मेरठ के मंदिरों से चौपाल तक – फूल बने हैं आस्था और संस्कृति का माध्यम

फूलदार पौधे (उद्यान)
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मेरठ के मंदिरों से चौपाल तक – फूल बने हैं आस्था और संस्कृति का माध्यम

प्रकृति के अनुपम उपहारों में फूलों का स्थान सर्वोच्च है। ये न केवल रंगों और सुगंध का स्रोत होते हैं, बल्कि मानव जीवन में सौंदर्य, भावनाओं और आध्यात्मिकता का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। दुनिया के लगभग हर धर्म, संस्कृति और परंपरा में फूलों को एक विशेष स्थान प्राप्त है। फूल न केवल उत्सवों और पूजा-पद्धतियों में प्रयोग होते हैं, बल्कि वे मानव भावनाओं की अभिव्यक्ति का भी माध्यम बनते हैं — जैसे प्रेम, भक्ति, श्रद्धा, शांति और सौंदर्य। फूलों की भूमिका केवल सजावटी ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा के संवाहक के रूप में भी होती है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि कैसे फूल विभिन्न धर्मों — बौद्ध, हिंदू, ईसाई और इस्लाम — में प्रतीकात्मक और पूजनीय माने जाते हैं। साथ ही, हम जानेंगे कि भारतीय त्योहारों में फूलों की क्या विशेष भूमिका है और धार्मिक संरचना में उनके वैज्ञानिक एवं सौंदर्यशास्त्रीय पक्ष कैसे समझे जा सकते हैं।

फूलों का सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

भारत सहित विश्व की अनेक सभ्यताओं में फूलों का सांस्कृतिक स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। फूलों को केवल सौंदर्य और श्रृंगार का प्रतीक नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक माध्यम माना गया है। विवाह, जन्म, मृत्यु, उत्सव और पूजा—हर अवसर पर फूलों का प्रयोग देखने को मिलता है। फूल न केवल धार्मिक कर्मकांडों का अंग हैं, बल्कि सामाजिक रिश्तों को प्रकट करने का भी माध्यम हैं। माला पहनाना, पुष्पांजलि अर्पित करना, मंदिर या घर को फूलों से सजाना—यह सब श्रद्धा, भक्ति और प्रेम को व्यक्त करते हैं

आध्यात्मिक दृष्टि से, फूलों को आत्मा की पवित्रता और चेतना की उच्च अवस्था का प्रतीक माना गया है। कई योगियों और साधकों ने पुष्प को अपने ध्यान का केंद्र बनाया है, क्योंकि यह सुंदरता, नश्वरता और आत्मसमर्पण—तीनों का एक साथ प्रतिनिधित्व करता है। संस्कृति के स्तर पर फूल गीतों, नृत्य, चित्रकला, वस्त्रों और सुगंध में भी व्यापक रूप से उपस्थित होते हैं, जो उनकी सर्वव्यापकता को दर्शाता है।

बौद्ध धर्म में फूलों का प्रतीकात्मक उपयोग

बौद्ध धर्म में फूलों का विशेष रूप से प्रतीकात्मक अर्थ है। सबसे प्रमुख पुष्प है कमल—जो बौद्ध विचारधारा में आत्मज्ञान, निर्मलता और आंतरिक जागरूकता का प्रतीक है। बौद्ध ग्रंथों में यह वर्णित है कि जैसे कमल कीचड़ में खिलता है पर उस कीचड़ से अछूता रहता है, वैसे ही एक सच्चा साधक संसारिक माया में रहते हुए भी आत्मज्ञान की ओर अग्रसर हो सकता है। इसीलिए, बुद्ध की मूर्तियों और थंगका चित्रों में कमल हमेशा प्रमुख रूप से दर्शाया जाता है।

