कभी सुकून देने वाली खुशबू, अब क्यों बन रही है हमारे शरीर के लिए हानिकारक?

गंध - सुगंध/परफ्यूम
12-12-2025 09:22 AM
कभी सुकून देने वाली खुशबू, अब क्यों बन रही है हमारे शरीर के लिए हानिकारक?

मेरठवासियों, आपका शहर अपनी पुरानी तहज़ीब, हस्तशिल्प, खेल संस्कृति और गंगा-जमुनी परंपरा के लिए तो मशहूर है ही, लेकिन यहाँ की जीवनशैली में एक और अनोखी बात है - यहाँ के लोग अपनी शख़्सियत में खुशबू का भी ख़ास ध्यान रखते हैं। पुराने ज़माने में मेरठ की गलियों में जब लोग गुजरते थे, तो हवा में गुलाब, चंदन, खस और कस्तूरी जैसी प्राकृतिक इत्रों की महक घुली रहती थी। ये सुगंधें सिर्फ़ शरीर को नहीं, मन को भी ताजगी देती थीं, और लोगों के व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुकी थीं। लेकिन वक्त के साथ ये प्राकृतिक खुशबुएँ धीरे-धीरे रासायनिक परफ़्यूमों की चमक-दमक में खो गईं। आज जो महक हमें आधुनिक और आकर्षक लगती है, वही हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी बन चुकी है। इन परफ़्यूमों की बोतलों में बंद खुशबू के साथ-साथ ऐसे कई हानिकारक रसायन भी छिपे हैं, जो हमारी त्वचा, श्वसन तंत्र और यहाँ तक कि हमारे हार्मोनल संतुलन (Hormonal Balance) को भी प्रभावित करते हैं।
हम सब अपनी पहचान में एक मनमोहक खुशबू चाहते हैं - वो आत्मविश्वास जो महक से झलकता है, वो सुकून जो दिनभर साथ रहता है। मगर क्या हमने कभी सोचा है कि इन महंगी बोतलों की कीमत केवल पैसे से नहीं, बल्कि सेहत से भी चुकानी पड़ रही है? यही सच जानने की कोशिश हम इस लेख में करेंगे - जहाँ हम परफ़्यूमों के इतिहास से लेकर उनके रासायनिक युग तक का सफर समझेंगे, जानेंगे कि इनमें कौन से रसायन सबसे अधिक हानिकारक हैं, और यह भी कि कैसे प्राकृतिक व जैविक इत्र फिर से हमारे जीवन में सुरक्षित और सच्ची सुगंध का अहसास लौटा सकते हैं।
इस लेख में हम समझेंगे कि इत्र का इतिहास कैसे प्राकृतिक सुगंधों से रासायनिक प्रयोगों की ओर मुड़ा। पहले, हम जानेंगे कि पुराने समय में प्राकृतिक इत्र कैसे बनाए जाते थे - जब हर खुशबू में मिट्टी की सोंध और फूलों की ताजगी बसती थी। इसके बाद, हम देखेंगे कि आधुनिक परफ़्यूमों में कौन-कौन से रसायन, जैसे पैराबेन (Paraben) और थैलेट्स (Phthalates), हमारे शरीर और श्वसन तंत्र पर किस तरह प्रभाव डालते हैं। फिर हम समझेंगे कि ये तत्व त्वचा की एलर्जी (allergy), हार्मोनल असंतुलन और पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं का कारण कैसे बनते हैं। और अंत में, हम बात करेंगे प्राकृतिक और जैविक इत्रों की - जो फिर से लोगों के दिलों में जगह बना रहे हैं और हमें हमारी मिट्टी की असली महक से जोड़ रहे हैं।

