आइए, पता लगाएं कि क्या जानवरों के अंग, इंसानों के लिए सुरक्षित हैं

डीएनए के अनुसार वर्गीकरण
04-11-2024 09:25 AM
Post Viewership from Post Date to 05- Dec-2024 (31st) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2657 70 0 2727
* Please see metrics definition on bottom of this page.
आइए, पता लगाएं कि क्या जानवरों के अंग, इंसानों के लिए सुरक्षित हैं
मेरठ के कुछ लोगों के लिए ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन नया शब्द हो सकता है। इसका मतलब है एक जीव से दूसरे जीव में जीवित कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों का प्रतिरोपण। इन्हें ज़ीनोग्राफ्ट या ज़ीनोट्रांसप्लांट्स कहा जाता है। यह मानव-पशु आनुवंशिकी (चिमेरा) बनाने की एक कृत्रिम विधि है, जिसमें इंसान के शरीर में कुछ पशु कोशिकाएँ होती हैं।
तो, आज हम इस प्रतिरोपण के उपयोग, इतिहास और डोनर पशु के रूप में सूअरों को प्राथमिकता देने के कारणों के बारे में विस्तार से जानेंगे। फिर इसकी प्रभावशीलता पर चर्चा करेंगे और यह देखेंगे कि क्या कुछ पशु अंग बिना प्रतिरोध के इंसानों में इस्तेमाल हो सकते हैं। अंत में, भारत में इसकी स्थिति और इससे जुड़े जोखिमों पर भी नज़र डालेंगे।
ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation) का एक परिचय
ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें (a) किसी गैर-मानव जानवर से लिए गए जीवित कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों को इंसान के शरीर में प्रतिरोपित किया जाता है, या (b) उन मानव कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो बाहर किसी जानवर की कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों के संपर्क में आए हों। ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन की ज़रुरत इसलिए पड़ी क्योंकि इलाज के लिए मानव अंगों की मांग बहुत ज़्यादा है, जबकि उपलब्धता कम है।
ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन का उपयोग क्यों किया जाता है?
हाल के सबूतों से पता चला है कि कोशिकाओं और ऊतकों का प्रतिरोपण कुछ बीमारियों, जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार और मधुमेह, के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है, जहां मानव सामग्री आमतौर पर उपलब्ध नहीं होती है।
हालाँकि इसके संभावित फ़ायदे काफ़ी महत्वपूर्ण हैं, ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन के उपयोग से रिसीवर्स में पहचाने गए और अनजान संक्रामक एजेंटों के संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है, और यह उनके करीबी संपर्कों और सामान्य मानव जनसंख्या में भी फैल सकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए, चिंता का विषय यह है कि रेट्रोवायरस द्वारा प्रजातियों के बीच संक्रमण का ख़तरा हो सकता है, जो छिपे हुए हो सकते हैं और संक्रमण के वर्षों बाद बीमारी का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा, नए संक्रामक एजेंट, मौजूदा तकनीकों से तुरंत पहचान में नहीं आ सकते।
ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन के दिलचस्प इतिहास की खोज
मानव अंगों की कमी को दूर करने के लिए ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन का उपयोग करने की कोशिश का एक रोमांचक इतिहास है, जो 1900 के दशक की शुरुआत से शुरू होता है। सोचिए, उस समय जब वैज्ञानिक अंगों के प्रतिरोपण के रहस्यों को जानने की कोशिश कर रहे थे! 1960 के दशक में, डायलिसिस और मृत डोनर से अंगों को प्राप्त करने के तरीकों के विकास से पहले, कुछ वैज्ञानिकों ने चिम्पांज़ी से मानव में गुर्दे के प्रतिरोपण के प्रयास किए। लेकिन इतना ही नहीं—उन्होंने बबून के गुर्दे, हृदय और जिगर के मानव में प्रतिरोपण के प्रयास भी किए, यह सोचकर कि निकट संबंधी गैर-मानव प्रजातियों के अंग मानव अंगों के समान व्यवहार करेंगे।
हालांकि, प्राइमेट्स के उपयोग से नैतिक चुनौतियाँ सामने आईं, जिससे वैज्ञानिकों ने सूअरों को डोनर पशुओं के रूप में देखना शुरू किया।
आख़िर, सूअर ही क्यों?
1990 के दशक से, सूअर ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन अनुसंधान में सबसे पसंदीदा जानवर बन गए हैं। यहाँ कुछ कारण हैं कि ये प्यारे जीव क्यों ख़ास हैं:
1.) सूअर के अंग (विशेषकर गुर्दे और हृदय) मानव गुर्दों और हृदय के समान कार्य करते हैं।
2.) गुर्दे के मामले में, सूअरों और मानवों में गुर्दे के कार्य करने के माप बहुत समान होते हैं।
3.) उनके अंगों का आकार मानव अंगों के समान है।
4.) सूअरों की औसत जीवन प्रत्याशा (~30 वर्ष) होती है, जिसका मतलब है कि सूअर से मानव में प्रतिरोपण होने पर वह लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
5.) सूअर तेज़ी से प्रजनन करते हैं और उनकी बड़ी संख्या में बच्चे पैदा करने की क्षमता होती है, जिससे अंगों की बड़ी आपूर्ति का उत्पादन किया जा सकता है (उदाहरण के लिए, सूअर, डोनर अंगों के उत्पादन के लिए एक स्केलेबल प्रजाति हैं)।
6.) उन्हें ऐसे वातावरण में पाला जा सकता है, जहाँ रोगाणु (जैसे, वायरस या बैक्टीरिया जो मानवों को संक्रमित कर सकते हैं) नहीं होते। यह उनके वायरस के रिसीवर में संक्रमण के जोखिम को रोकता है।
ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन की प्रभावशीलता की खोज
पिछले कुछ दशकों में जानवरों पर कई अध्ययन किए गए हैं। इनमें से अधिकांश अध्ययनों में सूअर के अंगों को बबून में प्रतिरोपित किया गया। बबून का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि उनका जीनिक बनावट मानवों के बहुत करीब है। हालांकि, मानवों में नैदानिक परीक्षण अभी शुरू नहीं हुए हैं, लेकिन कुछ विशेष मामलों में एफ़ डी ए (FDA) और नैतिक समीक्षा बोर्ड से विशेष अनुमति के साथ कुछ ऑपरेशन किए गए हैं:
पहला मामला: एक व्यक्ति, जिसके मस्तिष्क का कार्य नहीं था, को एक सूअर से दो गुर्दे लगाये गये। उसके बाद, उसे 74 घंटे तक मॉनिटर किया गया। गुर्दे रक्त को छानने और मूत्र बनाने में सक्षम दिखाई दिए। इसके अलावा, शरीर ने गुर्दों को अस्वीकार नहीं किया।
दूसरा मामला: दो और लोग, जिनका मस्तिष्क का कार्य नहीं था, को सूअर से गुर्दे लगाये गये। इन्हें 54 घंटे तक मॉनिटर किया गया। इन लोगों के परिणाम भी समान थे—गुर्दे रक्त को छानते रहे, मूत्र बनाते रहे, और कोई अस्वीकृति नहीं हुई ।
तीसरा मामला: एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को एक सूअर का दिल लगाया गया। सर्जरी के बाद, वह दो और महीने तक जीवित रहा। उसके शरीर ने, लगाए गए दिल को कभी अस्वीकार नहीं किया। उसकी मृत्यु का सटीक कारण स्पष्ट नहीं है। डॉक्टरों ने उसकी मृत्यु के बाद, लगाए गए दिल में सूअर-विशिष्ट वायरस की एक छोटी मात्रा पाई। यह उसकी मृत्यु का एक कारक हो सकता है।
भारत में ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन की वर्तमान स्थिति
भारत में ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन प्रक्रियाओं के लिए विशेष नियमों की कमी है। भारत में अंग प्रतिरोपण के लिए, मुख्य कानूनी ढांचा, 1994 का "मानव अंगों का प्रतिरोपण अधिनियम" है, जिसमें ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन का नहीं किया गया है।
1997 में, भारतीय सर्जन डॉ. धनीराम (Dr. Dhaniram Baruah) बरुआ ने एक रोगी में सूअर का दिल और फेफड़े प्रतिरोपित करके ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन किया। हालांकि इस अधिनियम में ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन को शामिल नहीं किया गया था, फिर भी उन्हें राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम का उल्लंघन करने के आरोप में 40 दिनों के लिए गिरफ़्तार किया गया और हिरासत में लिया गया।
ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन प्रक्रिया के जोखिम
बीमारियों का फैलाव:

ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन में, जानवरों के अंगों का इंसानों में प्रत्यारोपण किया जाता है। इसका सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि जानवरों से इंसानों में ऐसी बीमारियाँ आ सकती हैं, जो पहले मानवों में नहीं पाई जाती थीं। इससे नए संक्रमण और बीमारियाँ फैल सकती हैं, जो पूरे समाज के लिए ख़तरनाक हो सकती हैं।
नैतिक सवाल:
जानवरों के अंगों का इस्तेमाल करना कई लोगों के लिए, नैतिक चिंता का कारण होता है। वे सोचते हैं कि जानवरों के साथ, यह सही नहीं है कि उन्हें इस तरह इस्तेमाल किया जाए। इसके अलावा, जानवरों के अंगों को इंसानों के लिए अनुकूल बनाने के लिए उनमें जेनेटिक बदलाव किए जाते हैं, जो जानवरों के हक़ और उनके प्राकृतिक जीवन पर सवाल खड़े करते हैं।
लंबे समय तक काम करने में अनिश्चितता:
जानवरों के अंग, इंसानों के शरीर में लंबे समय तक उतने अच्छे से काम नहीं कर सकते, जितने इंसानी अंग करते हैं। इन अंगों को शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अस्वीकार कर सकती है, जिससे ये अंग ठीक से काम करना बंद कर सकते हैं और मरीज़ को फिर से प्रत्यारोपण की ज़रूरत पड़ सकती है।
मानसिक और सामाजिक प्रभाव:
ऐसे मरीज़, जो जानवरों के अंगों का प्रत्यारोपण करवाते हैं, उन्हें मानसिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है। यह विचार कि उनके शरीर में जानवर का अंग है, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है। साथ ही, समाज में कुछ लोग इस प्रक्रिया को अच्छी नज़र से नहीं देखते, जिससे उन्हें सामाजिक भेदभाव का भी सामना करना पड़ सकता है।
कानूनी और नियमों से जुड़ी समस्याएँ:
ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन के लिए बहुत सख्त नियम होते हैं, जिनका पालन करना मुश्किल और समय लेने वाला हो सकता है। इससे मरीजों को इलाज मिलने में देरी हो सकती है, क्योंकि इस प्रक्रिया के लिए कई कानूनों और नियमों का पालन करना पड़ता है।
इन जोखिमों के बावजूद, ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन, भविष्य में अंगों की कमी को दूर करने का एक बड़ा समाधान हो सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह से सुरक्षित बनाने के लिए अभी और काम करना बाकी है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/ynnscumt
https://tinyurl.com/4ydpkrjy
https://tinyurl.com/mrx6xxrd
https://tinyurl.com/4emnsy8t

चित्र संदर्भ
1. इंसानी शरीर की संरचना को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
2. ऑपरेशन थिएटर को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
3. सूअर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मानव हृदय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)