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अक्सर सर्दियों के आगमन के साथ एक सौंधी सी खुशबू से हमारे आस पास का क्षेत्र महकने लगता है। यह खुशबू किसी को बहुत ज्यादा मोहित करती है तो किसी को पसंद नहीं आती। क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि इसका मुख्य स्त्रोत क्या है? इसका मुख्य स्त्रोत है एक शैतानी पौधा या एल्स्टोनिया स्कोलेरिस (Alstonia scholaris) जो प्रमुखतः भारतीय उपमहाद्वीप, इंडोमालियन प्रायद्वीप और ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है। भारत में इस वृक्ष को सप्तपर्णी या छतिवन के नाम से जाना जाता है।
सप्तपर्णी के वृक्ष मुख्यतः अक्टुबर माह में पुष्पित तथा अप्रेल माह में फलित होते हैं, इनके पुष्प की सुगंध आस पास के सम्पूर्ण परिवेश को सुगंधित कर देती है। इस सदाबहार वृक्ष की पत्तियां एक पुष्प की पंखुड़ियों के समान समूह में होती हैं तथा एक समूह में प्रायः सात पत्तियां होती हैं, जिस कारण इसे सप्तपर्णी कहा जाता है। छायादार सप्तपर्णी के वृक्ष अक्सर बाग बगीचों उद्यानों आदि में देखने को मिलते हैं किंतु इन वृक्षों में चिड़िया नहीं बैठती हैं। दिल्ली में यह वृक्ष 1950 के दशक में लगया गया था, इससे पूर्व यह वृक्ष यहां नहीं था क्योंकि यह मुख्यतः हिमालयी क्षेत्र में 25,000 फीट की ऊंचाई पर उगता है तथा 20 वर्ष से भी कम समय में पूर्ण विकसित हो जाता है। सप्तपर्णी वृक्ष की ऊंचाई 80-90 फीट तक हो जाती है किंतु दिल्ली क्षेत्र में अनुकुलित आवास न मिल पाने के कारण यह वृक्ष पूर्ण विकसित नहीं हो पाये हैं। सप्तपर्णी वृक्ष को सजावट की दृष्टि से भी बागों में लगाया जाता है, वास्तव में यह जहां लगते हैं वहां की शोभा को अप्रतिम बढ़ा देते हैं। किंतु इन वृक्षों की सुगन्ध अपनी तीक्ष्णता के कारण अस्थमा के रोगियों के लिए हानिकारक होती है।
विश्व-भारती विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह के दौरान स्नातक और स्नातकोत्तर के हर छात्र को सप्तपर्णी वृक्ष की पत्तियां दी जाती हैं। यह परंपरा पौधे के नाम को दर्शाती है और ये परंपरा विश्वविद्यालय गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर (संस्थापक) द्वारा शुरू की गई थी। इसकी लकड़ी पेंसिल के निर्माण में भी उपयोग की जाती है, क्योंकि इसकी लकड़ी में पेंसिल बनाने के लिये उपयुक्त गुण होते हैं और यह पेड़ बहुत तेजी से बढ़ता है तथा इसे उगाना भी आसान होता है।
श्रीलंका में इसकी लकड़ी का उपयोग ताबूत बनाने के लिए किया जाता है। बोर्नेओ में इसकी लकड़ी के हल्के और सफेद रंग के होने के कारण इसका उपयोग नेट फ्लोट(net floats), घरेलू बर्तन, लकड़ी का तख्ते इत्यादि में किया जाता है। बौद्ध धर्म के थेरवाद में बताया गया है कि बौद्ध धर्म के प्रथम बोधि पुरूष भगवान गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति हेतु सप्तपर्णी वृक्ष को उपयोगी बताया है।
सप्तपर्णी एक औषधीय वृक्ष भी है। यह अपने औषधीय गुणों के कारण विश्व भर में जाना जाता है। इसकी छाल बहुत उपयोगी होती है। भारतीय वैद्यों द्वारा सदियों से इसका औषधीय उपयोग किया जा रहा है। सप्तपर्ण दस्त,ज्वर आदि बीमारियों में प्रभावशाली होता है। यह भारत के औषधकोश में एक कटु टॉनिक, कृमिनाशक और सावधिकरोगरोधी के रूप में वर्णित है। एक समय में, इसकी पत्तियों का काढ़ा बेरीबेरी रोग के उपचार के लिये भी उपयोग किया जाता है।
संदर्भ :
1. http://archive.indianexpress.com/news/the-smell-of-winter/720532/