में संदेह व्यक्त है। 
 अतः वैज्ञानिकों के अनुसार 300000 साल पहले पूरे अफ्रीका में हमारी सबसे पुरातन प्रजाति का निवास था।
हमारा ध्यान खींचने वाली एक अन्य बात यह है कि वर्तमान मानव यानी कि हम पुरातन मानव, जिनका पहले विकास हुआ था से विभिन्न आयामों में अलग है जो निम्नोलेखित हैं - 
•छोटे शरीर -
वर्तमान मानव यानी कि हम हमारे पूर्वज प्रजातियों की तुलना में छोटे, हल्के और छोटी हड्डी वाले हैं। यह विकास पिछले 10000 सालों में सबसे अधिक हुआ है। ‘यूरोपियन पुरुषों की तुलना में 40000 साल पहले के मानवों की ऊंचाई कितनी थी?’ इसके बारे में एक अध्ययन भी है।उस अध्ययन के अनुसार 40000 वर्षों पहले यूरोपियन पुरषों की ऊंचाई औसतन 183 सेंटीमीटर, 10000 वर्षों पहले 162.5 सेंटीमीटर, 600 वर्ष पहले 165 सेंटीमीटर तथा आज उनकी ऊंचाई 175 सेंटीमीटर के आसपास है। इस शरीर के आकार को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक आनुवांशिकी, पर्यावरण और आहार तथा प्रौद्योगिकी है।
• छोटेमस्तिष्क –
आज हमारे मस्तिष्क हमारी सबसे पहली प्रजातियों की तुलना में औसतन 100–150 क्यूबिक सैंटीमीटर(cc), कम है। 100000 वर्षों पहले मस्तिष्क का आकार 1500 cc, 12000 वर्षों पहले 1450cc था, जबकि आज के समय में केवल 1350 cc है।
• छोटे दांत तथा जबड़े–
हमारे जबड़े तथा दातों के आकार में भी पिछले 30000 वर्षों में कमी आई है। यह परिवर्तन शरीर के आकार में कमी के कारण हुए हैं। हालांकि पिछले 10000 वर्षों में आहार में बदलाव तथा प्रौद्योगिकी के कारण ही ऐसा हुआ है।
• भौतिक विविधता का विकास–
आज हम जो विविधता दर्शाते हैं वह पहले होमोसेपियंस में नहीं थी। अफ्रीका में रहने के कारण उन्होंने वहां की जलवायु के हिसाब से भौतिक विशेषताओं का विकास किया था और वे आमतौर पर एक जैसे ही दिखते थे। फिर 100000 वर्षों पहले मनुष्य दुनिया के प्रत्येक कोने में जाने लगे और वहां की विभिन्न जलवायु के अनुसार इनमें भौतिक बदलाव होते गए। 
हाल ही के डीएनए(DNA) अध्ययन (2007 से) बताते हैं कि इसी समय के दौरान आनुवांशिक लक्षण बदल गए या नए वातावरण के अनुसार हो गए हैं। वैसे तो पिछले 40000 वर्षों में परिवर्तन की दर में तेजी से विकास हुआ है। फिर भी त्वचा और आंखों का रंग, बालों का प्रकार और रंग, शरीर का आकार आदि शारीरिक विशेषताएं आनुवांशिकी द्वारा निर्धारित होती है। परंतु यह विशेषताएं पर्यावरण से भी प्रभावित हो सकती है, और यह माना जाता है कि हमारी शारीरिक विशेषताओं को विकसित करने के लिए पर्यावरण लंबे समय तक हमारे जींस(Genes) पर कार्य करता रहेगा।
जिस प्रकार के हमारे सबसे पूर्वज मानवों के जीवाश्म मोरोक्को में मिले थे,तब से लेकर आज तक वर्तमान मानव में जो बदलाव हुआ है वह प्रकृति की एक चमत्कारी देन है। ‘हमारा विकास कैसे हुआ तथा आज हम हमारे पूर्वजों से कैसे भिन्न है’ के बारे में शायद और अध्ययन करना हमारे लिए आवश्यक है और यह निश्चित ही हर कदम पर हमारे लिए एक अचंभित करने वाला तथ्य लेकर आएगा।
संदर्भ–
https://go.nature.com/3YcMiML 
https://bit.ly/3F2QK7L 
चित्र संदर्भ
1. मानव विकास क्रम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. स्मिथसोनियन प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में मानव खोपड़ी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जेबेल इरहौद (मोरक्को) में जीन-जैक्स हुब्लिन, कुचली हुई मानव खोपड़ी की ओर इशारा करते हुए दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कई मूल जीवाश्मों के सूक्ष्म संगणित टोमोग्राफिक स्कैन के आधार पर जेबेल इरहौद से ज्ञात होमो सेपियन्स जीवाश्मों का एक समग्र पुनर्निर्माण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)