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पृथ्वी में लगभग 71 प्रतिशत पानी है, जिसका अधिकांश हिस्सा महासागर में मौजूद है। पृथ्वी का अन्य हिस्सा अर्थात भू-खण्ड, नदियां, पहाड़, पर्वत इत्यादि में विभिन्न राष्ट्रों द्वारा स्वामित्व का दावा किया जाता है किंतु विशालकाय महासागरों जिनमें संसाधनों का एक विशाल भण्डार भी मौजूद है, का स्वामी कौन है। इसका निर्धारण करना वास्तव में एक कठिन कार्य है। यह महासागर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं तथा इनके द्वारा पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा कवर किया गया है। पृथ्वी का भूखण्ड इन महासागरों में द्वीपों के समान है, जिस पर विश्व की लगभग सात अरब जनसंख्या निवास करती है। इनमें से समुद्र का वास्तविक स्वामी कौन है?
विश्व में समुद्री मार्ग द्वारा आवाजाही बढ़ने लगी तो तत्कालीन सरकारों द्वारा एक समझौता किया गया कि समुद्र पर किसी का व्यक्तिगत स्वामित्व नहीं होगा। इस समझौते को फ्रिडम ऑफ सी डॉक्टराइन (Freedom of the Seas doctrine) कहा गया। इस सिद्धान्त के अंतर्गत समुद्रतटीय राष्ट्रों की समुद्री सीमा तीन मील कर दी गयी। इन राष्ट्रों को दी गयी समुद्री सीमा के भीतर बिना अनुमति के प्रवेश को घुसपैठ माना गया तथा समुद्र के शेष हिस्से को सभी राष्ट्रों के मध्य साझा किया गया। अतः खुले समुद्र में एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के समुद्री जहाज पर हमला युद्ध की श्रेणी में आएगा।
1812 के युद्ध और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने इस सिद्धान्त की स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग किया। आगे चलकर अमेरिका ने इसकी सीमा तीन मील से दो सौ मील कर दी। जिससे उसने अधिकांश तटीय राष्ट्रों की समुद्री सीमा को हड़प लिया, जिससे समुद्री राष्ट्रों में विवाद प्रारंभ हो गया तथा इन्होंने भी अपनी समुद्री सीमा का विस्तार किया।
औपनिवेशिकरण के दौरान विश्व में यूरोपियों का दब दबा रहा, इन्होंने अपने उपनिवेशी राष्ट्रों के संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित किया। आगे चलकर इन्होंने समुद्री संसाधनों की ओर रूख किया, सीमा रहित होने के कारण समुद्री संसाधनों के दोहन में तीव्रता आयी। जिसके चलते समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होने लगा।
जिस प्रकार समुद्री संसाधनों का अंधाधुन दोहन किया जा रहा है, ऐसी परिस्थिति में इसके देखरेख और विनियमन की सख्त आवश्यकता है। महासागर वातावरण से कार्बन को हटाने और ऑक्सीजन प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करता है। समुद्र में रोग निवारक जैविक संसाधनों का अपार भण्डार है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में मछली का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिसके प्रमुख स्त्रोत समुद्र ही है, किंतु इनका आवश्यकता से अधिक उपभोग इनकी प्रजातियों के लिए खतरा बन रहा है। जिसके चलते इन पर कुछ सीमाएं लगाने की आवश्यकता हैं, जिससे संरक्षण किया जा सके।
समुद्री मार्ग से व्यापार हेतु विभिन्न जहाजों या पोत जैसे कंटेनर जहाज, टैंकर, कच्चे तेल के जहाज, उत्पाद जहाज, रासायनिक जहाज, थोक वाहक, केबल परतें, सामान्य मालवाहक जहाज, अपतटीय आपूर्ति पोत का उपयोग किया जाता है। इन जहाजों द्वारा अपशिष्ट रासायनिक या अजैविक पदार्थों को समुद्र में छोड़ दिया जाता है जिससे इसका पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में समुद्री पर्यटन हेतु आए आगंतुक विशाल मात्रा में अपशिष्ट पदार्थों को यहां छोड़ा जाता है जिसका प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण में देखने को मिलता है।
आवश्यकता से अधिक खनन के कुप्रभावों से समुद्र भी अछूता नहीं रहा है। जिसके विनाशकारी प्रभाव समुद्र के प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र पड़े हैं। किसी भी प्रकार के निकर्षण से समुद्री जानवरों के आवासों का विनाश होता है, साथ ही बड़ी संख्या में मछलियों और अकशेरुकी जीवों का भी सफाया हो जाता है। वायुमंडल की जलवायु नियंत्रण हेतु महासागरों की महत्वपूर्ण भूमिका है, किंतु प्रदुषण के कारण समुद्री तापमान में वृद्धि हो रही है। जिसके चलते जलवायु चक्र में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र में बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का उत्पादन किया जाता है तथा वह समुद्र के माध्यम से वायुमण्डल में प्रवाहित कर दी जाती है। किंतु प्रदूषण के कारण इसकी मात्रा में भी कमी आ रही है।
महासागरों के समुचित उपयोग हेतु 1967 में, यू.एन के सदस्यों के आग्रह पर समुद्र के लिए एक नया कानून लाया गया। जिसके अंतर्गत इस सार्वजनिक मानवीय संपत्ति को संरक्षित करने के लिए कुछ नियमावली तैयार की गयी यह 1994 में लागू हुआ। समुद्रतटीय देशों में सीमा का विस्तार क्षेत्र 12 समुद्री मील कर दिया गया। समुद्रों में परमाणु परिक्षणों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। समुद्री संसाधनों का समुचित मात्रा में दोहन हेतु इन भी कुछ प्रतिबंध लगाए गए। किंतु इनके कुछ विशेष प्रभाव नहीं दिखाई दे रहे हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2HdwB1L
2. https://bit.ly/33Ekmoz
3. https://bit.ly/2MlOdwI
4. https://marinebio.org/conservation/ocean-dumping/ocean-resources/