भगवान श्री राम के जन्मोत्सव का भव्य त्योहार, राम नवमी के नाम से जाना जाता है जो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। इस वर्ष राम नवमी का यह त्योहार 6 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा । हमारे शहर मेरठ में छीपीवाड़ा स्थित श्री राम नवमी मंदिर में भी राम नवमी का उत्सव अत्यंत भक्तिभाव से बनाया जाता है। यहां भक्त भगवान राम के जन्मोत्सव के लिए प्रार्थना, भजन और अनुष्ठानों के लिए एकत्र होते हैं। यह त्योहार प्रभु श्रीराम के जन्म के साथ-साथ हमें उनकी शिक्षाओं की भी याद दिलाता है। भगवान राम की शिक्षाएँ धर्म, अखंडता, दृढ़ता, करुणा, भक्ति और धर्म पर जोर देती हैं। उन्होंने सत्य को बनाए रखा, प्रतिबद्धताओं का सम्मान किया, निस्वार्थ भाव से नेतृत्व किया, शत्रुओं को क्षमादान दिया, और न्याय एवं धर्म में अटूट विश्वास को प्रेरित किया। तो आइए, आज यह जानते हैं कि हम राम नवमी क्यों मनाते हैं। इसके साथ ही, हम भगवान राम की कुछ महत्वपूर्ण जीवन शिक्षाओं के बारे में जानेंगे, जो हमें हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं।
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राम नवमी क्यों मनाई जाती है:
राम नवमी को सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहारों में से एक माना जाता है क्योंकि यह अयोध्या में भगवान राम की जन्म का प्रतीक है, जिन्हें भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। भक्तों के बीच यह लोकप्रिय मान्यता है कि राम नवमी के त्योहार को मनाने और पूजा करने से कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में दैवीय शक्ति प्राप्त कर सकता है और साथ ही पृथ्वी से बुरे प्रभाव या नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकता है। लोग राम नवमी को अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं, कुछ भक्त मंदिरों में जाते हैं, तो कुछ लोग अपने घरों से ही प्रार्थना करते हैं, भजन और कीर्तन गाए जाते हैं, मंदिरों में मिठाई और फल जैसे भोग वितरित किए जाते हैं, और समस्त पूजा का एक ही उद्देश्य होता है, भगवान राम के प्रति समर्पण और अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करना।
राम की कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं:
नेतृत्व और विनम्रता: यद्यपि भगवान राम एक राजा और शक्तिशाली योद्धा थे, फिर भी वे अपने पूरे जीवन विनम्र बने रहे। वह हर किसी के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करते थे, चाहे उनकी स्थिति कुछ भी हो। उन्होंने सबके परामर्श सुने और निर्णय लेने में अहंकार को आड़े नहीं आने दिया। भगवान राम हमें सिखाते हैं कि दूसरों के प्रति विनम्र और सम्मानजनक होना वास्तविक शक्ति है।
20वीं सदी के आरंभ में हिंदू देवता राम की पेंटिंग | चित्र स्रोत : Wikimedia
दृढ़ता: राज्य को त्याग कर वनवास जाने से लेकर राक्षसों से युद्ध करने और सीता त्याग तक राम अपने धर्म पर दृढ़ता से टिके रहे। उन्होंने कठिनाइयों और असफलताओं को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लेने से वे कमज़ोर नहीं हुए; इसके बजाय, प्रेम ने उनकी दृढ़ता को बढ़ावा दिया।
धर्म की रक्षा: धर्म का अर्थ है नियमों का पालन करना और एक अच्छा इंसान बनना। यह दूसरों के प्रति उचित और दयालु कार्य करने के बारे में है। भगवान राम ने एक महानायक के समान, सदैव नियमों का पालन किया और वही किया जो उचित था। उदाहरण के लिए, कठिन समय होने पर भी उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का सम्मान किया। वे अपने पूरे जीवन धर्म के मार्ग पर चले। उन्होनें अपनी पत्नी की रक्षा के लिए राक्षसों से लड़ाई की। भगवान राम हमें सिखाते हैं कि सही काम करना, भले ही कठिन हो, महत्वपूर्ण है।
विश्वामित्र दशरथ के पास आए और उनसे राक्षसों से युद्ध करने के लिए राम को अपने साथ भेजने को कहा। इस तथ्य को संदर्भित करता चित्रण | चित्र स्रोत : Wikimedia
रिश्तों के प्रति प्रतिबद्धता: हमारे जीवन में रिश्ते अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे हमारे जीवन को बेहतर और खुशहाल बनाते हैं। भगवान राम ने हमें दिखाया कि एक महान मित्र और परिवार का सदस्य कैसे बनें। वह अपनी पत्नी सीता से अत्यंत प्रेम करते थे और जब वह संकट में थी तो उन्होंने उन्हें बचाने के लिए सागर तक को बांध दिया। वे अपने भाइयों और मित्रों के प्रति अपने प्रेम को दर्शाते हुए हमें दिखाते हैं कि रिश्तों में ईमानदारी और प्रेम महत्वपूर्ण है। भगवान राम हमें सिखाते हैं कि हम जिनसे प्रेम करते हैं हमें उनके साथ सदैव देना चाहिए।
सत्यनिष्ठा और ईमानदारी: अपने और दूसरों के प्रति ईमानदार और सच्चा होना ही सत्यनिष्ठा है। ईमानदारी का अर्थ, सत्य बोलना है, न कि धोखा देना या झूठ बोलना। भगवान राम सत्यनिष्ठ और ईमानदार थे। उन्होंने सदैव अपने वचनों का पालन किया और कठिन समय होने पर भी कभी झूठ नहीं बोला। उदाहरण के लिए, उन्होंने अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का परिचय देते हुए 14 वर्षों के लिए निर्वासन में जाने के अपने पिता के आदेश का पालन किया। भगवान राम हमें सिखाते हैं कि सच्चाई और विश्वास ही जीने का सही तरीका है।
क्षमा और करुणा: रामायण में भगवान राम क्षमा और करुणा के महत्व को दर्शाते हैं। जब कैकेयी ने राम को वनवास देने की मांग की तो उन्होंने बिना कुछ कहे इसे स्वीकार कर लिया। बाद में, उन्होंने उन्हें क्षमा भी कर दिया और अपने भाई भरत को अपने स्थान पर शासन करने के लिए प्रोत्साहित किया। वन में राम, शबरी के प्रति दया और करुणा दिखाते हुए, उनका आधा खाया हुआ फल विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं। दया और क्षमा के ये कार्य हमें सिखाते हैं कि क्रोध को त्यागने और करुणा का अभ्यास करने से आंतरिक शांति और सद्भाव प्राप्त होता है।
माता सीता के वनवास के बाद प्रभु श्री राम और लक्षमण | चित्र स्रोत : Wikimedia
आस्था और भक्ति: भगवान राम की यात्रा, हमें आस्था और भक्ति की शक्ति सिखाती है। जब उनके पिता उन्हें वनवास के लिए जाने की आज्ञा देते हैं, तो राम, दैवीय योजना पर विश्वास करते हुए इसे बिना किसी प्रश्न के स्वीकार करते हैं। इस प्रकार, वे न केवल अपने परिवार और राज्य के प्रति, बल्कि अपने उद्देश्य और नियति के प्रति भी समर्पण दर्शाते हैं। उनके लिए भक्ति का अर्थ है, प्रेम और समर्पण। इस अटूट विश्वास ने उन्हें कठिनाइयों का सामना करने और अपने लक्ष्य तक पहुंचने की शक्ति दी।