इत्र का इतिहास और आधुनिक रासायनिक परफ़्यूमों की ओर बदलाव
इत्र का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। मिस्र, फारस और भारत में इत्र को पवित्रता, औषधि और सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ा गया था। भारत में विशेष रूप से जौनपुर, कन्नौज और लखनऊ जैसे शहर इत्र निर्माण की कला के केंद्र थे। गुलाब जल, खस, चंदन, केवड़ा और कस्तूरी जैसी प्राकृतिक सामग्रियों से बनी खुशबू लोगों की पहचान बन चुकी थी। परंतु 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने इस परंपरा की दिशा बदल दी। जब मशीनों ने हस्तकला की जगह ली, तो सुगंध उद्योग में भी कृत्रिम (synthetic) रसायनों का प्रयोग शुरू हुआ। ये रसायन सस्ते थे, लंबे समय तक टिकते थे, और बड़े पैमाने पर उत्पादित किए जा सकते थे। लेकिन इनका एक अंधेरा पक्ष भी था - शरीर पर पड़ने वाले रासायनिक दुष्प्रभाव। आज लगभग 90% परफ़्यूम सिंथेटिक (synthetic) तत्वों से बनते हैं, जिनमें से कई सीधे तौर पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। यह परिवर्तन सिर्फ़ सुगंध का नहीं, बल्कि हमारी जीवनशैली और सोच का प्रतीक है - जहाँ परंपरा से सुविधा की ओर झुकाव ने प्राकृतिकता की जगह कृत्रिमता को दे दी।

परफ़्यूम में पाए जाने वाले शीर्ष हानिकारक रसायन
जब आप किसी परफ़्यूम की बोतल के पीछे "फ्रेग्रेन्स (Fragrance)" या "अरोमा (Aroma)" शब्द देखते हैं, तो यह वास्तव में दर्जनों रासायनिक पदार्थों का मिश्रण होता है। यह शब्द कंपनियों को उन रसायनों के नाम छिपाने की छूट देता है जो उपभोक्ताओं को डराने वाले हो सकते हैं।
इनमें से पाँच प्रमुख रसायन सबसे अधिक हानिकारक माने जाते हैं:

  • थैलेट्स (Phthalates): इनका उपयोग सुगंध को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए होता है, लेकिन यह हार्मोनल असंतुलन और प्रजनन क्षमता में कमी से जुड़े हैं।
  • स्टाइरीन (Styrene): कैंसरजनक (carcinogenic) माना जाने वाला यह रसायन तंत्रिका तंत्र को भी नुकसान पहुँचा सकता है।
  • मस्क कीटोन (Musk Ketone): यह कृत्रिम कस्तूरी रसायन शरीर में एकत्र होकर न्यूरोलॉजिकल (neurological) क्षति का कारण बनता है।
  • मेथिलीन क्लोराइड (Methylene Chloride): एक विलायक जो यकृत, फेफड़ों और हृदय को प्रभावित करता है।
  • पैराबेन (Parabens): इनका उपयोग परफ़्यूम की शेल्फ लाइफ़ बढ़ाने के लिए होता है, लेकिन यह शरीर के हार्मोनल संतुलन को बिगाड़ते हैं और कैंसर के जोखिम से जुड़े हैं।

इन सभी रसायनों का सम्मिलित प्रभाव मानव शरीर के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है। यह वाष्पशील यौगिक हवा में घुलकर ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाते हैं और वायु प्रदूषण में वृद्धि करते हैं।

परफ़्यूम में थैलेट्स और पैराबेन का प्रभाव: हार्मोनल असंतुलन से कैंसर तक
थैलेट्स और पैराबेन हमारे शरीर के “एंडोक्राइन सिस्टम” को बाधित करते हैं - यह वही तंत्र है जो हार्मोनल संतुलन बनाए रखता है। इन रसायनों का असर धीरे-धीरे दिखता है, लेकिन बेहद गहरा होता है। पुरुषों में यह टेस्टोस्टेरोन (testosterone) के स्तर को घटाकर बांझपन की स्थिति तक पहुँचा सकते हैं, वहीं महिलाओं में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ाकर स्तन कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं। कई अंतरराष्ट्रीय शोधों ने यह साबित किया है कि पैराबेन त्वचा के माध्यम से रक्त में घुलकर शरीर में जमा होता है। वर्षों बाद यही जमाव गंभीर रोगों का रूप ले सकता है। इन रसायनों का प्रभाव केवल शरीर तक सीमित नहीं - यह भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। इसलिए आजकल “थैलेट-मुक्त (Phthalate-Free)” और “पारबेन से मुक्त (Paraben-Free)” परफ़्यूमों की माँग बढ़ रही है, जो उपभोक्ता जागरूकता का सकारात्मक संकेत है।

