क्या मेरठ ने किया है अपनी अच्छी सेहत के लिए फ़ंगस और ई. कोली जैसे सूक्ष्मजीवों का धन्यवाद?

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क्या मेरठ ने किया है अपनी अच्छी सेहत के लिए फ़ंगस और ई. कोली जैसे सूक्ष्मजीवों का धन्यवाद?

 गर्मियों की शुरुआत हो चुकी है, और इस बदलते मौसम का असर मेरठ वासियों की सेहत पर भी साफ़ नज़र आता है! हालांकि शुक्र है अच्छी दवाइयों की बदौलत हमारे बिगड़ी हुई सेहत लंबे समय तक बिगड़ी नहीं रह सकती! इसलिए आपको उन नन्हे सूक्ष्मजीवों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, जो हमारे लिए जीवनरक्षक दवाईयां बनाने में बहुत बड़ा योगदान देते हैं! जी हाँ! दवा उद्योग में सूक्ष्मजीवों की भूमिका बेहद अहम होती है। ये नन्हें, जीव जीवन रक्षक दवाओं और उपचारों के उत्पादन में सहायक होते हैं। एंटीबायोटिक (antibiotic) बनाने में बैक्टीरिया (bacteria) और कवक का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, टीकों का निर्माण भी इन्हीं के माध्यम से होता है, जो विभिन्न बीमारियों से बचाव करते हैं।

सूक्ष्मजीव विटामिन (vitamins), एंज़ाइम(enzyme) और इंसुलिन(insulin) के उत्पादन में भी सहायक होते हैं। इंसुलिन का उपयोग मधुमेह के इलाज में किया जाता है। इसके अलावा, ये प्रोबायोटिक्स (probiotics) के निर्माण में भी मदद करते हैं। इन छोटे जीवों के बिना कई महत्वपूर्ण दवाओं का निर्माण करना कठिन हो जाता। इसलिए आज के इस लेख में हम आनुवंशिक रूप से संशोधित ई. कोली (E. Coli) पर चर्चा करेंगे और यह जानेंगे कि इसका उपयोग इंसुलिन उत्पादन में कैसे किया जाता है। यह मधुमेह रोगियों के लिए बहुत लाभदायक है। इसके बाद, हम सूक्ष्मजीवों के औषधीय उपयोगों पर ध्यान देंगे। आगे हम यह भी देखेंगे कि टीके, एंज़ाइम और अन्य दवाओं के विकास में इनका क्या योगदान है। अंत में, हम कवक से बनने वाले एंटीबायोटिक्स (antibiotics) का अध्ययन करेंगे और समझेंगे कि पेनिसिलियम जैसे कवक जीवन रक्षक दवाओं के निर्माण में कैसे सहायक होते हैं।

एस्चेरिशिया कोली | चित्र स्रोत : Wikimedia

आइए, इस लेख की शुरुआत आनुवंशिक रूप से संशोधित ई. कोली द्वारा इंसुलिन के उत्पादन की प्रक्रिया को समझने के साथ करते हैं: 

ई. कोली (E. coli) यानी एस्चेरिशिया कोली (Escherichia coli), एक प्रकार का बैक्टीरिया है, जो आमतौर पर इंसानों और जानवरों की आंतों में पाया जाता है। वैज्ञानिक, खमीर या बैक्टीरिया में इंसुलिन उत्पन्न करने के लिए इंसुलिन कोडिंग जीन डालते हैं। वर्ष 1979 में जेनेंटेक के वैज्ञानिकों ने ई. कोली जीवाणु से मानव इंसुलिन का सफ़ल उत्पादन किया। इससे पहले, 1978 में पुनः संयोजक डी एन ए तकनीक का उपयोग कर ई. कोली में बड़े पैमाने पर मानव इंसुलिन बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी।

