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मेरठवासियो, आज की युवा पीढ़ी के फैशन में अगर कोई वस्त्र सबसे अधिक लोकप्रिय और बहुमुखी बन चुका है, तो वह है हूडी। कभी खेलों और श्रमिकों के लिए बनाया गया यह परिधान अब आधुनिक जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है। मेरठ जैसे शहर, जो अपने ऊर्जावान युवाओं, खेल संस्कृति और बदलते फैशन रुझानों के लिए जाने जाते हैं, वहां हूडी (Hoodie) केवल सर्दी से बचने का साधन नहीं रही, बल्कि आत्मविश्वास, स्टाइल और पहचान का प्रतीक बन गई है। यह लेख आपको ले चलेगा उस सफ़र पर जहाँ हूडी ने साधारण परिधान से लेकर वैश्विक फैशन प्रतीक बनने तक का लम्बा और दिलचस्प सफर तय किया है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि हूडीज़ का ऐतिहासिक विकास कैसे हुआ और हूड वाले परिधानों की उत्पत्ति का क्या संबंध मध्यकालीन समाज से रहा। फिर हम समझेंगे कि हूडीज़ ने समय के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक सोच को कैसे प्रभावित किया और कैसे यह एक साधारण वस्त्र से बढ़कर आत्म-अभिव्यक्ति का प्रतीक बन गई। इसके बाद हम भारतीय फैशन में हूडी ट्रेंड्स (hoodie trends) पर वैश्वीकरण के प्रभाव को जानेंगे, साथ ही मशहूर हस्तियों और प्रभावशाली व्यक्तियों की भूमिका पर भी नज़र डालेंगे जिन्होंने हूडी को नई पहचान दी। अंत में, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि आज के युवाओं के लिए हूडी क्यों सिर्फ़ कपड़ा नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और आज़ादी का एहसास बन चुकी है।
फैशन में हूडीज़ का ऐतिहासिक उदय
हूडीज़ का इतिहास 1930 के दशक के अमेरिका से शुरू होता है। उस समय “चैंपियन एथलेटिक अपैरल” (Champion Athletic Apparel) नामक कंपनी ने पहली बार खिलाड़ियों और मज़दूरों के लिए स्वेटशर्ट पर हूड जोड़ा था। इसका उद्देश्य सरल था - सर्द मौसम में शरीर को गर्म रखना और आराम देना। मगर इस व्यावहारिक परिधान ने जल्दी ही अपनी सीमाएं पार कर लीं। खेल के मैदान से यह रोज़मर्रा के जीवन में आ गया। जब खिलाड़ियों ने अपनी गर्लफ्रेंड्स को अपनी हूडी उपहार में देनी शुरू की, तब यह केवल कपड़ा नहीं, बल्कि अपनत्व और स्नेह का प्रतीक बन गया। 1970 के दशक में जब हिप-हॉप (hip-hop), स्ट्रीट कल्चर (street culture) और स्केटर कम्युनिटी (skater community) उभरी, तब हूडी ने एक नया अर्थ ले लिया - यह विद्रोह, स्वाभिमान और आत्म-अभिव्यक्ति की पहचान बन गया। वहीं, फिल्म “रॉकी” (Rocky) के प्रतिष्ठित दृश्यों ने इसे संघर्ष और मेहनत का प्रतीक बना दिया। धीरे-धीरे हूडी का रूप इतना बहुआयामी हो गया कि वह केवल स्पोर्ट्सवेयर (sportswear) नहीं, बल्कि फैशन और जीवनशैली दोनों का संगम बन गया। आज हूडी को पहनना सिर्फ़ ठंड से बचना नहीं, बल्कि अपने व्यक्तित्व को बयान करना है।
हूड वाले परिधानों की उत्पत्ति और विकास
हूड वाले वस्त्रों की जड़ें मध्यकालीन यूरोप में मिलती हैं। उस समय श्रमिक वर्ग “शैपरॉन” (chaperon) नामक वस्त्र पहनता था जिसमें सिर को ढकने के लिए कपड़े का एक विस्तार जुड़ा होता था - यही हूड का प्रारंभिक रूप था। यह उन्हें बारिश, बर्फ़ और धूल से बचाने का साधन था। बाद में यह विचार धार्मिक परिधानों और सैन्य वस्त्रों में भी दिखाई दिया। आधुनिक हूडी का निर्माण 1930 में हुआ जब अमेरिकी कंपनी “चैंपियन” (Champion) ने इसे स्वेटशर्ट के साथ जोड़ा। शुरू में यह केवल खिलाड़ियों और मज़दूरों के लिए था, लेकिन जल्द ही विश्वविद्यालयों ने इस स्टाइल को अपनाया। उन्होंने अपनी टीमों और कैंपस के नामों वाले हूडी बनवाए - जिससे “कैंपस स्टाइल” की शुरुआत हुई। 1960 और 70 के दशक में यह कॉलेजों से निकलकर आम युवाओं के फैशन का हिस्सा बन गया। समय के साथ डिजाइन, कपड़े और रंगों में बदलाव आया, लेकिन हूडी की आत्मा वही रही - सहजता और स्वतंत्रता का एहसास। आज यह परिधान आधुनिक स्ट्रीटवियर (streetwear) का सबसे पहचानने योग्य प्रतीक बन चुका है।
हूडीज़ के सामाजिक और सांस्कृतिक अर्थ
