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मेरठ के नागरिकों, क्या आप जानते हैं कि हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य में नील गायों की एक महत्वपूर्ण आबादी निवास करती है। नीलगाय (Nilgai) एशिया का सबसे बड़ा मृग है, और पूरे उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वव्यापी है। नीलगाय, जिन्हें नीले बैल के रूप में भी जाना जाता है, पूरे भारत में पाई जाती हैं, विशेष रूप से देश के उत्तरी और मध्य भागों, हिमालय की तलहटी में तराई के निचले इलाकों, खुले जंगलों, कृषि भूमि, घास के मैदानों और झाड़ियों में। नीलगाय अपनी तेज़ गति के लिए जानी जाती है क्योंकि यह 50 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दौड़ सकती है। इसके लंबे, मज़बूत पैर और हल्की हड्डियां इसे आसानी से दौड़ने में मदद करती हैं, जबकि शक्तिशाली मांसपेशियां और तेज़ खुर पकड़ प्रदान करते हैं। तो आइए, आज नीलगाय की शारीरिक विशेषताओं, उनके आवास, वितरण, खान-पान की आदतों और आहार संबंधी प्राथमिकताओं के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम भारत में उनके सांस्कृतिक महत्व के बारे में बात करेंगे। अंत में, हम जांच करेंगे कि कैसे उनकी अत्यधिक आबादी ग्रामीण भारत के लिए खतरा बन गई है और समझेंगे कि उनको पालतू बनाकर मनुष्यों के साथ उनके संघर्ष को कैसे कम किया जा सकता है।
नीलगाय की शारीरिक विशेषताएं:
नीलगाय सबसे बड़ा एशियाई मृग है। इसकी ऊंचाई लगभग 1-1.5 मीटर और सिर और शरीर की लंबाई 1.7-2.1 मीटर होती है। नर का वज़न 110-290 किलोग्राम और मादा का वज़न 100-215 किलोग्राम होता है। मादा नारंगी से गहरे भूरे रंग के होती हैं और नर गहरे रंग के होते हैं। इनकी गहरी गर्दन, झुकी हुई पीठ, गले पर सफ़ेद धब्बा आदि इनकी पहचान की विशेषताएं हैं। इनके कान, चेहरे, गाल, ठुड्डी और होठों पर सफ़ेद धब्बे होते हैं। उनकी एक पूंछ लगभग 54 सेमी सेंटीमीटर लंबी होती है। पैरों पर सफ़ेद मोज़े जैसे धब्बे होते हैं और अगले पैर पिछले पैरों से अधिक लंबे होते हैं।
आवास:
नीलगाय विविध प्रकार के भूमि आवास में निवास करती है हालांकि मुख्यतः वे शुष्क भूमि क्षेत्र में पाई जाती है। वे वनप्रदेशों, घास वाले क्षेत्रों, पहाड़ियों आदि और विभिन्न वायुमंडलीय क्षेत्रों में रह सकती हैं। नीलगाय मुख्यतः एशियाई मृग है। यह एशिया के बाहर कम संख्या में और कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही पाई जाती है। निवास के क्षेत्र के आधार पर उनमें संरचनात्मक और कार्यात्मक विशेषताएं होती हैं। ये किसी भी विपरीत परिस्थिति एवं आवास में जीवित नहीं रह सकती। इसीलिए ये विश्व के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
खान-पान की आदतें:
नीलगाय एक शाकाहारी जानवर हैं। वे जड़ी-बूटियाँ, घास और छोटे पौधे आदि खाती हैं। इनकी भोजन आदतें निवास स्थान के अनुसार भिन्न होती हैं। घास वाले क्षेत्रों में, ये घास और जड़ी-बूटियाँ खाती हैं। शुष्क उष्णकटिबंधीय जंगलों में, ये छोटे पौधे खाती हैं। नीलगाय केवल जड़ी-बूटियाँ और घास खाती हैं क्योंकि उनका पाचन तंत्र केवल इस प्रकार के भोजन को पचा सकता है।
भारत में नीलगाय का सांस्कृतिक महत्व:
