कैसे गुरु नानक जयंती, मेरठ वासियों के जीवन में भक्ति, सेवा और मानवता का संदेश जगाती है?

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
05-11-2025 09:16 AM
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कैसे गुरु नानक जयंती, मेरठ वासियों के जीवन में भक्ति, सेवा और मानवता का संदेश जगाती है?

जब कार्तिक पूर्णिमा की रात मेरठ के आसमान में उतरती है, तो गुरुद्वारों से गूंजती शबद की मधुर स्वर लहरियाँ पूरे शहर को एक अलग ही आध्यात्मिक वातावरण में ले जाती हैं। लंगर की रसोई से उठती सोंधी खुशबू, नगर कीर्तन में श्रद्धा के साथ झूमते लोगों की ऊर्जा और प्रभात फेरियों की शांत ध्वनि, हर गली और मोहल्ले में गुरु नानक देव जी की पवित्र स्मृति को जीवंत बना देती है। उस दिन मेरठ केवल एक नगर नहीं रहता, वह मानो गुरु की संगत में बदल जाता है, जहाँ सेवा, समानता और करुणा के मूल्यों को हर दिल महसूस करता है। इस पावन अवसर पर मेरठ के प्रमुख गुरुद्वारों जैसे गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा (गढ़ रोड) और गुरुद्वारा करामत नगर में विशेष आयोजन होते हैं। यहाँ अखंड पाठ की पवित्र साधना होती है, नगर कीर्तन की शोभायात्रा श्रद्धालुओं को एक सूत्र में बाँधती है, और कथा-वाचन की अनुभूतियाँ लोगों को गुरु नानक जी की शिक्षाओं से जोड़ती हैं। बच्चे हों या बुज़ुर्ग, हर कोई सेवा में तत्पर दिखाई देता है। कोई प्रेम से लंगर बना रहा होता है, कोई आदरपूर्वक प्रसाद बाँट रहा होता है, तो कोई चुपचाप सफाई में अपना योगदान दे रहा होता है। यह दिन मेरठ की सड़कों पर इंसानियत की चलती-फिरती मिसाल बन जाता है, जहाँ धर्म और जाति की दीवारें स्वतः ही गिर जाती हैं। गुरु नानक जयंती केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि उन विचारों का उत्सव है जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सैकड़ों वर्ष पहले थे। गुरु जी का यह संदेश - "ना कोई हिंदू, ना मुसलमान, सबसे पहले इंसान" - मेरठ जैसे विविधता से भरे शहर में गूंजता है और लोगों को जोड़ने का काम करता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्चा धर्म मंदिरों, मस्जिदों या गुरुद्वारों में नहीं, बल्कि सेवा, विनम्रता और प्रेम में बसता है।
इस लेख में हम जानेंगे कि गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व क्यों कहा जाता है और यह दिन सिख समाज के साथ-साथ पूरे मानव समुदाय के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है। हम गुरु नानक देव जी के जीवन, उनकी शिक्षाओं और उनके द्वारा दिए गए सेवा, समानता और ईश्वरभक्ति के संदेश को समझेंगे। साथ ही मेरठ समेत भारत में इस दिन को किस तरह श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है, इस पर भी नजर डालेंगे। अंत में उन प्रमुख स्थानों का उल्लेख करेंगे जहाँ यह पर्व विशेष भव्यता के साथ मनाया जाता है, जैसे अमृतसर, दिल्ली और पटना।

File:Mural painting depicting Guru Nanak, Bhai Bala, and Bhai Mardana atop of a large fish from Takht Hazur Sahib, Nanded.jpg

गुरु नानक जयंती क्यों मनाई जाती है?
गुरु नानक जयंती को सिख धर्म में ‘प्रकाश पर्व’ कहा जाता है क्योंकि यह दिन उस दिव्य प्रकाश के धरती पर अवतरण का प्रतीक है, जिसने अंधकारमय सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था में नई रोशनी जगाई। यह पर्व गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने 15 अप्रैल 1469 को वर्तमान पाकिस्तान के ननकाना साहिब में जन्म लिया था। हालाँकि यह तिथि ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian Calendar) के अनुसार अप्रैल में आती है, लेकिन सिख समुदाय चंद्र पंचांग के अनुसार इसे कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाता है, जो हर वर्ष अक्टूबर-नवंबर में आती है। गुरु नानक देव जी ने धार्मिक सीमाओं, जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध जो आवाज़ उठाई, वही आज भी उनके जन्मोत्सव को एक आध्यात्मिक आंदोलन बना देती है। यह दिन केवल एक ऐतिहासिक व्यक्ति की याद नहीं, बल्कि उनके विचारों, शिक्षाओं और उनके द्वारा दिखाए गए मानवता के रास्ते को अपनाने का संकल्प होता है। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि धर्म का असली रूप करुणा, सेवा और समानता है।

