मेरठ की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक भूमि ने सभी धर्मों को समान रूप से पनपने और फ़लने-फ़ैलने का अवसर दिया है! यहाँ पर बौद्ध धर्म की जड़े भी काफ़ी गहरी देखी जा सकती हैं! आज बुद्ध पूर्णिमा का पावन दिन है, और यह पावन दिन गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का प्रतीक है, जिसे मेरठ सहित पूरे भारत में भरपूर श्रद्धा और शांति के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर दुनियाभर के बौद्ध मंदिरों और धार्मिक स्थलों को भव्य रूप से सजाया जाता है, श्रद्धालु दीप जलाते हैं और शास्त्रों का पाठ करते है! साथ ही इस अवसर पर भक्त ध्यान साधना में लीन होकर भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को आत्मसात करने की का प्रयास करते हैं। कई लोग करुणा और अहिंसा के संदेश का पालन करते हुए ज़रूरतमंदों को भोजन वितरित कर परोपकार की भावना को बढ़ावा देते हैं! बुद्ध पूर्णिमा को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर जैसे तीर्थस्थलों पर आज के दिन भव्य जुलूस और विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। आज के इस लेख में हम बुद्ध पूर्णिमा के विभिन्न रूपों की यात्रा करेंगे और जानेंगे कि विश्वभर में इसे किस तरह मनाया जाता है। साथ ही हम इस पर्व से जुड़े महत्वपूर्ण अनुष्ठानों और परंपराओं को भी समझेंगे। अंत में, हम भारत के उन स्थानों पर भी नज़र डालेंगे, जहां इस पर्व का सबसे भव्य आयोजन होता है।
बुद्ध पूर्णिमा की रात निकला चाँद | चित्र स्रोत : Wikimedia
बुद्ध पूर्णिमा को “वेसाक” के नाम से भी जाना जाता है! इसे विश्वभर में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। इस दिन भगवान बुद्ध के जन्म, उनके ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महानिर्वाण (मृत्यु) का स्मरण किया जाता है।
भगवान् बुद्ध के जन्मदिन की तारीख एशियाई लूनिसोलर कैलेंडर पर आधारित होती है, इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर साल इसकी तिथि बदलती रहती है। आमतौर पर यह पर्व अप्रैल या मई में आता है, लेकिन अधिवर्ष (लीप ईयर) में इसे जून में भी मनाया जाता है। भारत और नेपाल में बुद्ध पूर्णिमा वैशाख महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। थेरवाद बौद्ध देशों (श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार आदि) में यह पांचवें या छठे चंद्र महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। बुद्ध का जन्म शाक्य वंश के एक कुलीन परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने जीवन के दुखों का निवारण करने के लिए राजमहल छोड़कर संन्यास ले लिया। कठोर तपस्या और ध्यान के बाद, उन्हें बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद उन्होंने लगभग 45 वर्षों तक लोगों को दुखों के अंत का मार्ग बताया और एक विशाल मठवासी समुदाय (संघ) का निर्माण किया।
ध्यान में बुद्ध | चित्र स्रोत : Wikimedia
बुद्ध पूर्णिमा, बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र त्योहार है, जिसे भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की याद में मनाया जाता है। इस दिन बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं का अनुसरण किया जाता है।
आइए जानते हैं कि इस खास अवसर पर कौन-कौन सी परंपराएँ निभाई जाती हैं:
पूजा और प्रार्थना सभा: इस दिन श्रद्धालु बौद्ध तीर्थस्थलों, मंदिरों और मठों (विहारों) में जाकर विशेष प्रार्थनाओं में भाग लेते हैं। वे भगवान् बुद्ध की मूर्तियों की पूजा करते हैं और आशीर्वाद पाने के लिए श्रद्धा-भक्ति से प्रार्थना करते हैं। मंदिरों में धार्मिक सेवाएँ आयोजित होती हैं, जहाँ लोग मिलकर बुद्ध की शिक्षाओं का स्मरण करते हैं।