पहले, मधुमेह का इलाज मुख्य रूप से सुअर के इंसुलिन से किया जाता था। हालांकि, जीन अंतर के कारण यह इंसुलिन मनुष्यों में एलर्जी का कारण बनता था। लेकिन आधुनिक तकनीक की मदद से इस समस्या का समाधान खोज लिया गया और मानव इंसुलिन का उत्पादन संभव हो सका।

हाल ही में, बच्चों में विकास संबंधी विकारों के इलाज के लिए मानव विकास हार्मोन (Human Growth Hormone (HGH)) का उपयोग किया जाने लगा है। इस हार्मोन को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने ‘ एच जी एच जीन को सी दी एन ए (cDNA) लाइब्रेरी से क्लोन किया। फिर इसे जीवाणु वेक्टर में डालकर ई. कोली कोशिकाओं में प्रविष्ट किया गया। इसके बाद बैक्टीरिया को विकसित किया गया और हार्मोन को अलग किया गया। इस तकनीक से बड़े पैमाने पर मानव विकास हार्मोन का व्यावसायिक उत्पादन संभव हो सका।

विभिन्न अवस्थाओं में ई.कोली | चित्र स्रोत : Wikimedia

आइए, अब जानते हैं कि ई. कोली को इंसुलिन उत्पादन के लिए आदर्श जीव क्यों माना जाता है?
ई. कोली (एस्चेरिचिया कोली) को इंसुलिन उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त जीव माना जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि इसकी प्रजनन दर काफ़ी तेज़ होती है। सही परिस्थितियां मिलने पर यह हर 20-30 मिनट में अपनी संख्या दोगुनी कर सकता है। इसके अलावा, यह एम्पीसिलीन (Ampicillin) और टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline) जैसी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होता है। इससे इंसुलिन निर्माताओं को अवांछित रोगाणुओं के विकास को रोकने में मदद मिलती है।

ई. कोली को संभालना आसान होता है, जिससे इसका रखरखाव कम लागत में भी किया जा सकता है। अन्य जीवों की तुलना में यह अधिक मात्रा में इंसुलिन उत्पन्न करता है। यही कारण है कि इंसुलिन निर्माण में ई. कोली का उपयोग सबसे अधिक लाभदायक होता है।

मानव इंसुलिन उत्पादन में भी ई. कोली की अहम भूमिका निभाता है: 

पुनः संयोजक मानव इंसुलिन विकसित होने से पहले, मधुमेह के रोगी सूअरों और गायों के अग्न्याशय से प्राप्त इंसुलिन पर निर्भर रहते थे। हालांकि यह इंसुलिन रक्त शर्करा को सामान्य स्तर पर बनाए रखने में सहायक था, लेकिन इसका अणु मानव इंसुलिन से थोड़ा अलग होता था।

मानव इंसुलिन में बी-श्रृंखला के सी-टर्मिनल पर थ्रेओनीन (Threonine) नामक एक अमीनो एसिड पाया जाता है, जबकि सुअर इंसुलिन में एलानिन अमीनो एसिड होता है। यह छोटा अंतर भी शरीर में इंसुलिन के प्रभाव को प्रभावित कर सकता था। ई. कोली के माध्यम से इंसुलिन का उत्पादन करने से यह समस्या हल हो गई और मरीज़ो को शुद्ध मानव इंसुलिन उपलब्ध हो सका।

आइए, अब सूक्ष्मजीवों के औषधीय उपयोग को समझते हैं: 

सूक्ष्मजीव, हमारे जीवन में कई तरह से उपयोगी होते हैं। क्या आप जानते हैं कि एक प्रकार के सूक्ष्मजीव से होने वाली बीमारियों का इलाज अन्य सूक्ष्मजीवों की मदद से किया जा सकता है। इन्हीं सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके एंटीबायोटिक्स और एंटीफ़ंगल दवाइयाँ तैयार की जाती हैं। मनुष्यों के लिए औषधियों में भी इनका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

