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  क्या आप जानते हैं कि पवित्र इस्लामिक धर्म ग्रंथ ‘कुरान शरीफ़’ में  “अल्लाह" और  “रब" के बाद इल्म अर्थात  “ज्ञान" शब्द का प्रयोग सबसे अधिक (750) बार किया गया है, जो यह दर्शाता है कि इस्लामिक समाज में मानव चेतना और ज्ञान अर्जित करने को कितना महत्वपूर्ण माना गया है।
कुरान में मानव जाति को सोचने, विचार करने और ज्ञान प्राप्त करने के लिए कई बार प्रेरित किया गया है। पैगंबर मुहम्मद द्वारा बताई गई पहली आयत ‘इकरा’ का अर्थ भी “पढ़ना", अर्थात पढ़ने, लिखने और विचार करने के लिए द्वार खोलना है । धार्मिक ग्रंथ के माध्यम से पैगंबर मुहम्मद ने ज्ञान के महत्व पर जोर देते हुए मुसलमानों को आदेश दिया कि वे जितना अधिक हो सके उतना ज्ञान प्राप्त करें,  और हर समय ज्ञान प्राप्त करने के लिए तैयार रहें । 
चौथे खलीफा अली इब्न अबू तालिब  ने ज्ञान के महत्व पर जोर देते हुए एक बार कहा था, “मैं उस व्यक्ति का गुलाम बनूंगा, जो मुझे लिखना सिखाता है”। पैगंबर के आदेशों और परंपराओं का पालन करते हुए, मुस्लिम शासकों द्वारा भी मुस्लिमों को शिक्षित करने पर काफी जोर दिया गया।
कुरान और इस्लामी परंपराओं (हदीस) को संरक्षित करने के उद्देश्य से इस्लामिक दुनिया में प्रारंभिक पुस्तकालयों की स्थापना की गई। इस्लाम के शुरुआती दशकों के दौरान, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक गतिविधियों का केंद्र मानी जाने वाली मस्जिदों में धर्म, दर्शन और विज्ञान पर आधारित पुस्तकों का संग्रह मिलता था। मध्यकाल के दौरान आर्थिक रूप से संपन्न मुसलमानों ने उस समय के कुछ सबसे बड़े पुस्तकालयों की स्थापना भी की। 
तीसरे खलीफा माने जाने वाले अब्बासिद खलीफा (Abbasid Caliphate) ने कुरान और हदीस से प्रभावित होकर, ज्ञान के मूल्य पर बल देते हुए कहा था कि  “विद्वान की स्याही, शहीद के खून के बराबर होती है"। इस अवधि के दौरान, इस्लामिक समाज विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा और शिक्षा के लिए बेजोड़ बौद्धिक केंद्र बन गया था। अब्बासिद  द्वारा ज्ञान को बढ़ावा देने के कारण ही बगदाद में दार अल-हिकमाह ‘ज्ञान का घर’ ( Dar al-Hikmah,  “House of Wisdom”) पुस्तकालय की स्थापना की गई। हाउस ऑफ विजडम के साथ ही बगदाद में कई अन्य पुस्तकालय भी मौजूद थे। प्रत्येक पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें और पांडुलिपियाँ मौजूद थीं। इस दौरान कई निजी व्यक्तिगत पुस्तकालय भी स्थापित किये गए, जिन्हें विशेषतौर पर वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, शोधकर्ताओं और लेखकों के लिए खोला गया था
ज्ञान अर्जित करने की इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए इस्लामी दुनिया के पूर्वी प्रांतों के शहरों जैसे (मोसुल (Mosul), बसरा (Basra) और शिराज (Shiraz) आदि में, 9वीं और 10वीं शताब्दी के दौरान कई  “ज्ञान के घर" (दार  अल-इल्म) स्थापित किए गए थे। इसके अलावा काहिरा, अलेप्पो (Aleppo), ईरान और मध्य एशिया के प्रमुख शहरों में इसी तरह के पुस्तकालय थे। माना जाता है कि अकेले स्पेन (Spain) में ऐसे सत्तर सार्वजनिक पुस्तकालय थे। 
