कैसे मेरठ की सड़कों पर बढ़ते हादसे, कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम की ज़रूरत को साबित कर रहे हैं?

गतिशीलता और व्यायाम/जिम
17-11-2025 09:16 AM
कैसे मेरठ की सड़कों पर बढ़ते हादसे, कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम की ज़रूरत को साबित कर रहे हैं?

मेरठ की सड़कों पर हर सुबह एक नई रफ़्तार दौड़ पड़ती है - बसें, ट्रक, कारें, ई-रिक्शे और मोटरसाइकिलें, सभी अपनी-अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते हुए शहर की ऊर्जा को जीवंत रखते हैं। लेकिन इस रफ़्तार के बीच एक अदृश्य भय हमेशा मंडराता है - सड़क दुर्घटनाओं का खतरा। आँकड़े बताते हैं कि मेरठ जैसे औद्योगिक और शैक्षणिक केंद्रों में हर साल सैकड़ों सड़क हादसे होते हैं, जिनमें असंख्य लोग घायल या मृत हो जाते हैं। 2021 से 2024 के बीच के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डेटा इस भयावह सच्चाई को उजागर करते हैं कि सबसे ज़्यादा प्रभावित वे लोग हैं जो समाज की रीढ़ हैं - 18 से 30 वर्ष की युवा पीढ़ी। ये हादसे केवल संख्याएँ नहीं हैं; हर संख्या के पीछे एक परिवार की अधूरी कहानी, एक माँ की आँखों का आँसू, और एक अधूरे सपनों की गूंज छिपी होती है। मेरठ की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में जब ट्रैफ़िक बढ़ता है, सड़कें संकरी पड़ती हैं, और ध्यान ज़रा-सा भी भटक जाता है, तब एक पल की चूक ज़िंदगी और मौत के बीच की दूरी तय कर देती है। ऐसे में एक सवाल अनिवार्य रूप से उठता है - क्या आधुनिक तकनीक इन हादसों को कम कर सकती है? क्या मशीनें अब हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी निभाने को तैयार हैं? यही वह मोड़ है जहाँ “कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम (Collision Avoidance System)” जैसी आधुनिक तकनीक सामने आती है - एक ऐसा नवाचार जो इंसानी गलतियों को समझकर, उनसे पहले ही सतर्क हो जाता है। यह तकनीक केवल वाहनों को नहीं, बल्कि पूरे समाज को एक सुरक्षित भविष्य की दिशा में ले जाने की क्षमता रखती है।
इस लेख में हम समझेंगे कि सड़क हादसों से क्या सीख मिलती है और क्यों आज इस सिस्टम की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है। आगे हम कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम की मूल अवधारणा को जानेंगे, इसके प्रमुख प्रकारों और उनके काम करने के तरीक़े को समझेंगे। साथ ही, यह भी देखेंगे कि सेंसर (sensor) और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) कैसे वाहन को “सतर्क” बनाते हैं। अंत में, हम भारत में इस तकनीक के भविष्य, इसके सामाजिक महत्व, और सड़क सुरक्षा की दिशा में इसके बढ़ते योगदान पर चर्चा करेंगे।

सड़क हादसों से सीख: क्यों ज़रूरी है कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम
भारत में सड़क दुर्घटनाएँ आज एक गंभीर सामाजिक संकट बन चुकी हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (National Crime Records Bureau - NCRB) के अनुसार, देश में हर चार मिनट में एक व्यक्ति सड़क हादसे में अपनी जान गंवाता है। हर साल लाखों परिवार इन दुर्घटनाओं से प्रभावित होते हैं - और दुखद बात यह है कि अधिकांश हादसे मानव भूलों की वजह से होते हैं। तेज़ रफ़्तार, मोबाइल पर ध्यान, थकान या अचानक ओवरटेक (overtake) -  ये सब मिलकर दुर्घटनाओं का कारण बन जाते हैं। ऐसे में कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम (Collision Avoidance System - CAS) एक नई उम्मीद बनकर उभरता है। यह तकनीक वाहन को “स्मार्ट” बनाती है - यानी गाड़ी के सेंसर और कंप्यूटर मिलकर यह समझ सकते हैं कि कब सामने खतरा है और कब ड्राइवर को सतर्क करने या ब्रेक लगाने की ज़रूरत है। इस प्रणाली का उद्देश्य है - “त्रुटि से पहले चेतावनी”। जहाँ पहले ड्राइवर का ध्यान चूकने से टक्कर हो जाती थी, वहीं अब मशीन खुद सतर्क रहकर हादसे की संभावना घटा देती है। यह केवल तकनीक नहीं, बल्कि सड़क सुरक्षा का एक नया युग है, जो लाखों जिंदगियाँ बचा सकता है।

कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम क्या है और यह वाहन की सुरक्षा कैसे बढ़ाता है
कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम (CAS) एक उन्नत सुरक्षा तकनीक है जो वाहन को संभावित टक्कर से पहले सचेत करता है या आवश्यक कदम उठाता है। इस सिस्टम में रडार, कैमरे और अल्ट्रासोनिक सेंसर (Ultrasonic Sensor) लगे होते हैं जो वाहन के आसपास के माहौल पर लगातार नज़र रखते हैं। ये सेंसर आगे, पीछे और किनारों पर मौजूद वस्तुओं की दूरी और गति का मापन करते हैं। यदि किसी बाधा या वाहन से टकराव की संभावना बनती है, तो कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम ड्राइवर को तुरंत चेतावनी देता है। कुछ सिस्टम्स इतने उन्नत होते हैं कि वे अपने-आप आपातकालीन ब्रेकिंग (Automatic Emergency Braking) या स्टीयरिंग (steering) हस्तक्षेप कर सकते हैं, जिससे टक्कर से पहले वाहन रुक जाए या दिशा बदल ले। इस तकनीक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह ड्राइवर की मदद करती है, उसे बदलती नहीं। यह इंसान की क्षमता को बढ़ाती है - थकान, ध्यान भटकने या अंधे कोनों में छिपे खतरे को पहचानने में मदद करती है। आने वाले समय में यह उतनी ही अनिवार्य हो जाएगी, जितना आज एयरबैग या सीट बेल्ट हैं।

कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम के प्रमुख प्रकार और उनके कार्य
यह प्रणाली कई अलग-अलग रूपों में काम करती है, जिनका उद्देश्य एक ही है - टक्कर से पहले सुरक्षा सुनिश्चित करना।

(1) असिस्ट सिस्टम्स (Assist Systems):
ये सिस्टम वाहन के नियंत्रण में सहायता करते हैं।

  • एडैप्टिव क्रूज़ कंट्रोल (Adaptive Cruise Control): यह आगे चल रहे वाहन से तय दूरी बनाए रखने के लिए आपकी गति को अपने-आप समायोजित करता है।
  • ऑटोमेटिक इमरजेंसी ब्रेकिंग (AEB): यदि सामने कोई अवरोध अचानक आ जाए और ड्राइवर प्रतिक्रिया न दे, तो यह खुद ब्रेक लगा देता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल (Electronic Stability Control): यह वाहन को फिसलने या मुड़ने के दौरान असंतुलन से बचाता है।
  • पार्किंग असिस्ट सिस्टम (Parking Assist System): यह कैमरों और सेंसर के माध्यम से ड्राइवर को सुरक्षित पार्किंग में मदद करता है।

(2) अलर्ट सिस्टम्स (Alert Systems):
ये ड्राइवर को आस-पास के खतरों से सचेत करते हैं।

  • फॉरवर्ड कोलिझन वार्निंग (Forward Collision Warning): सामने टक्कर की संभावना होने पर ड्राइवर को तुरंत चेतावनी देता है।
  • लेन डिपार्चर वार्निंग (Lane Departure Warning): यदि वाहन अपनी लेन से बाहर जाने लगता है, तो यह सिग्नल देता है।
  • ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन (Blind Spot Detection): साइड मिरर से न दिखने वाले वाहनों का पता लगाकर ड्राइवर को सूचित करता है।
  • पैदल यात्री पहचान प्रणाली: सड़क पर चलने वाले व्यक्ति या साइकिल सवार को पहचानकर टक्कर की आशंका घटाती है।

इन प्रणालियों की वजह से ड्राइविंग न सिर्फ़ अधिक सुरक्षित, बल्कि अधिक आत्मविश्वासपूर्ण भी बन जाती है।

सेंसर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: कैसे यह तकनीक टक्कर से पहले खतरे को पहचानती है
कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम की असली ताकत इसके सेंसर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में छिपी है। गाड़ी में लगे कैमरे, रडार और लाइडार (LIDAR) सेंसर आसपास की हर गतिविधि का डेटा इकट्ठा करते हैं - जैसे अन्य वाहनों की दूरी, गति, दिशा, पैदल यात्री की गतिविधि, यहाँ तक कि सड़क पर मौजूद अवरोध। एआई (AI) इस विशाल डेटा का रियल-टाइम विश्लेषण करता है और तुरंत तय करता है कि कौन-सी स्थिति जोखिमपूर्ण है। अगर खतरा बढ़ रहा हो तो यह ड्राइवर को श्रव्य या दृश्य संकेत के ज़रिए चेतावनी देता है। और अगर प्रतिक्रिया समय से न मिले, तो सिस्टम अपने आप ब्रेक या स्टीयरिंग नियंत्रण ले सकता है। एआई का यह तेज़ विश्लेषण “मिलीसेकंड” (millisecond) के स्तर पर होता है - यानी इंसान की सोच और प्रतिक्रिया से कई गुना तेज़। यही गति दुर्घटनाओं को रोकने में निर्णायक साबित होती है। भविष्य में यह तकनीक न केवल इंसानों के लिए सुरक्षा कवच बनेगी, बल्कि स्वायत्त वाहनों (self-driving cars) की रीढ़ भी बनेगी।

भविष्य की ओर कदम: भारत में सड़क सुरक्षा और कोलिझन अवॉयडेंस तकनीक का विस्तार
भारत में सड़क सुरक्षा को लेकर जागरूकता लगातार बढ़ रही है। सरकार ने हाल के वर्षों में एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम (ADAS) को नई कारों में शामिल करने पर ज़ोर दिया है। कई प्रमुख वाहन निर्माता अब अपनी नई मॉडलों में कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम और एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम को मानक फीचर (feature) बना रहे हैं। यह बदलाव सिर्फ़ तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक भी है - क्योंकि यह सोच में परिवर्तन लाता है। जहाँ पहले सुरक्षा को “विकल्प” माना जाता था, अब वह “ज़रूरत” बन चुकी है। कोलिझन अवॉयडेंस सिस्टम के आने से न केवल सड़कें सुरक्षित होंगी, बल्कि ड्राइवरों की जिम्मेदारी भी बढ़ेगी। यह तकनीक आने वाले वर्षों में भारत की यातायात संस्कृति को नया स्वरूप दे सकती है - जहाँ गाड़ियाँ सिर्फ़ चलेंगी नहीं, बल्कि सोचेंगी और समझेंगी भी। यह भविष्य की ओर एक ऐसा कदम है, जो हर सफर को अधिक सुरक्षित, और हर मंज़िल को और निश्चिंत बना देगा।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/yrb96wb9 
https://tinyurl.com/jc8s2rba 
https://tinyurl.com/ymf8m9f2 
https://tinyurl.com/544cfaa2 
https://tinyurl.com/4frmzvdr 



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