नर्मदा नदी: कैसे यह मध्य भारत और गुजरात के लोगों की जीवनधारा और संस्कृति को जोड़ती है

नदियाँ और नहरें
16-11-2025 09:26 AM

नर्मदा नदी, भारत की पश्चिम की ओर बहने वाली प्रमुख नदी है और पेनिनसुलर (Peninsular) भारत की सबसे लंबी पश्चिम की ओर बहने वाली नदी मानी जाती है। यह नदी ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अरब सागर और गंगा घाटी के बीच एक प्रमुख जलमार्ग रही है। दूसरी सदी के ग्रीक भूगोलवेत्ता प्रटॉलेमी (Ptolemy) ने इसे ‘नमादे’ के नाम से जाना। नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के अमरकंटक की पहाड़ी पर स्थित एक छोटे जलाशय, नर्मदा कुंड, से होता है, जिसकी ऊँचाई 1,057 मीटर है और यह छत्तीसगढ़ की सीमा के पास स्थित है। नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के क्षेत्रों से होकर बहती है, और विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमालाओं के बीच गुजरते हुए लगभग 1,312 किलोमीटर की दूरी तय कर अरब सागर के कच्छ की खाड़ी में भरती है, जो गुजरात के भरूच से लगभग 10 किलोमीटर उत्तर में है। नर्मदा बेसिन लगभग 98,796 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और इसमें छत्तीसगढ़ का कुछ हिस्सा भी शामिल है।

नर्मदा नदी के मार्ग में हसनगाबाद के मैदान, धार का उच्चभूमि क्षेत्र, माहिशमती मैदान और मंडहता तथा मुरकट्टा की खाईयाँ शामिल हैं। इसका बेसिन उत्तर में विंध्य, पूर्व में मैकाल, दक्षिण में सतपुड़ा और पश्चिम में अरब सागर से घिरा हुआ है। वर्षा रेखा के पास स्थित यह बेसिन रिफ्ट वैली में बहती है और उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच एक प्राकृतिक विभाजक का काम करती है। इस रिफ्ट वैली का निर्माण प्रायद्वीप के उत्तरी हिस्से के नीचे धंसाव और भूकंपीय गतिविधियों के कारण हुआ। नर्मदा नदी के मार्ग में कई जलप्रपात हैं, जिनमें जबलपुर, मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में धुआंधार जलप्रपात विशेष रूप से प्रसिद्ध है। नदी के मुख्य सहायक नदियों में हलोन, बंजर, बरना और तवा प्रमुख हैं, जिसमें तवा नदी सबसे लंबी सहायक नदी है। नदी के किनारे अनेक धार्मिक स्थल हैं, जिनमें महेश्वर और ओंकारेश्वर के मंदिर प्रमुख हैं।

नर्मदा नदी के मार्ग में कई बांध और प्रमुख विद्युत परियोजनाएँ भी स्थित हैं। इनमें सरदार सरोवर बांध, इंदिरा सागर बांध, ओंकारेश्वर बांध, बरगी बांध और महेश्वर बांध प्रमुख हैं, जो सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन और जल प्रबंधन में अहम भूमिका निभाते हैं। नर्मदा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि यह भारत के पश्चिमी भाग की जीवनधारा, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक भी है। इसके जल, जलप्रपात, घाट और मंदिर पीढ़ियों से लोगों के जीवन और विश्वास का हिस्सा रहे हैं और आज भी यह नदी क्षेत्रीय विकास, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक पहचान में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/ycx5d27t 
https://tinyurl.com/bdu2xx8f 
https://tinyurl.com/4ee6fda4 



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