| Post Viewership from Post Date to 27- Apr-2024 (31st Day) | ||||
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प्रत्येक वर्ष 27 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच समुदाय’और ‘अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान’ (International Theatre Institute (ITI) द्वारा 'विश्व रंगमंच दिवस' (World Theatre Day) मनाया जाता है। इस दिन, मनोरंजन के क्षेत्र में रंगमंच से जुड़े लोगों के महत्त्व और समाज में उनके द्वारा लाए जाने वाले परिवर्तनों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए रंगमंच कलाओं का जश्न मनाया जाता है। हमारे मेरठ शहर में रंगमंच कला व्यापक रूप से लोकप्रिय है। तो आइए आज 'विश्व रंगमंच दिवस’ इस मौके पर ‘अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान’ के विषय में विस्तार से जानते हैं। इसके साथ ही हमारे शहर मेरठ की फलती-फूलती फिल्म इंडस्ट्री और रंगमंच की नई अवधारणा, जिसे 'रूफटॉप ड्राइव-इन-थिएटर' (rooftop drive-in-theatre) कहा जाता है, के विषय में समझते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान’(ITI) की स्थापना रंगमंच और नृत्य विशेषज्ञों और यूनेस्को (UNESCO) द्वारा 1948 में की गई थी। यह संस्थान दुनिया का सबसे बड़ा प्रदर्शन कला संगठन है। यह संगठन एक ऐसे समाज के पुनर्गठन के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है जिसमें प्रदर्शन कलाओं और उनसे संबंधित कलाकारों की प्रगति हो। इसके द्वारा यूनेस्को के आपसी समझ और शांति के लक्ष्यों को बढ़ावा देकर उम्र, लिंग, पंथ या जातीयता की परवाह किए बिना सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के संरक्षण और प्रचार को प्रोत्साहित किया जाता है। यह संस्थान प्रदर्शन कला शिक्षा, अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान और सहयोग, युवा प्रशिक्षण के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करता है। अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान’ का उद्देश्य रंगमंच कला में ज्ञान और अभ्यास के अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है ताकि लोगों के बीच शांति और मित्रता को बढ़ावा दिया जा सके, थिएटर कला में सभी लोगों के बीच आपसी समझ को गहरा किया जा सके और रचनात्मक सहयोग बढ़ाया जा सके।
इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, इस संस्थान द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं:
लाइव (live) प्रदर्शन कला, नाटक, नृत्य, संगीत रंगमंच के क्षेत्र में गतिविधियों और सृजन को प्रोत्साहित करना;
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, प्रदर्शन कला विषयों और संगठनों के बीच मौजूदा सहयोग का विस्तार करना;
अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय स्थापित करना और सभी देशों में ITI के राष्ट्रीय केंद्रों की स्थापना को बढ़ावा देना;
प्रदर्शन कला के क्षेत्र में दस्तावेज़ एकत्र करना, सभी प्रकार की जानकारी प्रसारित करना और प्रकाशन जारी करना;
"थिएटर ऑफ नेशंस" (Theatre of Nations) उत्सव के विकास में सक्रिय रूप से सहयोग करना और क्षेत्रीय और अंतर्राज्यीय दोनों स्तरों पर नाट्य सम्मेलनों, कार्यशालाओं और विशेषज्ञों की बैठकों के साथ-साथ, प्रदर्शनियों और प्रतियोगिताओं के आयोजन को प्रोत्साहित और समन्वयित करना। इसके सदस्यों के साथ सहयोग करना;
प्रदर्शन कलाओं के मुक्त विकास को प्रोत्साहित करना और प्रदर्शन कला पेशेवरों के अधिकारों की सुरक्षा में योगदान देना।
क्या आप जानते हैं कि अपनी भाषा, कला और संस्कृति के समृद्ध इतिहास को बनाए रखने के लिए, हमारे शहर मेरठ ने अपना स्वयं का ग्रामीण सिनेमा उद्योग विकसित किया है, जिसे स्थानीय लोग 'मॉलीवुड' कहते हैं। बॉलीवुड के विपरीत, यहां फिल्में सिनेमाघरों में रिलीज नहीं होती हैं बल्कि सीडी के रूप में बाजार में वितरित की जाती हैं। एक सीडी की कीमत 25 रुपये से 40 रुपये के बीच होती है। हरियाणवी बोली में बनी ये फिल्में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में बेहद लोकप्रिय हैं। बड़े पर्दे पर रिलीज न होने के बावजूद मॉलीवुड़ का व्यापार काफी व्यापक है और अच्छा मुनाफा कमा रहा है। इसका एक कारण यह हो सकता है कि स्थानीय लोग अभिनेताओं को, अपनी स्थानीय बोली में जिसे सुनना पसंद करते हैं और अच्छे से समझ पाते हैं, ऐसी भूमिकाएँ निभाते हुए देखना पसंद करते हैं जिनसे वे खुद को जोड़ पाते हैं।
