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हमारे शहर मेरठ में कई छात्र एवं शोधकर्ता, पृथ्वी के इतिहास के बारे में उत्सुक हैं। इस संदर्भ में, हम आपको बता दें कि, जलतापीय निकास या हाइड्रोथर्मल वेंट्स (Hydrothermal vents) का अध्ययन करने से, हमें यह समझने में मदद मिलती है कि, पृथ्वी पर जीवन कैसे शुरू हुआ होगा। इससे, सीखने और चर्चा के लिए, यह एक दिलचस्प विषय बन जाता है। जलतापीय निकास, समुद्री सतह पर ऐसे क्षेत्र होते हैं, जहां से गर्म एवं खनिज़-समृद्ध पानी निकलता है। वे आमतौर पर ज्वालामुखी रूप से सक्रिय समुद्री स्थानों के पास पाए जाते हैं। कई वैज्ञानिकों की परिकल्पना है कि, वे पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। वे सबसे पहली जीवित कोशिकाओं के गठन के लिए, एक उपयुक्त वातावरण प्रदान करते थे। तो आज आइए देखें कि, जलतापीय निकास क्या हैं, और वे कैसे बनते हैं। फिर, हम इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि, वे आमतौर पर मध्य-महासागरीय टीलों के पास ही क्यों पाए जाते हैं। हम उनके निर्माण के पीछे मौजूद, भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के बारे में भी जानेंगे। उसके बाद, हमें पता चलेगा कि, क्या इन निकासों ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति में भूमिका निभाई है। अंत में, एक तरफ़ हम यह पता लगाएंगे कि, उल्कापिंड, जीवन की उत्पत्ति का समर्थन कैसे कर सकते हैं।
जलतापीय निकास क्या हैं, और वे कैसे बनते हैं ?
अभिसरण प्लेट सीमाओं (Convergent plate boundaries) एवं निर्माणाधीन महासागरीय टीलों के पास स्थित ज्वालामुखी, जलतापीय निकास का निर्माण करते हैं। वैज्ञानिकों ने सबसे पहली बार 1977 में, गैलापागोस द्वीपों (Galapagos Islands) के पास एक निर्माणाधीन महासागरीय टीले की खोज करते हुए, जलतापीय निकास की खोज की थी। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया था कि, ये निकास असंख्य जीवों से घिरे हुए थे, जो पहले कभी नहीं देखे गए थे। ये जैविक समुदाय, उन रासायनिक प्रक्रियाओं पर निर्भर हैं, जो पानी के नीचे स्थित ज्वालामुखियों से जुड़े समुद्री जल और गर्म मैग्मा की क्रियाओं के परिणामस्वरूप होती हैं।
जलतापीय निकास का पानी, वह समुद्री जल है, जो समुद्र की सतह में निर्माणाधीन केंद्रों या सबडक्शन ज़ोन (Subduction zones) के आसपास मौजूद दरारों के माध्यम से नीचे भू–पर्पटी में अंदर रिसता है। दरअसल, सबडक्शन ज़ोन, पृथ्वी पर वे स्थान हैं, जहां दो टेक्टोनिक प्लेटें एक दूसरे से दूर या एक दूसरे की ओर बढ़ती हैं। रिसाव होने वाला ठंडा समुद्री जल, गर्म मैग्मा द्वारा गर्म होता है, और निकास बनाते हुए, फिर से ऊपर की ओर उठता है। ऐसे निकास में समुद्री जल 700 डिग्री फ़ैरेनहाइट (Fahrenheit) के तापमान तक पहुंच सकता है।
जलतापीय निकास, मध्य-महासागरीय टीलों के पास क्यों पाए जाते हैं ?
मध्य-महासागरीय निर्माणाधीन क्षेत्र, पृथ्वी पर कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भू–पर्पटी सबसे पतली है। महासागरीय स्थलमंडल, वहां गुरुत्वाकर्षण और संवहन धाराओं के प्रभाव में टूट जाता है। मध्य-महासागरीय क्षेत्र के पास, ऊपरी मैंटल (Mantle) पृथ्वी की सतह के बहुत करीब होता है, और यहां तापमान भी बहुत अधिक होता है। यह उच्च तापमान, भूतापीय गतिविधि के जटिल चक्र बनाता है। नवगठित समुद्री सतह, अतः गर्म तथा खनिजों एवं गैसों से समृद्ध पानी को उच्च दबाव में बाहर फ़ेंकती है। इस पानी को बाहर फ़ेंकने वाले निकास को हाइड्रोथर्मल वेंट या जलतापीय निकास कहा जाता है। ये निकास, संभवतः दुनिया के हर मध्य-महासागरीय टीले के पास पाए जा सकते हैं।
क्या जलतापीय निकास, पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति में सहायक थे ?