गुरु नानक देव जी का जीवन, जन्मस्थान और शुरुआती आध्यात्मिक यात्रा
गुरु नानक देव जी का जीवन एक ऐसी गाथा है जो आध्यात्मिकता और सामाजिक चेतना का अद्भुत संगम है। उनका जन्म एक साधारण व्यापारी परिवार में हुआ, लेकिन उनका दृष्टिकोण और चिंतन बचपन से ही असाधारण था। मात्र सात वर्ष की आयु में वे धर्म और समाज से जुड़े गहरे प्रश्न पूछने लगे थे। उनके पिता मेहता कालू उन्हें व्यापार और लेखा-जोखा सिखाना चाहते थे, लेकिन नानक का मन सदैव आत्मा की गहराइयों में उतरने को आतुर रहता था। युवावस्था में ही उन्होंने परिवारिक जीवन अपनाया, विवाह किया और दो पुत्रों के पिता बने। लेकिन उनका जीवन लक्ष्य इससे कहीं आगे था। उन्होंने देशभर में और विदेशों (जैसे मक्का, बगदाद और तिब्बत) में यात्राएँ कीं, जिन्हें उदासियाँ कहा गया। इन यात्राओं में उन्होंने समाज के हर वर्ग से संवाद किया, समानता, भाईचारे और एकेश्वरवाद का संदेश फैलाया। आज ननकाना साहिब स्थित उनका जन्मस्थान एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ लोग श्रद्धा से उनके जीवन के आरंभिक चरणों को स्मरण करते हैं।

File:Guru Nanak wearing robe with Perso-Arabic inscriptions 02.jpg

एकेश्वरवाद से सेवा तक: गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ और मानवता का संदेश
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ केवल धार्मिक उपदेश नहीं थीं, वे एक क्रांतिकारी सामाजिक दर्शन थीं। उन्होंने ऐसे समय में एकेश्वरवाद की बात की जब समाज में अंधविश्वास, जातिगत शोषण और धार्मिक कट्टरता का बोलबाला था। उनका मूल संदेश था - "इक ओंकार" अर्थात् ईश्वर एक है, और वह सभी का रचयिता है।

उनकी तीन मुख्य शिक्षाएँ —

  • "नाम जपो" (ईश्वर का ध्यान करो),
  • "कीरत करो" (ईमानदारी से जीवन यापन करो),
  • "वंड छको" (जो अर्जित किया है उसे बाँटो) —
    हर व्यक्ति के जीवन को उच्च नैतिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व से जोड़ती हैं।

उन्होंने सामाजिक समानता को व्यवहार में लाने के लिए लंगर प्रणाली शुरू की, जहाँ अमीर-गरीब, ब्राह्मण-शूद्र सभी एक पंगत में बैठकर भोजन करते हैं। उन्होंने स्त्रियों की गरिमा और महत्व को रेखांकित किया और कहा कि एक ही स्त्री से राजा भी जन्म लेता है और रंक भी। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा धर्म वह है जो सेवा, प्रेम और सच्चाई से जुड़ा हो।

गुरु नानक जयंती कैसे मनाई जाती है? परंपराएँ, कीर्तन और सामुदायिक सेवा
गुरु नानक जयंती के आयोजन केवल धार्मिक रीति-रिवाज़ नहीं हैं, वे समाज को जोड़ने और आत्मिक उन्नति की प्रक्रिया हैं। इस पर्व की शुरुआत दो दिन पहले अखंड पाठ से होती है - गुरु ग्रंथ साहिब का 48 घंटे का अविरत पाठ। मुख्य दिन की सुबह प्रभात फेरी निकाली जाती है, जिसमें श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हुए नगर भ्रमण करते हैं। दिन में नगर कीर्तन आयोजित होता है, जिसमें पाँच प्यारों की अगुवाई में सिख संगत सजी हुई पालकी (गुरु ग्रंथ साहिब) के साथ चलती है। इसमें शबद-कीर्तन, झांकियाँ, ढोल-नगाड़े और गातका (सिख युद्धकला) के प्रदर्शन होते हैं। गुरुद्वारों में दिनभर कीर्तन, कथा और अरदास की जाती है। कराह प्रसाद और लंगर सेवा इस दिन की आत्मा माने जाते हैं। लंगर में सभी लोग - चाहे जाति, धर्म, वर्ग कोई भी हो - एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि गुरु नानक जी के ‘वंड छको’ सिद्धांत का जीवंत स्वरूप है।

File:Harmindar Sahib(Golden Temple).JPG

गुरु नानक जयंती पर दर्शन के लिए भारत के प्रमुख स्थल

यदि आप गुरु नानक जयंती के अवसर पर किसी विशेष स्थल की यात्रा करना चाहते हैं, तो भारत में कई ऐसे स्थान हैं जहाँ इस पर्व की दिव्यता चरम पर होती है:

  • अमृतसर का स्वर्ण मंदिर: यहाँ की रात में की जाने वाली रौशनी, विशाल लंगर सेवा, और हज़ारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति इसे एक अद्वितीय अनुभव बना देती है। अखंड पाठ, कीर्तन और अमृत सरोवर में डुबकी, सब मिलकर इस पर्व को आत्मा से जोड़ते हैं।
  • दिल्ली का गुरुद्वारा बंगला साहिब: शांत और आध्यात्मिक वातावरण में यहाँ नगर कीर्तन, कीर्तन दरबार और लंगर बड़े पैमाने पर आयोजित होते हैं। यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु मानो आत्मिक शांति का अनुभव लेकर लौटता है।
  • पटना का तख़्त श्री पटना साहिब: गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मस्थान पर स्थित यह तख़्त, गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का स्मरण करते हुए भव्य आयोजनों से गूंज उठता है। यहाँ श्रद्धालुओं को कथा, कीर्तन, सेवा और अरदास का दिव्य संगम देखने को मिलता है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/432rrmnn 
https://tinyurl.com/bpaedurc 



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