स्टैफ़िलोकोकस (Staphylococcus) बैक्टीरिया | चित्र स्रोत : Wikimedia

मनुष्यों के लिए सूक्ष्मजीवों के कुछ महत्वपूर्ण औषधीय उपयोग निम्नवत् दिए गए हैं:

  • एंटीबायोटिक्स का निर्माण: स्ट्रेप्टोमाइसिन (streptomycin) और एरिथ्रोमाइसिन(erythromycin) जैसी एंटीबायोटिक दवाएँ सूक्ष्मजीवों से बनाई जाती हैं और
    आमतौर पर संक्रमण के इलाज में प्रयोग होती हैं।
  • प्रतिरक्षादमनकारी दवा: ट्राइकोडर्मा पॉलीस्पोरम (Trichoderma polysporum) से साइक्लोस्पोरिन ए(Cyclosporin A) तैयार किया जाता है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • संक्रमण के इलाज में उपयोग: पेनिसिलियम नोटेटम (Penicillium notatum) नामक कवक से पेनिसिलिन बनाया जाता है, जो विभिन्न संक्रमणों के उपचार में सहायक होता है।
  • गर्भाशय संकुचन और माइग्रेन का उपचार: क्लैविसेप्स पर्पुरिया (Claviceps purpurea) नामक कवक से बनी एर्गोट दवा का उपयोग प्रसव के दौरान गर्भाशय के संकुचन को उत्तेजित करने और गंभीर माइग्रेन के इलाज में किया जाता है।
  • टीकों का निर्माण: सूक्ष्मजीवों की सहायता से टीके बनाए जाते हैं। इन टीकों में  कमज़ोर या निष्क्रिय वायरस होते हैं, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को रोगों से लड़ने के लिए तैयार करते हैं।
  • कैंसर थेरेपी: कोल्ट्रिडिया बैक्टीरिया (Coltridia bacteria) के गैर-रोगजनक उपभेद चिकित्सीय प्रोटीन का उत्पादन करते हैं, जो ट्यूमर(tumor) के इलाज में सहायक होते हैं।
  • दस्त का उपचार: फ्लोरोक्विनोलोन (fluoroquinolones) के साथ एरिथ्रोमाइसिन (Aithromycin) का उपयोग दस्त जैसी समस्याओं के इलाज के लिए किया
    जाता है।
  • स्टेरॉयड के परिवहन में सहायता: माइकोबैक्टीरियम (Mycobacterium), रोडोकोकस (Rhodococcus) और गॉर्डनिया (Gordonia) जैसे सूक्ष्मजीव, शरीर
    के भीतर स्टेरॉयड (steroid) के परिवहन में मदद करते हैं।
  • पोषण संबंधी पूरक: सैक्रोमाइसिस सेरेविसिया यीस्ट(Saccharomyces cerevisiae yeast) विटामिन और प्रोटीन से भरपूर होता है, इसलिए इसे पोषण पूरक के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण: मोनस्कस पर्पेरियस (Monascus purpeureus) नामक फंगस से स्टैटिन दवा बनाई जाती है, जो रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में सहायक होती है।

सूक्ष्मजीव चिकित्सा क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी सहायता से कई घातक बीमारियों का इलाज संभव हुआ है। भविष्य में भी चिकित्सा विज्ञान में सूक्ष्मजीवों का उपयोग और अधिक उन्नत तरीकों से किया जाएगा।

इस छवि में, बैक्टीरिया को सफ़ेद डिस्क वाले बर्तनों पर रखा गया है, जिनमें से प्रत्येक में एक अलग एंटीबायोटिक डाला गया है। बाईं ओर दिखाई देने वाली कुछ डिस्क के चारों ओर स्पष्ट छल्ले उन क्षेत्रों को इंगित करते हैं जहाँ बैक्टीरिया नहीं बढ़े हैं। इससे पता चलता है कि बैक्टीरिया उन एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति संवेदनशील हैं और प्रतिरोधी नहीं हैं। इसके विपरीत, दाईं ओर के बैक्टीरिया परीक्षण किए गए सात एंटीबायोटिक दवाओं में से तीन के प्रति पूर्ण प्रतिरोध और परीक्षण किए गए सात एंटीबायोटिक दवाओं में से दो के प्रति आंशिक प्रतिरोध दिखाते हैं। | चित्र स्रोत : Wikimedia

