क्यों करते हैं वैज्ञानिक प्रतिरूपण पर कई प्रयोग?

डीएनए के अनुसार वर्गीकरण
06-01-2020 10:00 AM
क्यों करते हैं वैज्ञानिक प्रतिरूपण पर कई प्रयोग?

विज्ञान ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है, जिनमें से एक प्रतिरूपण भी है। कुछ वैज्ञानिक विलुप्त होने से बचाने के लिए लुप्तप्राय प्रजातियों का प्रतिरूपण बनाने की कोशिश कर रहे हैं। तकनीकों का अभ्यास करने के लिए, वैज्ञानिकों ने अब तक गैर-लुप्तप्राय जानवरों, अर्थात् टैडपोल, चूहों और यहां तक कि घोड़ों का प्रतिरूपण किया गया है और इन प्रयोगों को सफल बनाने के लिए उनके द्वारा हजारों प्रयास किये गए हैं।

जीव-विज्ञान में प्रतिरूपण, आनुवांशिक रूप से समान प्राणियों की जनसंख्या उत्पन्न करने की प्रक्रिया है, जो प्रकृति में विभिन्न जीवों, जैसे बैक्टीरिया, कीट या पौधों द्वारा अलैंगिक रूप से प्रजनन करने पर उत्पन्न होती हैं। वहीं जैव-प्रौद्योगिकी में, प्रतिरूपण डीएनए खण्डों (आण्विक प्रतिरूपण), कोशिकाओं (सेल क्लोनिंग (cell cloning)) या जीवों की प्रतिरूप निर्मित करने की प्रक्रिया को कहा जाता है।

आणविक प्रतिरूपण कई अणुओं को बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। अक्सर प्रतिरूपण का प्रयोग संपूर्ण जीन युक्त डीएनए खण्डों के परिवर्धन के लिये किया जाता है, लेकिन इसका प्रयोग किसी भी डीएनए क्रम, जैसे प्रवर्तकों, गैर-कोडिंग क्रम तथा यादृच्छिक रूप से विखण्डित डीएनए, के परिवर्धन के लिये किया जा सकता है। जेनेटिक फ़िंगरप्रिंटिंग (genetic fingerprinting) से लेकर बड़े पैमाने पर प्रोटीन के उत्पादन तक, जैविक प्रयोगों व व्यावहारिक अनुप्रयोगों की एक व्यापक श्रृंखला में इसका प्रयोग किया जाता है।

किसी डीएनए खण्ड के प्रतिरूपण में आवश्यक रूप से चार चरण सम्मिलित होते हैं:
1. विखण्डन -
डीएनए के एक रेशे को तोड़ना।
2. बांधना - डीएनए के टुकड़ों को वांछित क्रम में एक साथ जोड़ना।
3. अभिकर्मक - डीएनए के नवगठित टुकड़ों को कोशिकाओं में डालना।
4. जाँच/चयन - उन कोशिकाओं का चयन करना जो नए डीएनए के साथ सफलतापूर्वक ट्रांसफ़ेक्ट (transfected) किए गए थे।

हालांकि ये चरण विभिन्न प्रतिरूपण विधियों में समान होते हैं, तथापि अनेक वैकल्पिक मार्गों का चयन किया जा सकता है, जिन्हें "प्रतिरूपण रणनीति" के रूप में संक्षेपित किया गया है। वहीं सोमेटिक सेल न्यूक्लीयर ट्रांसफर (Somatic-cell nuclear transfer), जिसे लोकप्रिय रूप से SCNT के रूप में जाना जाता है, का उपयोग अनुसंधान या चिकित्सीय उद्देश्यों में भ्रूण बनाने के लिए भी किया जा सकता है। इसका सबसे संभावित उद्देश्य स्टेम सेल (stem cell) अनुसंधान में उपयोग करके भ्रूण का उत्पादन करना है। इस प्रक्रिया को "अनुसंधान प्रतिरूपण" या "चिकित्सीय प्रतिरूपण" भी कहा जाता है।