आउटलुक पत्रिका में 2006 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में मॉलीवुड़ के व्यापार की कीमत करीब 100 करोड़ रुपये आंकी गई थी। 2007 में भी दैनिक जागरण में प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट में मॉलीवुड का कारोबार 100 करोड़ रुपये तक पहुँचने का दावा किया गया था। इसमें बताया गया था कि कलाकार, तकनीशियन और वितरकों सहित लगभग 5,000 लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। हर साल तीन सौ फ़िल्में रिलीज़ होती हैं और पिछले दो वर्षों के दौरान 2,000 से अधिक सीडी बाज़ार में आई हैं। मॉलीवुड की शुरुआत 1990 के दशक में ऑडियो टेप पर रिकॉर्ड किये गए कॉमेडी कार्यक्रमों के साथ मानी जा सकती है। 21 वीं सदी की शुरुआत तक ऑडियो टेप की जगह सीडी ने ले ली। सीडी के आगमन के साथ, और टी-सीरीज़ और मोजर बेयर जैसी फिल्म और संगीत निर्माण कंपनियों के इसमें शामिल होने से कॉमेडी ऑडियो व्यवसाय ने एक पेशेवर मोड़ ले लिया। 2000 में, अभिनेता और मिमिक्री (mimicry) कलाकार कमल आज़ाद ने टी-सीरीज़ के साथ मिलकर 'वेरी गुड' (Very Good) नाम के चुटकुलों की ऑडियो सीडी जारी की। उद्योग जगत के लोग अक्सर इसे मॉलीवुड की शुरुआत बताते हैं। इसके बाद बाज़ार में सीडी की बाढ़ आ गई।
जल्द ही, चलन ऑडियो से वीडियो की ओर स्थानांतरित हो गया और लोगों ने उन्हें फिल्मों के रूप में संदर्भित करना शुरू कर दिया, हालांकि वे केवल 40 मिनट से एक घंटे तक लंबे होते थे। 2004 में, फिल्म धाकड़ छोरा रिलीज़ हुई और बड़ी हिट रही। यह उद्योग के संक्षिप्त इतिहास में एक मील का पत्थर बन गई और इसे अक्सर मॉलीवुड का 'शोले' कहा जाता है। मॉलीवुड की दीवानगी ने कई संपन्न लोगों को ऐसी फिल्मों में अभिनय करने और निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। 2006 में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ (Times of India) की एक रिपोर्ट के मुताबिक हीरो वकील की भूमिका निभाने के लिए चौधरी योगेन्द्र सिंह ने 1.5 लाख रुपये खर्च किए और 'खेल किस्मत का’ फिल्म बनाई। कुछ बॉलीवुड निर्देशकों और निर्माताओं ने भी यहां अपना हाथ भी आजमाया। 2007 की दैनिक जागरण रिपोर्ट में कहा गया, "बॉलीवुड में निर्देशक के रूप में 26 साल कार्य करने वाले मोहम्मद हनीफ ने मॉलीवुड में लोफर, अंगार ही अंगार और प्यार की जंग सहित कई अन्य फिल्में बनाईं।" 2009 में सीडी कारोबार के खत्म होने के बाद मॉलीवुड में थोड़ी गिरावट आई लेकिन इस समस्या के एक समाधान के रूप में 16 mm फिल्में बनाई गई। 'नटखट' ऐसी पहली फिल्म थी, फिल्म के चार प्रिंट जारी किये गये। फिल्म ने अच्छा प्रदर्शन किया और कई निर्माता आगे आये।
आपने स्वदेश फ़िल्म में गांव वालों को खुले आसमान के नीचे पर्दे पर फ़िल्म देखते हुए देखा होगा। क्या आपने भी ऐसा अनुभव किया है कभी? यदि नहीं तो इस अनुभव का आनंद आप मुंबई में बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) में ले सकते हैं जहाँ भारत का पहला स्थायी रूफटॉप ड्राइव-इन-थिएटर बना है जिसे जियो ड्राइव-इन-थिएटर (Jio Drive-in-Theatre) कहा जाता है। इसका आनंद उठाने के लिए आपको रैंपवे से छठी मंजिल की छत तक धीमी गति से कार ड्राइव कर के जाना होगा। जहाँ ड्राइव-इन-थिएटर में नकली घास और एक छोर पर एक बड़ी स्क्रीन के साथ एक विशाल खेल का मैदान आपको दिखेगा। यहाँ 290 कारों को समायोजित करने के लिए पर्याप्त बड़ी छत है। यहाँ आप चाहे तो अपनी कार में बैठकर या फिर पंक्तियों पर लगी बेंचों पर बैठकर फ़िल्म का आनंद ले सकते हैं। बड़े परदे पर फिल्म देखने का अनुभव पॉपकॉर्न के बिना पूरा नहीं होता। जब भोजन की बात आती है तो ड्राइव-इन में वे सभी विकल्प होते हैं जिनकी आप मूवी थिएटर में अपेक्षा करते हैं: पास्ता, पिज्जा, मोमोज, फ्रैंकी, रोल, पॉपकॉर्न, स्टीम्ड कॉर्न, पेस्ट्री और आइसक्रीम।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2cfzt2x5
https://tinyurl.com/v4jxbta3
https://tinyurl.com/yt8wfwae
चित्र संदर्भ
1. एक फ़िल्म की शूटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. रूफटॉप ड्राइव-इन-थिएटर को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
3. थिएटर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. फ़िल्म के पोस्टरों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. धाकड़ छोरा के पोस्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
6. जियो ड्राइव-इन-थिएटर को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)