
मेरठवासियों, क्या आपने कभी गौर किया है कि आजकल आपके शहर की दुकानों और बाजारों में विस्कोस (Viscose) और लायोसेल (Lyocell) से बने कपड़ों की बढ़ती मांग किस तरह फैशन (fashion) और आराम का नया ट्रेंड बना रही है? मेरठ, जो हमेशा से पारंपरिक सिलाई, वस्त्र उद्योग और छोटे-बड़े व्यापार के लिए जाना जाता रहा है, अब टेक्सटाइल फ़ाइबर (Textile Fiber) के इस आधुनिक और तेजी से बढ़ते रुझान का भी महत्वपूर्ण केंद्र बनता जा रहा है। यहां के लोग इन कपड़ों को उनकी मुलायमियत, हवा को अंदर जाने की क्षमता और सस्ती कीमत के कारण चुनते हैं। लेकिन यह केवल फैशन का मामला नहीं है - इन फ़ाइबरों का इस्तेमाल रोज़मर्रा के जीवन में, घर के वस्त्रों में और औद्योगिक स्तर पर भी होता है, जिससे पहनने वालों को आराम, सुविधा और टिकाऊ गुणवत्ता दोनों मिलती हैं।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि विस्कोस और लायोसेल जैसी सेलूलोज़िक फ़ाइबरों (Cellulosolic Fibres) की लोकप्रियता के पीछे क्या कारण हैं। हम चर्चा करेंगे कि इन फ़ाइबरों का दैनिक जीवन और औद्योगिक उपयोग कैसे बढ़ रहा है और इनके उत्पादन में प्राकृतिक और मानव निर्मित फ़ाइबर का क्या योगदान है। इसके अलावा, हम देखेंगे कि भारत में किन प्रकार के कृत्रिम सेलूलोज़िक फ़ाइबर बनाए जाते हैं और इनकी विशेषताएँ क्या हैं। हम जानेंगे कि विस्कोस का उत्पादन प्रक्रिया कैसे होती है, बाज़ार में इसके आयात और निर्यात के आंकड़े क्या हैं, और अंत में, उन प्रमुख कंपनियों पर भी नज़र डालेंगे जो भारत में विस्कोस रेयान के बड़े निर्माता हैं।
मेरठ में विस्कोस और लायोसेल की लोकप्रियता के कारण
मेरठवासियों के बीच विस्कोस और लायोसेल कपड़ों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। लोग इन कपड़ों को केवल आरामदायक होने के कारण ही नहीं, बल्कि इनके सांस लेने योग्य (breathable) होने और अन्य विकल्पों की तुलना में किफायती होने के कारण भी पसंद करते हैं। गर्मियों और नमी वाले मौसम में ये कपड़े शरीर की गर्मी को बाहर निकालते हैं और पसीने को सोख लेते हैं, जिससे पहनने वाले को लंबे समय तक ठंडक और सहजता महसूस होती है। इन कपड़ों की मुलायमियत और प्राकृतिक चमक उन्हें फैशन और दैनिक उपयोग दोनों के लिए उपयुक्त बनाती है। मेरठ में घरेलू उपयोग के साथ-साथ औद्योगिक स्तर पर भी इन फ़ाइबरों की मांग बढ़ रही है, जैसे कि गद्दे, पर्दे, बेडशीट (bedsheet), तकिए और अन्य घरेलू वस्त्र। प्राकृतिक फ़ाइबर जैसे सूती और भांग के साथ मानव निर्मित फ़ाइबर की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये टिकाऊ, मजबूत और वाणिज्यिक दृष्टि से अधिक उपयोगी हैं। इस तरह, ये फ़ाइबर स्थानीय बाजार के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पकड़ बना रहे हैं।
भारत में विभिन्न प्रकार के कृत्रिम सेलूलोज़िक फ़ाइबर
भारत में कृत्रिम या मानव निर्मित सेलूलोज़िक फ़ाइबर का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। ये फ़ाइबर कपड़े, घरेलू उपयोग की वस्त्र और औद्योगिक वस्त्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विस्कोस और लायोसेल की विशेषताएँ और उपयोग
भारत में विस्कोस का उत्पादन प्रक्रिया