इस्लामिक स्वर्ण युग के दौरान गणित, खगोल विज्ञान और चिकित्सा जैसे वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई। मुस्लिम विद्वानों ने बीजगणित और त्रिकोणमिति का विकास किया, साथ ही यंत्र विज्ञान  में भी कई सुधार किये । इसके अलावा इस दौर में चिकित्सा उपकरणों के विकास और अस्पतालों की स्थापना सहित चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की गई। मुस्लिम विद्वानों ने प्राचीन ग्रीक और रोमन ग्रंथों का अरबी में भी अनुवाद किया।
फ़ारसी मूल के अल-फ़राबी (Al-Farabi) इस्लामिक स्वर्ण युग के सबसे प्रसिद्ध विद्वानों में से एक माने जाते थे, जिन्होंने दर्शन, संगीत और राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 
13वीं शताब्दी के बाद से विभिन्न राजनीतिक और आर्थिक उतार-चढ़ावों के कारण, इस्लामी स्वर्ण युग का पतन शुरू हो गया। लेकिन इस दौरान भी मुस्लिम विद्वानों के विचारों और योगदान से पश्चिमी विचार और संस्कृति काफी हद तक प्रभवित हो रही थी। मुस्लिम विद्वानों द्वारा किये गए प्राचीन ग्रीक तथा रोमन ग्रंथों के संरक्षण और अनुवाद ने यूरोप में पुनर्जागरण के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुस्लिम विद्वानों ने वैज्ञानिक पद्धति के विकास में भी अहम योगदान दिया, जिसने आधुनिक वैज्ञानिक जांच की नींव रखी। इस्लामिक स्वर्ण युग महान बौद्धिक और सांस्कृतिक उत्कर्ष का काल माना जाता था। मुस्लिम विद्वानों की विरासत आज भी पश्चिमी विचार और संस्कृति को प्रभावित करती है।मुस्लिम विद्वानों ने तर्क दिया कि  “मुसलमानों को पालने से लेकर कब्र तक सीखते रहना है।" 
मुसलमानों को जो ज्ञान अर्जित करना है, उसे अल-उलुम अल-इस्लामिया (इस्लामी विज्ञान) कहा जाता है। इसके दो भाग होते हैं:
I) अल-उलुम अन-नकलिया (Al-Ulum an-Naqliyya): अल-'उलुम अन-नक़लिया को  ‘धार्मिक विज्ञान' भी कहा जाता है। यह विज्ञान अहल अस-सुन्नत के  ‘उलमा' की किताबों को पढ़कर प्राप्त किया जाता हैं। इस्लाम के  ‘उलेमा' ने इन विज्ञानों को चार मुख्य स्रोतों (अल-कुरान अल-करीम, अल-हदीस राख-शरीफ, इजमा  ‘अल-उम्मा और कियास अल-फुकाहा' ) से प्राप्त किया। इन चार स्रोतों को अल-अदिल्लत अश-शरिया कहा जाता है। 
धार्मिक विज्ञान में आठ मुख्य शाखाएँ शामिल हैं:
1) इल्म अत-तफसीर (कुरान अल-करीम की व्याख्या का विज्ञान)।
 
2) इल्म अल-उसूल अल-हदीस।
 
3) इल्म अल-हदीस।
4) इल्म अल-उसूल अल-कलाम
5) इल्म अल कलाम।
6) इल्म अल-उसुल अल-फ़िक़्ह।
 
7) इल्म अल-फ़िक़्ह। 
8) इल्म अत-तसव्वुफ़।
II) अल-उलुम अल-अकलिया (Al-Ulum al-Aqliyya): अल-उलुम अल-अकलिया को  ‘प्रायोगिक विज्ञान' भी कहा जाता है। इन विज्ञानों को दो समूहों (तकनीकी विज्ञान और साहित्यिक विज्ञान) में विभाजित किया गया है। मुसलमानों के लिए इन विज्ञानों को सीखना जरूरी बताया गया है। 
संदर्भ 
https://bit.ly/3YUSNU6
https://bit.ly/3YSR6qp
चित्र संदर्भ 
1. अल्लाह की इबादत को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. कुरान पढ़ती बच्ची को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मुहम्मद अव गजनवी को दर्शाता एक चित्रण (Store norske leksikon)
4. फ़ारसी मूल के अल-फ़राबी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)