आइए, अब जानते हैं कि कवक से प्राप्त एंटीबायोटिक्स और औषधियाँ चिकित्सा क्षेत्र में क्या क्रांति ला रही हैं?

अपना भोजन सड़े गले मृत कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करने वाले कवकों की मदद से भी एंटीबायोटिक्स और औषधियों का उत्पादन करना आसान हो जाता है! कवक के कई द्वितीयक मेटाबोलाइट्स (metabolites) व्यावसायिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये प्राकृतिक रूप से एंटीबायोटिक्स का उत्पादन करते हैं, जो हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने या उनके विकास को रोकने में मदद करते हैं। इससे पर्यावरण में कवक का संतुलन बना रहता है। पेन्सिलिन और सिफालोस्पोरिन(Cephalosporins) जैसे महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक्स भी कवक से ही प्राप्त किए जाते हैं।

इसके अलावा, कवक से कई बहुमूल्य औषधियाँ भी बनाई जाती हैं। उदाहरण के तौर पर साइक्लोस्पोरिन(Cyclosporine), एक प्रभावी औषधि है, जो अंग प्रत्यारोपण के बाद प्रतिरोधक तंत्र को नियंत्रित करने में सहायक होती है। एर्गोट एल्कलॉइड्स का उपयोग रक्त वाहिकाओं को संकुचित करने के लिए किया जाता है, जबकि कुछ जैविक हार्मोन भी कवक से प्राप्त होते हैं। साइलोसाइबिन (Psilocybin), जो साइलोसाइबे सेमिलेंसिएटा और जिम्नोपिलस जूनोनियस जैसे कवकों में पाया जाता है, प्राचीन समय से विभिन्न संस्कृतियों में अपनी मतिभ्रमकारी (hallucinogenic) विशेषताओं के कारण उपयोग में लिया जाता रहा है।

21वीं सदी की शुरुआत में, चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग होने वाले प्रमुख औषधीय यौगिकों में 20 से अधिक प्रमुख तत्व कवक से प्राप्त हुए थे। शीर्ष 10 महत्वपूर्ण औषधियों में एंटी-कोलेस्ट्रोल स्टैटिन, पेन्सिलिन और साइक्लोस्पोरिन ए (Cyclosporine A) शामिल थे। इनकी वैश्विक बिक्री अरबों डॉलर तक पहुँच गई थी।

हाल के वर्षों में, मानव चिकित्सा के लिए कई नई औषधियाँ विकसित की गई हैं। माइकाफुंगिन एक प्रभावशाली एंटीफ़ंगल दवा है, जो फंगल संक्रमण के इलाज में मदद करती है। माइकोफेनोलेट (mycophenolate) स्कॉक्सेलाइटिस को रोकने के लिए उपयोग किया जाता है। रोसुवास्टेटिन (rosuvastatin), कोलेस्ट्रॉल (cholestrol) कम करने में सहायक है। सेफडिटोरेन एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक के रूप में कार्य करता है। कवक से प्राप्त औषधियाँ चिकित्सा क्षेत्र में क्रांतिकारी भूमिका निभा रही हैं और भविष्य में भी इनका महत्व बढ़ता रहेगा।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/23s87udh

https://tinyurl.com/mum3ec4n

https://tinyurl.com/f2wtwpdk

https://tinyurl.com/mrxb9bc7

मुख्य चित्र: ई. कोली (E. coli) नामक बैक्टीरिया और खेलते हुए बच्चे (Wikimedia, pexels)