सुगंधित रसायनों से होने वाले तंत्रिका और श्वसन संबंधी दुष्प्रभाव
कई बार किसी महकदार परफ़्यूम को सूंघते ही सिरदर्द या उल्टी जैसी प्रतिक्रिया होती है - यह केवल संवेदनशीलता नहीं, बल्कि रासायनिक प्रतिक्रिया होती है। सुगंध में मौजूद “वाष्पशील कार्बनिक यौगिक” (VOCs) साँस के साथ मस्तिष्क तक पहुँचकर न्यूरॉन्स (neurons) को प्रभावित करते हैं। इससे माइग्रेन (migraine), चक्कर आना, एकाग्रता में कमी और नींद से जुड़ी समस्याएँ बढ़ जाती हैं। जिन लोगों को पहले से अस्थमा या एलर्जी होती है, उनके लिए ये रसायन और भी ख़तरनाक साबित हो सकते हैं। कुछ शोध बताते हैं कि इनडोर स्पेस (indoor space) - जैसे ऑफिस, स्कूल या मॉल - में उपयोग किए गए परफ़्यूम हवा की गुणवत्ता को इतना खराब कर देते हैं कि सांस लेने में कठिनाई महसूस होती है। कई देशों में अब “सुगंध-मुक्त क्षेत्र” बनाए जा रहे हैं, ताकि संवेदनशील लोगों की सुरक्षा हो सके। हमें भी अपने घरों और कार्यस्थलों पर यह समझना चाहिए कि खुशबू की अति, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।

गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर परफ़्यूम के दुष्प्रभाव
परफ़्यूम में मौजूद पेट्रोकेमिकल्स (petrochemical) गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष रूप से हानिकारक हैं। जब गर्भवती महिला इन रसायनों के संपर्क में आती है, तो वे नाल के माध्यम से भ्रूण तक पहुँच सकते हैं, जिससे भ्रूण के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का विकास प्रभावित होता है। शोधों के अनुसार, थैलेट्स के अधिक संपर्क से जन्म दोष, हार्मोनल असंतुलन और एडीएचडी (ADHD) जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। छोटे बच्चों की त्वचा पतली और श्वसन तंत्र संवेदनशील होता है, जिससे वे रासायनिक प्रभाव जल्दी ग्रहण कर लेते हैं। डॉक्टर सलाह देते हैं कि गर्भावस्था के दौरान किसी भी सुगंधित उत्पाद - चाहे वह परफ़्यूम हो, डिओड्रेंट (deodorant) या रूम फ्रेशनर (room freshener) - के उपयोग से बचना चाहिए। बच्चों पर तो कभी भी परफ़्यूम या सुगंधित लोशन नहीं लगाना चाहिए। यह छोटी सावधानी जीवनभर के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकती है।

सुरक्षित विकल्प: प्राकृतिक सुगंधों और जैविक इत्रों की ओर वापसी
अब समय आ गया है कि हम फिर से प्राकृतिक खुशबूओं की ओर लौटें। भारत में सैकड़ों वर्षों से खस, चंदन, केवड़ा, गुलाब और चमेली जैसे पौधों से बनी सुगंधें न केवल सौंदर्य का प्रतीक रहीं, बल्कि आयुर्वेदिक दृष्टि से भी लाभकारी थीं। आज कई भारतीय ब्रांड्स फिर से “ऑर्गेनिक इत्र” बनाने लगे हैं - जो बिना रसायन, केवल प्राकृतिक तेलों और जल आसवन तकनीक से तैयार किए जाते हैं। ये इत्र न केवल सुरक्षित हैं बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी। मेरठ जैसे शहर, जहाँ कभी इत्र की गलियाँ संस्कृति की पहचान थीं, वहाँ इस परंपरा का पुनर्जागरण न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता के संरक्षण के समान है। अगली बार जब आप परफ़्यूम खरीदें, तो लेबल ज़रूर पढ़ें। याद रखें - हर खुशबू सिर्फ़ सुगंध नहीं होती, वह या तो जीवन में सुकून लाती है या धीरे-धीरे सेहत को नुकसान पहुँचाती है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/263kfj9m 
https://tinyurl.com/42m7ey6m 
https://tinyurl.com/2bkrnzbt  
https://tinyurl.com/2d5tf93b 



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