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मेरठवासियो, क्या आपने कभी महसूस किया है कि हमारे शहर की आत्मा केवल उसके इतिहास, शौर्य या औद्योगिक प्रगति में ही नहीं, बल्कि उन पवित्र जलधाराओं की छांव में भी छुपी है, जो चुपचाप हमारे विश्वास, परंपराओं और भावनाओं को सींचती रही हैं? गंगा और यमुना - ये केवल नदियाँ नहीं हैं, बल्कि वे जीवनधाराएँ हैं, जिन्होंने पीढ़ियों से हमारी सांस्कृतिक चेतना को दिशा दी है। मेरठ की भौगोलिक स्थिति ही इसे विशेष बनाती है - ये शहर उन पावन नदियों के बहुत समीप है, जिनके तटों पर बने घाट न केवल धार्मिक कर्मकांडों का स्थल हैं, बल्कि श्रद्धा, पौराणिकता और आध्यात्मिक अनुभूति का संगम भी हैं। गढ़मुक्तेश्वर की गंगा आरती में जब सैकड़ों दीये बहते हैं, तो उनमें केवल प्रकाश नहीं होता - उसमें श्रद्धा की लौ जलती है। द्रौपदी घाट पर जब कोई माँ अपने बच्चों संग जल अर्पण करती है, तो वह केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्मृति और श्रद्धा की पीढ़ीगत यात्रा होती है। और जब कोई यात्री अनूपशहर की शांतियों में बैठकर गंगा की धारा को निहारता है, तो वह केवल प्रकृति नहीं, आत्मा की शांति महसूस करता है। मेरठ का यह आध्यात्मिक पक्ष अक्सर शोरगुल और आधुनिकता की भीड़ में छुप जाता है, लेकिन जो लोग घाटों की ओर रुख करते हैं, उन्हें अहसास होता है कि मेरठ केवल एक शहर नहीं, एक जीवंत अनुभव है - जहाँ जल, परंपरा और आस्था एक साथ बहते हैं।
आज हम इस लेख में मेरठ के उन पवित्र और ऐतिहासिक स्थलों को जानेंगे जो आस्था, संस्कृति और परंपरा का प्रतीक हैं। सबसे पहले मेरठ की भौगोलिक स्थिति और आध्यात्मिक महत्व को समझेंगे। फिर गढ़मुक्तेश्वर घाट की धार्मिक और ऐतिहासिक झलक पर नजर डालेंगे और गढ़ गंगा से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं और पिंडदान की परंपरा को जानेंगे। इसके बाद द्रौपदी घाट और उसके महाभारतकालीन ऐतिहासिक संदर्भों को देखेंगे। अंत में अनूपशहर घाट की “छोटी काशी” के रूप में पहचान और इसकी विरासत पर ध्यान देंगे।
मेरठ की भौगोलिक स्थिति और आध्यात्मिक महत्व
मेरठ सिर्फ एक ऐतिहासिक शहर या औद्योगिक केंद्र नहीं है, बल्कि यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक ऐसा स्थल है जहाँ अध्यात्म और संस्कृति साथ-साथ चलते हैं। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे एक अनोखा धार्मिक महत्व देती है, क्योंकि यह गंगा और यमुना - दो पवित्र नदियों - के बहुत ही निकट स्थित है। ये नदियाँ न केवल हिंदू धर्म में मोक्ष का मार्ग मानी जाती हैं, बल्कि इनके तटों पर बसे अनेक घाट भी मेरठवासियों की धार्मिक जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा हैं। मेरठ से करीब 35-50 किलोमीटर के भीतर आने वाले घाटों में गढ़मुक्तेश्वर, द्रौपदी घाट और अनूपशहर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। इन स्थानों पर धार्मिक अनुष्ठानों, पिंडदान, कार्तिक पूर्णिमा स्नान, और पर्वों के अवसर पर उमड़ने वाली श्रद्धा की लहरें यह साबित करती हैं कि मेरठ का अध्यात्म सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि इस धरती की मिट्टी में रचा-बसा है। यह शहर एक ऐसा संगम है जहाँ श्रद्धा, परंपरा और भक्ति हर दिन जीवन का हिस्सा बनती हैं।

गढ़मुक्तेश्वर घाट: धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण
गढ़मुक्तेश्वर, मेरठ से लगभग 37 किलोमीटर दूर स्थित एक ऐसा तीर्थ है, जहाँ समय मानो ठहर सा गया हो। हापुड़ जिले के इस घाट को "गढ़ गंगा" के नाम से भी जाना जाता है और यह एनएच-24 पर स्थित होने के कारण बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों के लिए सुलभ है। यहां का मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, सती मंदिर और प्राचीन गंगा मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं। इसके अतिरिक्त, 13वीं शताब्दी की गयासुद्दीन बलबन की मस्जिद इस बात का प्रतीक है कि यह स्थल केवल हिंदू नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विविधता का भी केंद्र रहा है। गढ़मुक्तेश्वर का सबसे प्रसिद्ध आयोजन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है, जब छह लाख से भी अधिक श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए बृजघाट में एकत्र होते हैं। यहाँ का वातावरण मंत्रोच्चार, दीपों की रोशनी और भक्तों की श्रद्धा से सराबोर रहता है। दशहरे से पहले यहां एक भव्य उत्सव भी मनाया जाता है, जो गंगा किनारे की सांस्कृतिक जीवंतता को दर्शाता है। इस क्षेत्र के 100 से अधिक मंदिरों में वेदांत मंदिर, अमृत परिसर और विशाल हनुमान मंदिर उल्लेखनीय हैं, जो यहां की धार्मिक ऊर्जा को और गहरा करते हैं।
