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मेरठवासियों, क्या आपने कभी गौर किया है कि हमारे खेतों में उगाई गई फसलों के दाम बाजार में घट जाने पर हमारे किसानों की मेहनत और परिवार की रोज़मर्रा की जिंदगी पर कितना असर पड़ता है? छोटे और मझोले किसानों के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण होती है, क्योंकि उनकी आय सीधे उनके खेत और फसलों पर निर्भर होती है। ऐसे समय में सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी - MSP), उनके लिए जीवन रेखा का काम करती है। एमएसपी किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य देने का भरोसा देती है और यह सुनिश्चित करती है कि वे कभी भी बाजार की अस्थिरता और कीमतों में उतार-चढ़ाव से भारी नुकसान का सामना न करें। यह योजना सिर्फ आर्थिक सुरक्षा ही नहीं देती, बल्कि किसानों को बेहतर उत्पादन, उच्च गुणवत्ता वाली फसल और स्मार्ट खेती के लिए भी प्रेरित करती है। एमएसपी के माध्यम से किसान अपनी फसल को सही मूल्य पर बेच सकते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और वे अपने परिवार की आवश्यकताओं को आसानी से पूरा कर पाते हैं। मेरठ जैसे जिले में, जहाँ गेहूं, गन्ना, धान और दालों की खेती बड़े पैमाने पर होती है, एमएसपी किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और कृषि क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। आज के इस लेख में हम एमएसपी की प्रक्रिया, इसके लाभ और किसानों को मिलने वाले आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।
इस लेख में हम जानेंगे कि एमएसपी योजना किसानों के लिए क्यों ज़रूरी है और इसे कैसे लागू किया जाता है। सबसे पहले, हम समझेंगे कि एमएसपी क्या है और यह किसानों को किस तरह आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। फिर, हम एमएसपी योजना में पंजीकरण की प्रक्रिया और लाभार्थियों के बारे में विस्तार से देखेंगे। इसके बाद, जानेंगे कि किन फसलों के लिए एमएसपी लागू होता है और कीमत कैसे तय की जाती है। अंत में, हम एमएसपी दरों में हुए संशोधनों और इसके कानूनी गारंटी और प्रस्तावित मॉडल्स के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) क्या है और यह किसानों के लिए क्यों ज़रूरी है?
न्यूनतम समर्थन मूल्य भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण और किसान-केंद्रित योजना है, जिसका मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी मेहनत और फसल का उचित मूल्य सुनिश्चित करना है। यह योजना विशेष रूप से तब काम आती है जब बाज़ार में फसलों के दाम अस्थिर होते हैं और कभी-कभी उनकी वास्तविक उत्पादन लागत से भी कम गिर जाते हैं। ऐसे समय में सरकार तय एम एस पी दर पर किसानों से फसल खरीदती है, जिससे उन्हें नुकसान नहीं होता और उनकी मेहनत का सही मोल मिलता है। एमएसपी किसानों को केवल आर्थिक सुरक्षा ही नहीं देता, बल्कि उन्हें उच्च गुणवत्ता और बेहतर उत्पादन के लिए प्रेरित भी करता है। यह योजना कृषि क्षेत्र को स्थिर बनाए रखने में मदद करती है और देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करती है। इसके माध्यम से किसान आत्मनिर्भर बनते हैं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। इसके अलावा, यह योजना किसानों को यह भरोसा देती है कि बाजार के उतार-चढ़ाव उनके मेहनत और जीवन पर हावी नहीं होंगे। इससे किसान अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं और उत्पादन में वृद्धि के लिए नए तकनीकी और खेती के तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं।
एमएसपी योजना का पंजीकरण, प्रक्रिया और लाभार्थी
एमएसपी का लाभ प्राप्त करने के लिए किसानों के लिए योजना में पंजीकरण कराना अनिवार्य है। यह प्रक्रिया अब पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी हो चुकी है, और विभिन्न राज्यों में इसके लिए विशेष ऐप्स और पोर्टल्स (portals) उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए, किसान “महानंदनी ऐप” या अन्य राज्य पोर्टल्स का उपयोग करके अपने खेत और फसल की जानकारी दर्ज कर सकते हैं। पंजीकरण के लिए किसानों को कुछ आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होते हैं, जैसे आधार कार्ड, बैंक पासबुक या रद्द चेक, और भूमि का 7/12 दस्तावेज़। पंजीकरण पूरी तरह ऑनलाइन (online) होता है और जिला आपूर्ति प्रणाली इसका प्रबंधन करती है। एक बार पंजीकरण पूरा होने के बाद, सरकार द्वारा खरीदी गई फसल का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खाते में भेजा जाता है। इस तरह न केवल समयबद्ध और पारदर्शी लेन-देन सुनिश्चित होता है, बल्कि किसानों को यह भी स्पष्ट जानकारी मिलती है कि उनकी फसल कब और कितने मूल्य पर खरीदी जाएगी। इस प्रक्रिया से किसान वित्तीय रूप से सुरक्षित रहते हैं और योजना का लाभ उठाने में आसानी होती है। यह उनके आर्थिक निर्णयों को सुदृढ़ बनाता है, जैसे कि बीज, खाद और उपकरणों की खरीद के लिए बजट तय करना। साथ ही, यह सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी मेहनत का उचित मोल मिले और वे अपने परिवार की जीवन-शैली को बेहतर बना सकें।

