कैसे मेरठ की गलियों में बसी भाषाएँ हमारी सांस्कृतिक पहचान और एकता की कहानी सुनाती हैं

ध्वनि II - भाषाएँ
18-11-2025 09:22 AM
कैसे मेरठ की गलियों में बसी भाषाएँ हमारी सांस्कृतिक पहचान और एकता की कहानी सुनाती हैं

मेरठ की गलियों, बाजारों और सड़कों पर हर दिन अनगिनत लोग, वाहन और गतिविधियाँ होती हैं। यह शहर अपने ऐतिहासिक महत्व, औद्योगिक प्रगति और शहरी जीवन की व्यस्तता के लिए जाना जाता है। लेकिन इसी व्यस्तता के बीच एक सवाल हमेशा हमारे दिमाग में घूमता है - क्या हमारी भाषाएँ और बोलियाँ, जो हमें हमारी पहचान और संस्कृति से जोड़ती हैं, उतनी ही सुरक्षित और संरक्षित हैं जितना हमारी ऐतिहासिक धरोहर? मेरठ में हिंदी और उर्दू की मिठास, लोक साहित्य और शायरी की समृद्ध परंपरा आज भी जीवित है, और यह केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक आत्मा का हिस्सा बन चुकी है। शहर की स्कूलों, चौपालों और किताबों में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर किसी की जुबान में यह बहुभाषीय समृद्धि झलकती है। ऐसे में यह समझना आवश्यक है कि भारत में भाषाई विविधता केवल सांस्कृतिक सौंदर्य का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, शिक्षा और नागरिक अधिकारों से भी जुड़ी हुई है।
इस लेख में हम भारत की भाषाई विविधता और इसकी ऐतिहासिक, सामाजिक और संवैधानिक पहचान पर विस्तार से चर्चा करेंगे। हम देखेंगे कि भारत में भाषाओं के पाँच प्रमुख परिवार कौन से हैं और ये देश की भौगोलिक और सांस्कृतिक विशेषताओं को कैसे प्रतिबिंबित करते हैं। इसके बाद हम संस्कृत से आधुनिक भारतीय भाषाओं तक की ऐतिहासिक यात्रा का अवलोकन करेंगे और समझेंगे कि कैसे अपभ्रंश और प्राकृत से हिंदी, बंगाली, मराठी जैसी भाषाएँ विकसित हुईं। इसके अलावा हम भारत के बहुभाषी राज्यों और जिलों की सांस्कृतिक तस्वीर पर नजर डालेंगे, जिससे यह स्पष्ट होगा कि भाषाई विविधता केवल परंपरा तक सीमित नहीं बल्कि आज भी हमारे समाज की वास्तविकता है। अंत में, हम भारतीय संविधान में भाषाई अधिकारों और संरक्षण की व्यवस्था और विविधता में एकता के महत्व को समझेंगे, जिससे पता चलेगा कि भाषाएँ केवल संवाद का साधन नहीं बल्कि राष्ट्रीय पहचान और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक भी हैं।

भारत की भाषाई विविधता और उसके प्रमुख भाषा परिवार
भारत में सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं, जो न केवल संचार का साधन हैं बल्कि हमारी सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान का भी हिस्सा हैं। ये भाषाएँ देश के प्रत्येक कोने की परंपरा और जीवनशैली को प्रतिबिंबित करती हैं। भाषाओं को मुख्य रूप से पाँच प्रमुख परिवारों में बाँटा जा सकता है:

  • इंडो-आर्यन (Indo-Aryan) भाषाएँ: हिंदी, बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी आदि। ये भाषाएँ उत्तर, पश्चिम और पूर्व भारत में बोली जाती हैं और इनका साहित्य, लोकगीत, और धार्मिक ग्रंथ इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।
  • द्रविड़ियन भाषाएँ: तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ आदि। दक्षिण भारत की ये भाषाएँ प्राचीनतम साहित्यिक परंपरा के साथ आज भी जीवित हैं। तमिल का साहित्य दो हजार वर्ष से अधिक पुराना है और धार्मिक, दार्शनिक और लोक साहित्य का प्रमुख स्रोत है।
  • ऑस्ट्रो-एशियाटिक (Austro-Asiatic) भाषाएँ: संथाली, मुंडारी जैसी आदिवासी भाषाएँ। ये भाषाएँ विशेष रूप से पूर्वोत्तर और मध्य भारत में बोली जाती हैं और इनका महत्व आदिवासी जीवन, लोककथाओं और संस्कृति में निहित है।
  • तिब्बती-बर्मी भाषाएँ: नागामीज़, मिज़ो, बोडो आदि। ये भाषाएँ पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्रों में पाई जाती हैं और इनका साहित्यिक और मौखिक स्वरूप समुदाय के इतिहास को संजोकर रखता है।
  • सेमिटो-हैमिटिक (Semito-Hamitic) भाषाएँ: कुछ पश्चिमी प्रभाव वाली भाषाएँ, जो मुख्य रूप से ऐतिहासिक वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संपर्क से भारत में आई हैं।