गढ़ गंगा और पिंडदान से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
गढ़मुक्तेश्वर को केवल तीर्थयात्रा का एक गंतव्य मानना इसकी आत्मा को कम आंकना होगा। यह स्थान “मुक्ति-धाम” के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों ने अपने परिजनों - कौरवों - की आत्मा की शांति के लिए उपाय सोचा, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गढ़मुक्तेश्वर में गंगा तट पर पिंडदान करने का सुझाव दिया। पांडवों ने इस सलाह का पालन किया और यहीं पर गंगा में पिंडदान कर अपने कुल का उद्धार किया। इस ऐतिहासिक धार्मिक क्रिया के कारण ही यह स्थान आज भी लाखों श्रद्धालुओं द्वारा पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान हेतु चुना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ किए गए तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। गढ़मुक्तेश्वर में तर्पण के दौरान जल अर्पण कर देवताओं, ऋषियों और पूर्वजों को प्रसन्न किया जाता है। यह परंपरा आज भी जीवंत है और हर वर्ष हजारों परिवार इसे निभाने के लिए यहाँ आते हैं।
द्रौपदी घाट: हस्तिनापुर से जुड़ी आस्था और ऐतिहासिकता
हस्तिनापुर, जो मेरठ के निकट स्थित है, न केवल महाभारत का पौराणिक नगर है, बल्कि भारतीय सभ्यता का एक जीता-जागता इतिहास भी है। यहाँ स्थित द्रौपदी घाट एक ऐसा स्थान है जहाँ भक्ति, आस्था और नारी सम्मान एक साथ समाहित होते हैं। माना जाता है कि द्वापर युग में रानी द्रौपदी प्रतिदिन गंगा स्नान के लिए यहीं आया करती थीं। इस स्थान पर एक छोटा-सा मंदिर स्थित है जो उनके चीरहरण की उस अमर कथा को दर्शाता है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपमान से बचाया था। यह मंदिर केवल एक संरचना नहीं, बल्कि एक गवाही है नारी शक्ति, ईश्वर की करुणा और धर्म के विजय की। आधुनिक भारत में इस मंदिर का पुनर्निर्माण पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा कराया गया था, जो यह दर्शाता है कि यह स्थान आज के भारत के लिए भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना प्राचीन काल में था। इसे दुनिया का एकमात्र “द्रौपदी मंदिर” माना जाता है और यह स्थान आज भी हजारों भक्तों को साहस और श्रद्धा का प्रतीक लगता है।

अनूपशहर घाट: "छोटी काशी" के रूप में पहचान और ऐतिहासिक विरासत
मेरठ से लगभग 84 किलोमीटर दूर बुलंदशहर जिले में बसा अनूपशहर एक ऐसा तीर्थ स्थल है जिसे “छोटी काशी” कहा जाता है। यहाँ गंगा तट पर बसे घाटों की एक अद्भुत श्रृंखला है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का संगम प्रस्तुत करती है। यह स्थान न केवल पवित्र गंगा के स्नान के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की मंदिरों की बहुलता, प्राचीन धर्मशालाएं और पूजा अनुष्ठानों की नियमितता इसे धार्मिक रूप से जीवंत बनाए रखती हैं। अनूपशहर का एक विशेष पहलू इसकी ऐतिहासिक विरासत है - ब्रिटिश काल (British Period) में यह एक सैन्य छावनी के रूप में भी प्रयुक्त हुआ करता था, जिससे इसके ऐतिहासिक संदर्भ और भी गहरे हो जाते हैं। आज भी यहाँ आने वाले तीर्थयात्रियों को न केवल आत्मिक शांति का अनुभव होता है, बल्कि इस शहर की स्थापत्य और सांस्कृतिक समृद्धि का भी साक्षात्कार होता है। मेरठवासियों के लिए यह एक ऐसा स्थल है, जहाँ वे भीड़-भाड़ से दूर, गंगा के शीतल जल में स्नान कर, अपने मन और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/3tukc8nk
https://tinyurl.com/bdfhmt66
https://tinyurl.com/yc8htd8t
https://tinyurl.com/26edcptv
https://tinyurl.com/2bs5h2dn