किन फसलों के लिए लागू होता है एम एस पी और कीमत कैसे तय होती है?
भारत सरकार हर साल कुल 23 प्रमुख फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। ये फसलें चार श्रेणियों में आती हैं। अनाज में धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, जौ, रागी और ज्वार शामिल हैं; दालों में अरहर, चना, मूंग, मसूर और उड़द; तिलहन में सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, कुसुम, तिल और नाइजर; और वाणिज्यिक फसलों में गन्ना, कपास, खोपरा और जूट शामिल हैं। एम एस पी तय करने से पहले कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) सरकार को सिफारिश देता है। इस सिफारिश में किसानों की वास्तविक लागत, परिवार के श्रम का मूल्य, भूमि का किराया और संभावित मुनाफे का आकलन शामिल होता है। इसके आधार पर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, जिससे किसानों को आर्थिक सुरक्षा मिलती है और वे अपने उत्पादन में सुधार और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रेरित होते हैं। इस प्रक्रिया का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह किसानों को बाजार की अस्थिरताओं से सुरक्षित रखती है। उदाहरण के लिए, जब फसल के दाम गिरते हैं, तो एमएसपी के जरिए किसानों को तय मूल्य मिल जाता है, जिससे उनका जीवन और उत्पादन स्थिर रहता है। यह योजना किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य सुनिश्चित करने के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में निवेश और नई तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

एम एस पी की कानूनी गारंटी और दो प्रमुख प्रस्तावित मॉडल
किसानों की लगातार मांग रही है कि एम एस पी को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाए। इस संदर्भ में सरकार ने दो प्रमुख मॉडल सुझाए हैं। पहला, न्यूनतम मूल्य कानून, जिसके तहत निजी खरीदारों को एमएसपी से कम मूल्य पर फसल खरीदने की अनुमति नहीं होगी। इससे किसानों को बाज़ार में भी न्यूनतम मूल्य की गारंटी मिलती है। दूसरा, सीधी खरीद मॉडल, जिसमें सरकार स्वयं सभी 23 फसलों को तय एमएसपी पर सीधे खरीदेगी। हालांकि सीधी खरीद महंगी हो सकती है, पर यह किसानों की सुरक्षा और सरकारी नियंत्रण को मजबूत करती है। दोनों ही मॉडल किसानों को आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करने का वादा करते हैं। इससे किसान अपने उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, बाजार की अस्थिरताओं से प्रभावित नहीं होते और अपनी फसल की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिए पूरी मेहनत कर सकते हैं।

यूरोपीय संघ में किसानों को दी जाने वाली आय सहायता प्रणाली
भारत ही नहीं, यूरोपीय संघ (EU) भी अपने किसानों को आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से सशक्त बनाने के लिए विभिन्न आय सहायता योजनाएँ संचालित करता है। यूरोपीय संघ में किसानों को उनके खेत के आकार के आधार पर प्रत्यक्ष भुगतान (Direct Income Support) दिया जाता है। यह सहायता किसानों को टिकाऊ खेती अपनाने, पर्यावरण की रक्षा करने और पशु कल्याण जैसे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसके साथ ही, जलवायु और पारिस्थितिक योजनाओं में भाग लेने पर अतिरिक्त प्रोत्साहन भी मिलता है। यह नीति वैश्विक स्तर पर यह दर्शाती है कि किसानों की सुरक्षा और कृषि स्थायित्व सुनिश्चित करना सभी देशों की प्राथमिकता है। भारत भी अपनी एमएसपी नीतियों को अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से सीख लेकर और अधिक प्रभावी बना सकता है, जिससे किसानों की स्थिति और मजबूत हो और कृषि क्षेत्र अधिक टिकाऊ और स्थिर बन सके।
संदर्भ-
https://shorturl.at/N7eX0