हूडी आज केवल वस्त्र नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश का माध्यम है। यह सहजता, आत्मनिर्भरता और बराबरी का प्रतीक है। इसे पहनने वाला व्यक्ति चाहे किसी भी वर्ग या समुदाय से हो, वह अपनी पहचान के साथ सहज दिखता है। हूडी में एक “यूनिवर्सल” (universal) भावना है - जो पहनने वाले को किसी समूह से जोड़े बिना भी एक सामूहिकता का एहसास देती है। कई बार हूडी को विद्रोह या रहस्य के प्रतीक के रूप में भी देखा गया - विशेषकर 1980 और 1990 के दशकों में, जब स्ट्रीट कल्चर और रैप संगीत का दौर था। वहीं दूसरी ओर, यह रचनात्मकता और आत्मविश्वास का प्रतीक भी बनी। युवाओं के लिए हूडी पहनना अपनी सोच और आज़ादी को खुले तौर पर व्यक्त करने का तरीका बन गया। यह कपड़ा वर्ग, लिंग या पहचान की सीमाओं को मिटाकर एक नए युग की समानता का प्रतीक बन चुका है।
भारतीय हूडी रुझानों पर वैश्वीकरण का प्रभाव
21वीं सदी में भारत में हूडीज़ ने एक नया रूप लिया - वैश्विक और स्थानीय फैशन के मेल से जन्मा “देसी-ग्लोबल” ट्रेंड। इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रसार ने युवाओं को दुनिया भर के स्टाइल्स से जोड़ दिया। अब भारतीय डिज़ाइनर पारंपरिक पैटर्न, लोककला और भारतीय रंगों को हूडी डिज़ाइनों में शामिल कर रहे हैं। यह केवल पश्चिमी नकल नहीं, बल्कि अपनी जड़ों का आधुनिक पुनर्पाठ है। वैश्विक ब्रांडों ने भी भारतीय बाज़ार के अनुरूप डिज़ाइन पेश किए - हल्के कपड़े, स्थानीय मौसम के अनुकूल सामग्री और भारतीय शरीर संरचना के हिसाब से कटिंग। इस मिश्रण ने भारतीय हूडी संस्कृति को नई पहचान दी। आज भारत में हूडी सिर्फ़ एक परिधान नहीं, बल्कि आधुनिकता और परंपरा के संतुलन का प्रतीक बन चुकी है - जहाँ ग्लोबल स्टाइल और लोक भावना का संगम होता है।
मशहूर हस्तियों और प्रभावशाली व्यक्तियों की भूमिका
हूडीज़ को लोकप्रिय बनाने में मशहूर हस्तियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। हॉलीवुड (Hollywood) से लेकर बॉलीवुड तक, खिलाड़ी से लेकर संगीतकार तक - सभी ने हूडी को अपनाया और इसे ट्रेंड बना दिया। जब रणवीर सिंह, विराट कोहली या दीपिका पादुकोण जैसे सितारे हूडी पहनकर पब्लिक अपीयरेंस (public appearance) देते हैं, तो यह वस्त्र आम युवाओं के लिए प्रेरणा बन जाता है। इसी तरह सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों (Social Media Influencers) और फैशन ब्लॉगरों (Fashion Bloggers) ने हूडी संस्कृति को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। इंस्टाग्राम (Instagram) और यूट्यूब (YouTube) पर हर जगह हूडीज़ के अनगिनत स्टाइल दिखते हैं - ओवरसाइज़्ड (oversized), मिनिमल (minimal), ग्राफिक (graphic), क्रॉप (crop) या ज़िप-अप (zip-up)। हर डिज़ाइन अपने पहनने वाले के मूड और व्यक्तित्व को बयान करता है। मशहूर चेहरों के प्रभाव से हूडी अब सिर्फ़ स्ट्रीट लुक नहीं रही, बल्कि हाई फैशन का भी अहम हिस्सा बन चुकी है।

युवाओं की बदलती पसंद और हूडी संस्कृति
आज का युवा फैशन को केवल दिखावे के रूप में नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में देखता है - और हूडी इसका सबसे सशक्त उदाहरण है। यह वस्त्र उन्हें सहजता, सुरक्षा और आत्मविश्वास का अनुभव कराता है। स्कूल और कॉलेजों में यह सबसे आम लेकिन सबसे व्यक्तिगत परिधान बन चुका है। हर व्यक्ति इसे अपनी तरह से अपनाता है - कोई इसके रंगों से खुद को दर्शाता है, तो कोई डिज़ाइन से। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स (Online Platforms) और स्थानीय बाजारों में इसकी उपलब्धता ने इसे हर वर्ग के लोगों तक पहुंचा दिया है। भारत का कपड़ा उद्योग भी हूडी उत्पादन में बड़ी भूमिका निभा रहा है - जिससे स्थानीय रोजगार और रचनात्मकता दोनों को बल मिला है। आज हूडी एक ऐसी फैशन भाषा बन चुकी है जो सबकी समझ में आती है - यह परंपरा, आधुनिकता और आत्मविश्वास का संगम है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/mtcznj6e
https://tinyurl.com/4ftydsmb
https://tinyurl.com/25eeak4u
https://tinyurl.com/3bfapnyu
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