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                                             नवाबों के शहर के नाम से प्रसिद्ध हमारा लखनऊ शहर भारत के सबसे प्रतिष्ठित शहरों में से एक माना जाता है। यहां की विरासत और संस्कृति अद्भुत तथा असाधारण है। विभिन्न प्रकार के व्यंजनों की उपस्थिति शहर को और भी अधिक आकर्षक बना देती है। यहां का इतिहास मुगलों, अवध के नवाबों और अंग्रेजों से सम्बंधित है तथा भारत की कुछ बेहतरीन वास्तुकलाओं के दृश्यों को यहां आसानी से देखा जा सकता है। हम सभी लखनऊ की भुलभुलैया, बड़ा इमामबाड़ा और रूमी दरवाजे से तो भली-भांति परिचित हैं, लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं, जो यह जानते हैं कि लखनऊ में कई ऐतिहासिक और शानदार चर्च भी मौजूद हैं। इन्हीं चर्चों में से एक चर्च लखनऊ का सबसे पुराना क्राइस्ट चर्च (Christ Church) है। ऐसा माना जाता है कि यह चर्च उत्तर भारत का पहला एंग्लिकन (Anglican) चर्च है और शायद हमारे देश में अंग्रेजों द्वारा बनाया गयातीसरा चर्च है।तो आइए, गुड फ्राइडे (Good Friday) के इस मौके पर लखनऊ के क्राइस्ट चर्च के इतिहास और इसकी वास्तुकला की जानकारी प्राप्त करें तथा साथ ही यह भी जानें कि क्रॉस (Cross) पर लटकते हुए ईसा मसीह द्वारा अपने अंतिम समय में क्या पवित्र वचन कहे गए थे?
क्राइस्ट चर्च एक ऐतिहासिक इमारत है जो कि लखनऊ के हजरतगंज क्षेत्र में स्थित है। यह उत्तरी भारत का पहला तथा भारत का तीसरा अंग्रेजी चर्च है। अंग्रेजों ने अपना पहला चर्च  1680 में मद्रास (चेन्नई) में बनाया था, जिसे सेंट मैरी (St. Mary's) चर्च नाम दिया गया था। इसके बाद 1770 में कलकत्ता में ‘सेंट जॉन्स चर्च’ (St. John's Church) की स्थापना की गई, जिसके बाद 1810 में लखनऊ में ब्रिटिश रेजिडेंसी में सेंट मैरी चर्च की स्थापना की गई । ऐसा माना जाता है कि सेंट मैरी चर्च की इमारत का निर्माण अवध के तत्कालीन शासक नवाब सआदत अली खान द्वारा कराया गया था। 1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, चर्च को भारी गोलाबारी से पूरी तरह नष्ट कर दिया गया था, जिसके बाद  इस विद्रोह में जो भी ब्रिटिश सैनिक मारे गए थे, उनके सम्मान में 1680 में हजरतगंज में क्राइस्ट चर्च का निर्माण किया गया। इस चर्च को मूल रूप से इंग्लैंड  के चर्च (Church of England) के रूप में जाना जाता था और इसे जनरल हचिंसन (Hutchinson) द्वारा डिजाइन किया गया था। इस चर्च को गोथिक (Gothic) वास्तु कला शैली में बनाया गया है। इस चर्च के शीर्ष पर बीस मीनारें हैं, तथा चर्च के उत्तर में प्रवेश द्वार पर एक क्रॉस लगा हुआ है।
 इस क्रॉस के निर्माण को एक  विशिष्ट योजना के तहत मानव जाति के लिए मसीह के बलिदान के रूप में कार्यरत किया गया था। चर्च को इस तरह से बनाया गया था कि इसमें करीब एक सौ तीस लोग एक साथ बैठकर प्रार्थना कर सकते हैं । इसकी आंतरिक दीवारों में अभी भी बड़ी संख्या में संगमरमर और पॉलिश की हुई पीतल की पट्टियां लगी हुई हैं। इन पट्टियों पर संघर्ष के दौरान मारे गए ब्रिटिश सेना के अधिकारियों, नागरिकों और पादरियों के नाम लिखे हुए हैं। संगमरमर की एक पट्टी जेम्स ग्रांट थॉमसन (James Grant Thomson) को समर्पित है, जो मुहम्मदी के उपायुक्त थे। अभिलेखों के अनुसार 5 जून, 1857 को अवध के औरंगाबाद में विद्रोहियों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी। एक अन्य पट्टिका श्रद्धेय हेनरी पोलहैम्प्टन (Henry Polehampton) को समर्पित है। 