पश्चिम बंगाल में पांडु राजार ढिबी (Pandu Rajar Dhibi) में एक अन्वेषण खुदाई के दौरान नीलगाय के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिससे पता चलता है कि ये पूर्वी भारत में नवपाषाण काल (Neolithic period (6500-1400 ईसा पूर्व)) और भारतीय उपमहाद्वीप में सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1700 ईसा पूर्व) के दौरान या तो पालतू पशु थे या इनका शिकार किया जाता था। हिंदू धार्मिक ग्रंथ 'ऐतरेय ब्राह्मण' में नीलगाय का एक संदर्भ है, जहां उल्लिखित है कि प्रजापतियों में से एक ने नीलगाय का रूप धारण किया था। नीलगाय को मुगल कालीन चित्रों, खंजर मूठों और ग्रंथों में बड़े पैमाने पर चित्रित किया गया है; हालांकि, उनका प्रतिनिधित्व घोड़ों और ऊंटों की तुलना में कम है। सदियों से भारतीय ग्रामीणों द्वारा नीलगाय को गाय के साथ जोड़ा गया है, गाय जो हिंदुओं में पूजनीय एक पवित्र जानवर है, और नीलगाय में गाय का नाम उस समानता को दर्शाता है। बिश्नोई जैसी जनजातियाँ, पारंपरिक रूप से नीलगाय जैसे जंगली जानवरों की देखभाल करती हैं।
नीलगायों की अत्यधिक जनसंख्या ग्रामीण भारत के लिए कैसे खतरा बन गई है:
भारत के ग्रामीण इलाकों में, नीलगाय का आतंक एक अप्रत्याशित चुनौती बन गया है, जिसने ग्रामीण जीवन की शांति को एक निरंतर संघर्ष में बदल दिया है। जैसे-जैसे जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं और प्राकृतिक आवास ख़त्म होते जा रहे हैं, नीलगायें भोजन की तलाश में खेतों की ओर बढ़ती जा रही हैं। इस कारण वे गेहूं, चना और सरसों जैसी फ़सलों को नुकसान पहुंचाती हैं। इनका कोई प्राकृतिक शिकारी न होने के कारण, नीलगाय अपनी बढ़ती आबादी के साथ हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में एक महत्वपूर्ण समस्या बन गई हैं। बिजली की बाड़ खरीदने में असमर्थ कुछ किसानों को साल-दर-साल भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। कई बार, कुछ लोग नीलगायों को कीट घोषित कर मार देते हैं। लेकिन ऐसे उपाय भारी और अधूरे लगते हैं, वास्तव में, आवश्यकता तो नीलगायों के खतरे की जड़ को संबोधित करने की है।
नीलगाय को पालतू बनाने से मनुष्यों के साथ उनके संघर्ष का समाधान कैसे हो सकता है ?
कई दशकों से, पशुचिकित्सकों ने भारत में नीलगायों को पालतू बनाने की वकालत की है। वे जानवर की बढ़ती आबादी को बचाने के लिए, उनके मांस की व्यावसायिक व्यवहार्यता तर्क देते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इनका मांस, एक आकर्षक वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है और इसे निर्यात किया जा सकता है, लेकिन नीलगाय से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए, नीति निर्माताओं को पहले इसे मंज़ूरी देने की ज़रुरत है। नीलगाय के दूध के पोषण मूल्य और मानव उपभोग के लिए इसके दायरे का अध्ययन करने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसके लिए प्रयोगशालाओं और अनुसंधान संस्थानों के सहयोग की आवश्यकता है। इसके अलावा, नीलगाय का एक अन्य लाभ पशु की कृषि अपशिष्ट को उपभोग करने की क्षमता है, जो मीथेन उत्सर्जन और वायु प्रदूषण का एक ज्ञात स्रोत है। छोटे पैमाने पर, इससे अपशिष्ट को कम करने और खेतों के लिए जैविक खाद उत्पन्न करने में मदद मिल सकती है।
सन्दर्भ
मुख्य चित्र में नीलगाय का स्रोत : Pexels
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