थाईलैंड, श्रीलंका, जापान और तिब्बत में मंदिरों में पुष्प चढ़ाना एक गहन धार्मिक क्रिया मानी जाती है। बौद्ध अनुयायी फूलों को बुद्ध की वेदी पर चढ़ाकर क्षणभंगुरता और अनित्यत्व की स्मृति करते हैं—क्योंकि जैसे फूल मुरझाते हैं, वैसे ही जीवन भी नश्वर है। जापानी जेन बौद्ध (Zen) परंपरा में पुष्पों की व्यवस्था एक ध्यान विधि है (इकेबाना) जिसमें फूलों की सजावट के माध्यम से आत्मचिंतन और सौंदर्यबोध का अभ्यास होता है।

हिंदू धर्म में पूजा-पद्धति और देवी-देवताओं से जुड़े विशिष्ट फूल

हिंदू धर्म में तो फूलों का महत्व अत्यंत विस्तृत और व्यवस्थित है। प्रत्येक देवी-देवता के साथ विशेष पुष्पों की संलग्नता देखी जाती है। जैसे, देवी लक्ष्मी को कमलप्रिय कहा गया है, तो शिव को धतूरा और बेलपत्र प्रिय हैं। विष्णु के पूजन में तुलसी अनिवार्य है जबकि दुर्गा को गेंदा, चमेली और गुड़हल प्रिय माने जाते हैं। ये फूल केवल प्रतीक नहीं, बल्कि ऊर्जा-संचार के वाहक माने जाते हैं—जिसके माध्यम से साधक देवत्व से जुड़ता है।

पूजा-पद्धतियों में पुष्पों को मंत्रोच्चारण के साथ अर्पित किया जाता है। “पुष्पं समर्पयामि” यह वाक्य पूजा में पुष्प समर्पण का शुद्ध भाव दर्शाता है। पौराणिक ग्रंथों में पुष्पों के कई प्रसंग मिलते हैं जैसे हनुमान जी ने सीता माता को पुष्पों की माला भेजी थी, श्रीकृष्ण राधा को कदंब फूलों से प्रसन्न करते थे। व्रत, यज्ञ, उपनयन, विवाह और मृत्यु संस्कार में भी फूलों का विशिष्ट प्रयोग किया जाता है।

साथ ही, भारतीय मंदिरों की वास्तुकला में भी पुष्पों की नक्काशी और सजावट गहराई से जुड़ी होती है, जो सौंदर्य और श्रद्धा दोनों का सम्मिलन दर्शाती है।

ईसाई धर्म में फूलों के प्रतीक और धार्मिक अवसरों में उनका प्रयोग

ईसाई धर्म में फूल प्रेम, पवित्रता और ईश्वर के अनुग्रह का प्रतीक माने जाते हैं। चर्चों को विशेष अवसरों पर फूलों से सजाया जाता है, जैसे क्रिसमस, ईस्टर, बपतिस्मा और विवाह समारोहों के समय। विशेष रूप से लिली (सांकेतिक रूप से पवित्रता और पुनर्जन्म का प्रतीक) और गुलाब (प्रेम और बलिदान का प्रतीक) ईसाई धर्मग्रंथों और परंपराओं में बार-बार उल्लिखित होते हैं।

ईस्टर के दौरान सफेद लिली यीशु मसीह के पुनरुत्थान का प्रतिनिधित्व करती है, और इसे चर्चों में बड़े सम्मान से सजाया जाता है। वर्जिन मैरी से जुड़े चित्रों और मूर्तियों में सफेद गुलाब या लिली दिखाई देते हैं, जो उनकी पवित्रता और ममता का प्रतीक हैं।

कई ईसाई परंपराओं में अंतिम संस्कार के समय फूल चढ़ाना और माला अर्पित करना मृतात्मा के प्रति श्रद्धा और शांति की भावना दर्शाता है। फूलों को प्रेम और दिव्यता की अभिव्यक्ति माना जाता है, और उनके माध्यम से ईश्वर की रचना की सुंदरता का अनुभव किया जाता है।