इन जैविक समुदायों में पाए जाने वाले रसायन संश्लेषी जीवाणु (Chemosynthetic bacteria), कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) को जैविक कार्बन अणुओं में परिवर्तित करने के लिए, निकास से निकले विषाक्त हाइड्रोजन सल्फ़ाइड (Hydrogen sulphide) का उपयोग करते हैं। यह जैविक कार्बन, पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों के लिए महत्वपूर्ण निर्माण खंड बनाते हैं।
इसी प्रतिक्रिया ने, गहरे समुद्र के जीवों को जलतापीय निकास पर अनुकूलन करने और जीवित रहने में सक्षम बनाया है। यहां रहने वाले जानवरों ने इन बैक्टीरिया के साथ सहजीवी संबंध बनाए हैं। ये कीमोसिंथेटिक बैक्टीरिया, अपने मेज़बान को पर्यावरण से ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह ऊर्जा बदल इतना कुशल हो सकता है कि कुछ जीवों को भोजन करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।
इन आत्मनिर्भर पारिस्थितिक तंत्रों की खोज ने, पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति पर नया प्रकाश डाला है। इस कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियां, सहज चयापचय या मेटाबॉलिज़्म (Metabolism) के लिए उपयुक्त थीं। मेटाबॉलिज़्म, अणुओं का सहज गठन है, जो सभी जीवन के लिए आवश्यक हैं।
जीवन ने जलतापीय निकास को छोड़कर, पूरी पृथ्वी पर कैसे बसेरा किया ?
जीवन की उत्पत्ति के समय, शुरुआती महासागर अम्लीय और पॉज़िटिव चार्ज (Positive charge) प्रोटॉन (Proton) से पूर्ण थे। जबकि, जलतापीय निकास, थोड़े कड़वे क्षारीय जल को बाहर फ़ेंक रहे थे, जो नेगेटिव चार्ज (Negative charge) हाइड्रॉक्साइड आयनों (Hydroxide ions) में समृद्ध था। उस बिंदु पर, आद्य कोशिकाओं ने नए कार्बन-आधारित अणुओं को, प्राथमिक कोशिकाओं में एक साथ जोड़ने हेतु, निकास की पतली दीवारों का उपयोग किया। साथ ही, आद्य कोशिकाओं ने, अधिक जटिल कार्बनिक रसायनों के निर्माण को ऊर्जा प्रदान करने के लिए, पर्यावरण में मौजूद चार्ज का उपयोग भी किया।
परंतु, निकास को छोड़ने के लिए, इन कोशिकाओं को एक ऊर्जा-समृद्ध चीज़ की आवश्यकता थी। वे आद्य जीव, एक साधारण कोशिका पंप का उपयोग करते थे, जो पॉज़िटिव चार्ज प्रोटॉन को खींचते समय, कोशिका से सोडियम (Sodium) को बाहर निकालते थे। उस कोशिकीय पंप का अग्रदूत प्रारंभिक कोशिकाओं की झिल्लियों में विकसित हुआ।
फिर इन कोशिकाओं की झिल्ली इस प्रकार विकसित हुई कि, ये कोशिकाएं धीरे-धीरे ऊर्जा प्राप्त करने का एक स्वतंत्र तरीका विकसित करने में सक्षम बनीं । आखिरकार, कोशिकाओं में एक सोडियम पंप बनने लगा, जो उनकी आंतरिक प्रतिक्रियाओं को शक्ति प्रदान कर सकता था। इससे, अधिक जटिल जीवन का निर्माण हुआ, और तब वे अपना जन्मस्थान छोड़कर दूसरे स्थानों पर विकसित हुए।
हमारा लेख पढ़ने के लिए, धन्यवाद मेरठ !
संदर्भ
मुख्य चित्र में हरे समुद्र के हाइड्रोथर्मल वेंट के आसपास मसल्स के जीवन का स्रोत : Wikimedia