ध्यान और धर्मचर्चा: बुद्ध पूर्णिमा के दिन सामूहिक ध्यान सत्र और धार्मिक चर्चाएँ आयोजित की जाती हैं। इन सत्रों में बौद्ध धर्मग्रंथों का अध्ययन किया जाता है, जिससे लोगों को बुद्ध की शिक्षाओं को गहराई से समझने का मौका मिलता है। ये सत्र आत्मचिंतन और मानसिक शांति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
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मंदिर सजावट और विशेष अनुष्ठान: इस दिन मंदिरों और मठों को विशेष रूप से सजाया जाता है। बुद्ध की मूर्तियों पर फूल, धूपबत्तियाँ और मोमबत्तियाँ अर्पित की जाती हैं। बोधगया का महाबोधि मंदिर इस अवसर का प्रमुख आकर्षण होता है। यहाँ बोधि वृक्ष के नीचे विशेष प्रार्थनाएँ की जाती हैं, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।
सामुदायिक सेवा और दान: भगवान बुद्ध की करुणा से प्रेरित होकर इस दिन लोग ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं। गरीबों को भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएँ दान की जाती हैं। यह सेवा और दान पुण्य का प्रतीक माना जाता है, जिससे समाज में प्रेम और सहानुभूति का भाव जागृत होता है।
खीर का प्रसाद: बुद्ध पूर्णिमा पर ‘खीर’ बनाने की खास परंपरा है। यह चावल और दूध से बना एक मीठा व्यंजन होता है, जिसे भक्तों में प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है। मान्यता है कि बुद्ध को उनके ज्ञान प्राप्ति के समय एक महिला ने खीर भेंट की थी, इसलिए इस दिन इस व्यंजन को विशेष रूप से बनाया जाता है।
सुजाता द्वारा सिद्धार्थ को खीर भेंट | चित्र स्रोत : Wikimedia
इस तरह बुद्ध पूर्णिमा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह बौद्ध समुदाय के लिए श्रद्धा, आस्था और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक भी है। दुनियाभर में इसे अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, जिससे हर स्थान की परंपराओं में एक अनूठा रंग झलकता है।
आइए जानते हैं कि बुद्ध पूर्णिमा को विभिन्न देशों में कैसे मनाया जाता है।
नेपाल:
लुंबिनी तीर्थयात्रा: इस अवसर परभगवानबुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। लोग मायादेवी मंदिर और अशोक स्तंभ के दर्शन करते हैं और ध्यान साधना में लीन हो जाते हैं।
मठवासी अनुष्ठान: बुद्ध पूर्णिमा के दिन नेपाल के मठों में विशेष प्रार्थनाएं, मंत्रोच्चार और ध्यान सत्र आयोजित होते हैं, जहां भक्त शांति और अध्यात्म में डूब जाते हैं।
मोमबत्ती जुलूस: शाम होते ही हज़ारों श्रद्धालु मोमबत्तियां जलाकर जुलूस में शामिल होते हैं। जगमगाती रोशनी से सड़कों पर एक अद्भुत दृश्य बन जाता है, जो श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
नेपाल के भक्तपुर दरबार स्क्वायर में बुद्ध पूर्णिमा उत्सव |चित्र स्रोत : Wikimedia
भारत:
बोधगया में भक्ति: भारत में बोधगया (जहां बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था) इस दिन श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन जाता है। इस अवसर पर लोग यहां प्रार्थना करते हैं और शांति की तलाश में ध्यान साधना करते हैं।
महाबोधि मंदिर में आस्था: इस अवसर पर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल महाबोधि मंदिर में बड़ी संख्या में लोग धूप जलाते हैं, फूल चढ़ाते हैं और मंदिर की परिक्रमा करते हैं।
सारनाथ में उपदेश: सारनाथ, जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था, वहां भिक्षु और विद्वान धर्म की शिक्षाओं को साझा करते हैं।