1904  में क्राइस्ट चर्च का विस्तार और सुधार किया गया । चर्च के अंदर लगे हुए क्रॉस,  भव्य रेलिंग आदि चर्च को भव्य रूप प्रदान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 1933 में भूकंप के कारण क्रॉस मुड़ गया था। चर्च के दरवाजों और खिड़कियों पर रंगीन कांच के भित्ति चित्र लगाए गए हैं, जो ईसाई धर्म के प्रतिष्ठित प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आज, क्राइस्ट चर्च एक महाविद्यालय के रूप में भी कार्य करता है तथा यह ‘काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन’ (Council for the Indian School Certificate Examinations) से सम्बंधित है। हर साल गुड फ्राइडे (Good Friday) , क्रिसमस और अन्य विभिन्न मौकों पर चर्च में विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रोम (Rome) साम्राज्य के क्रूर शासक ने राजद्रोह के आरोप में ईसा मसीह (Jesus Christ) को सूली पर लटका दिया था जिसके बाद शुक्रवार के दिन ईसा मसीह ने अपने प्राण त्याग दिए थे, और इसलिए तब से ईसा मसीह की याद में गुड फ्राइडे मनाया जाता है। 
सूली पर लटकते हुए ईसा मसीह ने अपने कुछ अंतिम पवित्र वाक्य कहे थे। आइए यीशु के सूली पर चढ़ाए जाने के प्रत्येक कथन के अर्थ और महत्व पर एक नज़र डालें-
अपने पहले वाक्य में वे कहते हैं कि,“हे पिता! तुम इन लोगों को माफ करना क्योंकि ये नहीं जानते, कि ये क्या कर रहे हैं”। इन शब्दों  के माध्यम से  यीशु ने सैकड़ों वर्ष पहले यशायाह द्वारा की गई भविष्यवाणी को पूरा किया।
दूसरे वाक्य में वे अपने साथ मौजूद अन्य अपराधी से कहते हैं, कि “आज से तुम मेरे साथ स्वर्गलोक में रहोगे”। इन शब्दों के माध्यम से यीशु यह संदेश देते हैं कि चाहे पाप कितना भी गंभीर क्यों न हो, जीवन की अंतिम सांसों में भी मसीह से मुक्ति और क्षमा का अवसर सभी के पास  है।
तीसरे वाक्य में यीशु अपनी माता मरियम से एक नया संबंध स्थापित करते हुए कहते हैं, कि “हे नारी, अपने उस पुत्र को संभालो, जिसके लिए अब तुम्हारे मन में मातृ स्नेह होना चाहिए”। इन शब्दों के माध्यम से  यीशु दर्शाते हैं कि वह हमारे लिए चिंतित है ।
अपने अगले वाक्य में यीशु कहते हैं कि “हे भगवान, हे भगवान, आपने मुझे क्यों छोड़ दिया”? इन शब्दों के द्वारा यीशु बताना चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का ईश्वर में विश्वास होना चाहिए। मुश्किल समय में परमेश्वर कभी भी साथ नहीं छोड़ते और इसलिए हमें ईश्वर के अस्तित्व पर संदेह नहीं करना चाहिए ।
यीशु खुद को पूरी तरह से इंसान बताना चाहते थे, इसलिए अपनी वास्तविक भौतिक आवश्यकताओं का अनुभव कराने के लिए वे कहते हैं, कि “मैं प्यासा हूं”। 
अपने अगले वाक्य में यीशु कहते हैं, कि “यह समाप्त हुआ”। यीशु ने हमें अपने जीवन  की अंतिम पंक्तियों के माध्यम से शांति और सिर्फ शांति  कहना सिखाया।
अपने अंतिम वाक्य में यीशु कहते हैं, कि “मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों में सौंपता हूं”। इन शब्दों के द्वारा यीशु कहते हैं  कि हम उनके स्वर्गीय पिता के समान सिद्ध हों। 
ईसा मसीह के इन पवित्र वाक्यों को गुड फ्राइडे के दिन विशेष तौर पर याद किया जाता है।
 
 
संदर्भ:  
https://bit.ly/43cxVKu 
https://bit.ly/3nKzZJz 
https://bit.ly/3KfbIDd 
 
चित्र संदर्भ 
1. लखनऊ के क्राइस्ट चर्च को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
2. क्राइस्ट चर्च को दर्शाता एक चित्रण (prarang) 
3. शूली में चढ़े यीशु को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare) 
4. यीशु को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare) 
5. गुड फ्राइडे को दर्शाता चित्रण (pixabay)