विस्कोस रेयान का उत्पादन एक अत्यंत जटिल और तकनीकी प्रक्रिया है, जिसे सावधानी और विशेष ज्ञान के साथ पूरा किया जाता है। सबसे पहले उच्च गुणवत्ता वाली सेल्युलोसिक सामग्री, जैसे पेड़ और पौधों के पल्प को तैयार किया जाता है। यह पल्प उत्पादन की नींव है और इसके गुणवत्ता से ही अंततः तैयार फ़ाइबर की मजबूती और टिकाऊपन निर्धारित होता है। इसके बाद इस पल्प को कैस्टिक सोडा (Castic soda) और कार्बन डाईसल्फ़ाइड के मिश्रण में प्रोसेस किया जाता है। इस मिश्रण के कारण पल्प घुलनशील बन जाता है और इसे आसानी से फ़ाइबर में बदला जा सकता है। इसके पश्चात घोल को स्पिनरेट (Spinneret) के माध्यम से ठोस फ़ाइबर में बदल दिया जाता है। इस प्रक्रिया में यार्न की चमक और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विशेष रासायनिक उपायों का इस्तेमाल किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य न केवल फ़ाइबर को फैशन और औद्योगिक उपयोग के लिए उपयुक्त बनाना है, बल्कि इसकी मजबूती, टिकाऊपन और पहनने की सुविधा सुनिश्चित करना भी है। विस्तार से देखें तो यह उत्पादन प्रक्रिया हर चरण में सावधानी, तकनीकी नियंत्रण और गुणवत्ता मानकों का पालन करती है, जिससे अंत में एक ऐसा फ़ाइबर तैयार होता है, जो लंबी अवधि तक टिकाऊ, मुलायम और बहुउपयोगी होता है।
विस्कोस फ़ाइबर का आयात-निर्यात और बाजार आंकड़े
वित्तीय वर्ष 2012-2017 के दौरान भारत में विस्कोस फ़ाइबर के आयात और निर्यात में लगातार उतार-चढ़ाव देखा गया। विशेष रूप से उच्च गुणवत्ता वाले विस्कोस फ़िलामेंट यार्न (VFY) के लिए भारत अन्य देशों पर निर्भर करता है, क्योंकि देश में पर्याप्त उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी की पल्प (pulp) उपलब्ध नहीं है। यह विदेशी निर्भरता निर्यात और आयात दोनों को प्रभावित करती है। निर्यात में वृद्धि और घटाव अंतरराष्ट्रीय मांग, घरेलू उत्पादन क्षमता और वैश्विक बाजार की स्थिति पर निर्भर करता है। कभी-कभी वैश्विक बाजार में मांग बढ़ने के कारण निर्यात में इजाफा होता है, तो कभी घरेलू उत्पादन की सीमित क्षमता और उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री की कमी निर्यात को प्रभावित करती है। इस प्रकार की परिस्थितियों ने स्थानीय उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने और उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगातार प्रेरित किया है। इसके अलावा, आयात पर निर्भरता स्थानीय उद्योग के लिए चुनौतियों के साथ-साथ अवसर भी पैदा करती है। यह उद्योग को नवीन तकनीकों और उत्पादन विधियों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है, जिससे भारत में विस्कोस फ़ाइबर का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में सुधार होता है।
भारत में विस्कोस रेयान के प्रमुख निर्माता
भारत में विस्कोस फ़ाइबर के प्रमुख निर्माता कंपनियों में ग्रासिम इंडस्ट्रीज़ (Grasim Industries), आदित्य बिड़ला न्यूवो (इंडियन रेयान कॉर्पोरेशन - Indian Ryan Corporation), सेंचुरी रेयान (Century Ryan), केसराम रेयान (Kesoram Rayon) और नेशनल रेयान कॉर्पोरेशन (National Ryan Corporation) शामिल हैं। इन कंपनियों ने न केवल घरेलू बाजार में अपनी पकड़ बनाई है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारत की उपस्थिति को मजबूत किया है। आदित्य बिड़ला न्यूवो और सेंचुरी रेयान मिलकर लगभग 80% उत्पादन करते हैं, जबकि केसराम रेयान का योगदान लगभग 18% है और अन्य कंपनियों का केवल 2% है। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दिखाता है कि कुछ बड़ी कंपनियाँ पूरे बाजार में नेतृत्व कर रही हैं और उत्पादन का अधिकांश हिस्सा नियंत्रित कर रही हैं। इन कंपनियों की नवाचार क्षमता, तकनीकी कौशल और कड़े गुणवत्ता नियंत्रण मानक न केवल उत्पादित फ़ाइबर को उच्च गुणवत्ता वाला बनाते हैं, बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बनाते हैं। इसके अलावा, यह भारत में विस्कोस उद्योग को स्थिर और दीर्घकालिक रूप से मजबूत बनाने में भी मदद करता है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/2cau4nu5
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