भूटान:
राष्ट्रीय अवकाश का उत्साह: भूटान में बुद्ध पूर्णिमा के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। यहाँ पर लोग इसे बड़े ही हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाते हैं।
मंदिरों में श्रद्धा: इस अवसर पर भक्त बौद्ध मंदिरों में जाकर वहां घी के दीये जलाते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।
पारंपरिक नृत्य और संगीत: उत्सव के दौरान रंग-बिरंगे नकाबपोश नृत्य और पारंपरिक संगीत प्रस्तुतियां होती हैं, जो पूरे माहौल को जीवंत कर देती हैं।
श्रीलंका:
वेसाक उत्सव की भव्यता: श्रीलंका में बुद्ध पूर्णिमा को वेसाक के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर शहरों को रंगीन रौशनी और झूमरों से सजाया जाता है।
दंसला: इस दिन सड़कों पर दंसला (मुफ़्त भोजन स्टॉल) लगाए जाते हैं, जहां राहगीरों को निशुल्क भोजन और पेय परोसा जाता है। यह करुणा और उदारता का प्रतीक है।
पंडाल की खूबसूरती: लोग भव्य पंडाल (अस्थायी सजावटी ढांचे) बनाते हैं, जिनमें बुद्ध के जीवन की कहानियां और बौद्ध संस्कृति को दर्शाया जाता है। आइए अब भारत के उन प्रमुख स्थानों के बारे में जानते हैं, जहाँ आप बुद्ध पूर्णिमा की भव्यता देखने के लिए जा सकते हैं:
सारनाथ मंदिर में बुद्ध की प्रतिमा | चित्र स्रोत : Wikimedia
सारनाथ (उत्तर प्रदेश): भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश सारनाथ में ही दिया था। वाराणसी के पास स्थित इस पवित्र स्थल को, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद खास माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं, और पूरे क्षेत्र में एक दिव्य माहौल छा जाता है।
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बोधगया (बिहार): बोधगया में सिद्धार्थ गौतम ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था और बुद्ध बने थे। यहां के महाबोधि मंदिर और अन्य बौद्ध स्थलों में बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष पूजा-पाठ, दीप प्रज्वलन और आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिससे यह स्थान आस्था और शांति का केंद्र बन जाता है।
तवांग मठ में भगवान् बुद्ध की मूर्ति । चित्र स्रोत : Wikimedia
तवांग और बोमडिला (अरुणाचल प्रदेश): अरुणाचल प्रदेश के ये शांत और सुरम्य इलाके अपनी बौद्ध विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर हैं। यहां के भव्य मठ और पर्वतीय नज़ारे बुद्ध पूर्णिमा मनाने के लिए आदर्श स्थान हैं। तवांग मठ जिसे भारत का सबसे बड़ा मठ माना जाता है, इस अवसर पर आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है।
लद्दाख (जम्मू-कश्मीर): लद्दाख अपने ऊंचाई वाले इलाकों, प्राचीन मठों और बौद्ध संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। बुद्ध पूर्णिमा के दौरान हेमिस, थिकसे और लामायुरु जैसे मठ भव्य रूप से सजाए जाते हैं। यहां की शांति और आध्यात्मिक माहौल इस पर्व को और भी खास बना देता है।
रावंगला बुद्ध पार्क, सिक्किम | चित्र स्रोत : Wikimedia
सिक्किम: हिमालय की गोद में बसा सिक्किम बौद्ध परंपराओं का केंद्र है। यहां के रुमटेक और पेमायांगत्से जैसे प्रसिद्ध मठ बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष पूजा, भिक्षु जुलूस और उत्सव का आयोजन करते हैं। राज्य का प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति इसे इस पर्व के लिए एक सुंदर जगह बनाते हैं। इन स्थलों पर बुद्ध पूर्णिमा का अनुभव केवल एक धार्मिक यात्रा न होकर आत्मिक शांति और आध्यात्मिकता से भरपूर एक यादगार सफ़र बन जाता है।