इसका लक्ष्य प्रतिरूपित मानवों का निर्माण करना (जिसे "प्रजननीय प्रतिरूपण" कहा जाता है) नहीं है, बल्कि ऐसी मूल कोशिकाओं का निर्माण करना है, जिनका प्रयोग मानव विकास का अध्ययन करने और संभावित बीमारियों का उपचार करने के लिये किया जा सके। प्रतिरूपण के लिए SCNT का उपयोग क्यों किया जाता है इसका कारण यह है कि दैहिक कोशिकाओं को आसानी से अधिग्रहित किया जा सकता है और प्रयोगशाला में संवर्धित किया जा सकता है। यह प्रक्रिया खेत के जानवरों के विशिष्ट जीनोम को जोड़ या हटा सकती है। याद रखने की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रतिरूपण को शुक्राणु और अंडे के जीनोम का उपयोग करने के बजाय ओओसाइट (oocyte) के सामान्य कार्यों को बनाए रखने पर उत्पन्न किया जाता है। जीव प्रतिरूप्रण (जिसे प्रजननीय प्रतिरूपण भी कहा जाता है) एक नए बहुकोशीय जीव के निर्माण की विधि को उल्लेखित करता है, जो जेनेटिक रूप से किसी अन्य जीव के समान होता है। संक्षेप में, प्रतिरूपण का यह रूप प्रजनन की एक अलैंगिक विधि है। अलैंगिक प्रजनन प्राकृतिक रूप से अनेक प्रजातियों में पाई जाने वाली विधि है, जिनमें अधिकांश वनस्पतियां (वानस्पतिक प्रजनन देखें) और कुछ कीट शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने प्रतिरूपण के साथ कुछ बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं, जिनमें भेड़ों और गायों का अलैंगिक प्रजनन शामिल है।

विश्व में संभवतः सबसे प्रसिद्ध प्रतिरूपण एक 'डॉली' नाम की भेड़ का किया गया था। वह प्रजनन प्रतिरूपण द्वारा उत्पादित की गई थी, लेकिन गठिया और एक फेफड़े के ट्यूमर के कारण उसकी छह वर्ष (एक भेड़ की सामान्य उम्र के आधे में ही) की आयु में ही मृत्यु हो गई थी। डॉली के बाद 2018 की शुरुआत में एक दूसरे के साथ चिपके हुए दो बाल बंदरों की तस्वीर सामने आई थी। लंबी पुंछ वाले उन दोनों बंदरों का नाम झोंग झोंग और हुआ हुआ रखा गया था, इन्हें भी वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिरूपण की प्रक्रिय से उत्पन्न किया गया।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि एक दिन प्रतिरूपण कोशिकाओं का उपयोग हृदय की समस्याओं, मधुमेह और रीढ़ की हड्डी में चोट जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए किया जाएगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि, स्टेम सेल को पांच दिन पुराने प्रतिरूपीत भ्रूण से निकाल कर और उनसे विशिष्ट कोशिकाएं विकसित की जाएंगी जो बीमारी का इलाज कर सकती हैं। किसी व्यक्ति के अपने शरीर की कोशिकाओं को प्रतिरूपीत करके, वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि कोशिकाओं को प्राप्त करने वाले रोगी द्वारा एक प्रतिरूपीत स्टेम सेल क्रम को अस्वीकार नहीं किया जाएगा और आनुवंशिक सामग्री भी समान होगी। इस प्रक्रिय का उपयोग करके क्षतिग्रस्त हृदय या तंत्रिका कोशिका का इलाज किया जा सकता है।

संदर्भ :-
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Cloning
2. https://www.discovermagazine.com/health/clonings-long-legacy-and-why-itll-never-be-used-on-humans
3. https://www.centreofthecell.org/learn-play/ethics/cloning/why-do-scientists-clone/



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