इस्लाम धर्म में सीमित पर विशिष्ट धार्मिक उपयोग

इस्लाम में फूलों का धार्मिक उपयोग अन्य धर्मों की तुलना में सीमित होते हुए भी विशिष्ट और सम्मानजनक है। इस्लाम की धार्मिक प्रथाएं सरल और एकनिष्ठ भक्ति पर केंद्रित होती हैं, परंतु कुछ अवसरों पर पुष्पों का उपयोग आदर-सूचक रूप में होता है।

दरगाहों पर फूल चढ़ाना एक गहन परंपरा है। सूफी परंपरा में गुलाब, चमेली और गेंदा जैसे फूलों को संतों की कब्रों पर चढ़ाया जाता है, जो श्रद्धा और आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक माने जाते हैं। ईद, मुहर्रम और बारावफात जैसे अवसरों पर घर और मस्जिदों में फूलों से सजावट की जाती है।

कई मुस्लिम कवियों ने फूलों का प्रयोग आध्यात्मिक प्रेम और रहस्यवाद के प्रतीकों के रूप में किया है। मसनवी, कव्वालियाँ और सूफी भजनों में गुलाब और बुलबुल की उपमाएँ ईश्वर से मिलने की उत्कंठा को दर्शाती हैं। कुरान में प्रत्यक्ष रूप से पुष्पों का उल्लेख सीमित है, परंतु प्रकृति की सुंदरता और रचना के माध्यम से अल्लाह की महानता दर्शाने वाले अनेक आयतें हैं।

विभिन्न भारतीय त्योहारों में फूलों का विशेष महत्व

भारत विविध त्योहारों की भूमि है और हर पर्व में फूलों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। दीपावली पर घरों की सजावट गेंदे और गुलाब से की जाती है, रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों को फूलों से बनी राखियाँ बांधती हैं, होली में टेसू के फूलों का प्रयोग पारंपरिक रंग बनाने में किया जाता है। बसंत पंचमी पर पीले फूल सरस्वती पूजन में अर्पित किए जाते हैं।

दक्षिण भारत में ओणम के अवसर पर 'पुक्कलम' नामक फूलों की रंगोली बनाई जाती है, जो सामाजिक सौहार्द और प्रकृति प्रेम का प्रतीक है। केरल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में तो मंदिरों की दैनिक पूजा में फूलों की विशेष माला चढ़ाई जाती है।

गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, जन्माष्टमी, और गुरुपूर्णिमा जैसे पर्वों में देवताओं को पुष्प-मालाएं पहनाई जाती हैं। त्योहारों में फूलों का यह प्रयोग केवल सजावट के लिए नहीं होता, बल्कि यह सकारात्मक ऊर्जा, सौंदर्य और दिव्यता का संचार करता है।

फूलों की धार्मिक संरचना में वैज्ञानिक और सौंदर्यशास्त्रीय व्याख्या

फूलों की धार्मिक उपयोगिता के पीछे केवल आस्था नहीं, बल्कि गहराई से जुड़े वैज्ञानिक और सौंदर्यशास्त्रीय तत्व भी होते हैं। सुगंधित फूल वातावरण को शुद्ध करते हैं। जैसे चमेली, मोगरा, गुलाब की सुगंध मानसिक तनाव को कम करती है और ध्यान केंद्रित करने में सहायता करती है।

वास्तु और आयुर्वेद के अनुसार, कुछ फूलों की उपस्थिति घर में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति को बढ़ाती है। बेलपत्र में शीतलता होती है, जो गर्मियों में शरीर और वातावरण दोनों को ठंडा रखने में सहायक है। कमल एक जलोद्भव पुष्प है, जो संतुलन और स्थिरता का प्रतीक है।

सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से फूल रंग, आकार, गंध और बनावट के अद्भुत संयोजन होते हैं। इनका प्रयोग मंदिरों की नक्काशी, काव्य-रचना, चित्रकला और वस्त्रशिल्प में किया गया है। फूल केवल इंद्रियों को नहीं, बल्कि आत्मा को भी स्पर्श करते हैं। धार्मिक क्रियाओं में इनका सम्मिलन सौंदर्य और पवित्रता दोनों का सामंजस्य प्रस्तुत करता है।