भारत की यह भाषाई विविधता केवल संवाद का माध्यम नहीं है। पहाड़, नदियाँ, जंगल, मैदान और रेगिस्तान जैसी भौगोलिक विशेषताओं ने क्षेत्रीय जीवनशैली और भाषाई विकास को आकार दिया है। इस विविधता ने भारत को बहुभाषी और सहिष्णु राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जहाँ लोग अलग-अलग भाषाएँ बोलकर भी साझा संस्कृति और परंपरा से जुड़े रहते हैं।

संस्कृत से आधुनिक भारतीय भाषाओं तक की ऐतिहासिक यात्रा
भारत में भाषाओं का विकास एक लंबा और दिलचस्प इतिहास है। प्राचीन काल में संस्कृत शिक्षा, धर्म और दर्शन की भाषा थी। पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण को व्यवस्थित किया, जिससे यह भाषा अत्यंत वैज्ञानिक और व्यवस्थित रूप में विकसित हुई। आम जनता प्राकृत और अपभ्रंश बोलती थी, जो धीरे-धीरे आधुनिक भारतीय भाषाओं का आधार बनी।

  • इंडो-आर्यन भाषाएँ: हिंदी, बंगाली, मराठी और गुजराती जैसी भाषाएँ अपभ्रंश से विकसित हुईं। इनमें न केवल साहित्यिक ग्रंथ बल्कि लोकगीत, कहानियाँ और धार्मिक ग्रंथ भी समृद्ध हैं।
  • द्रविड़ भाषाएँ: तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ का साहित्य हजारों वर्षों से विकसित हो रहा है। इन भाषाओं की प्राचीन साहित्यिक परंपरा आज भी जीवित है, जिसमें धार्मिक ग्रंथ, शिलालेख और लोककथा शामिल हैं।

भाषाओं का यह विकास दर्शाता है कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह यात्रा हमें दिखाती है कि कैसे भिन्न-भिन्न भाषाओं ने समय के साथ अपनी मौलिकता बनाए रखते हुए आधुनिक भारतीय समाज की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत किया।

भारत के बहुभाषी राज्य और जिलों की सांस्कृतिक तस्वीर
भारत की भाषाई विविधता केवल इतिहास या साहित्य तक सीमित नहीं है; यह आज भी हमारे राज्यों और जिलों में जीवंत रूप में मौजूद है। कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं:

  • असम: 117 भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें स्थानीय आदिवासी भाषाएँ भी शामिल हैं।
  • महाराष्ट्र: 114 भाषाएँ, जिसमें मराठी के साथ-साथ कई स्थानीय भाषाओं और बोलियों का समृद्ध मिश्रण है।
  • कर्नाटक: 111 भाषाएँ, जो द्रविड़ साहित्य और स्थानीय संस्कृति का प्रतिबिंब हैं।
  • दिल्ली: 109 भाषाएँ, जो देश की राजधानी के बहुसांस्कृतिक और बहुभाषीय स्वरूप को दर्शाती हैं।
  • बेंगलुरु जिला: 107 भाषाएँ, जो इसे देश का सबसे बहुभाषी जिला बनाती हैं।

ये आंकड़े बताते हैं कि भारत की भाषाई विविधता केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश में फैली हुई है और लोगों के जीवन, परंपरा और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यही विविधता भारत को बहुभाषी, सहिष्णु और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाती है।

भारतीय संविधान में भाषाई अधिकारों और संरक्षण की व्यवस्था
भारतीय संविधान ने भाषाओं और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं।

  • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति संरक्षित रखने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 343-351: केंद्र और राज्यों में आधिकारिक भाषाओं के उपयोग और संरक्षण के नियम।
  • आठवीं अनुसूची: 22 भाषाओं को आधिकारिक मान्यता दी गई, जैसे हिंदी, उर्दू, तमिल, तेलुगु, संस्कृत आदि।
  • शास्त्रीय भाषाएँ: तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया को उनके ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्व के लिए विशेष दर्जा।

इन प्रावधानों से सुनिश्चित होता है कि हर नागरिक अपनी मातृभाषा और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रख सके। इसके अलावा प्राथमिक शिक्षा से लेकर सरकारी कार्यवाही तक भाषाई अधिकारों की रक्षा संविधान के माध्यम से होती है।

भाषाई एकता: विविधता में भारत की पहचान
भाषाई विविधता केवल संचार का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। भारत के विभिन्न राज्यों और शहरों में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन फिर भी ये समुदायों को जोड़ती हैं। बहुभाषावाद के बावजूद समाज में सहिष्णुता और एकता बनी रहती है। भारत की यह भाषाई समावेशिता न केवल सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक है, बल्कि नागरिकों को अपनी पहचान बनाए रखने और सम्मानित महसूस कराने का भी माध्यम है। यही विविधता देश की एकता और सामाजिक सौहार्द का सजीव प्रमाण है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/29d4qczd 
https://tinyurl.com/26ahvong
https://tinyurl.com/24krhy2o 
https://tinyurl.com/28rv73h2
https://tinyurl.com/bdfjcky8 



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