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डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonucleic Acid-DNA) के अपने अनुक्रम में लगातार आकस्मिक परिवर्तन और उत्परिवर्तन होते रहते हैं। उत्परिवर्तन से प्रोटीन विकृत और गायब हो सकते हैं, और इससे शरीर में बीमारी उत्पन्न हो सकती है। हम सभी कुछ उत्परिवर्तन के साथ अपना जीवन शुरू करते हैं। माता-पिता से विरासत में मिले उत्परिवर्तन को जर्म-लाइन (Germ-Line) उत्परिवर्तन कहा जाता है, हालाँकि व्यक्ति के जीवनकाल के दौरान भी उत्परिवर्तन हो सकता है। कुछ उत्परिवर्तन कोशिका विभाजन के दौरान होते हैं अर्थात तब जब DNA की प्रतिलिपि बनती है। कुछ उत्परिवर्तन तब होते हैं जब DNA पर्यावरणीय कारकों जैसे पराबैंगनी विकिरण, रसायन और विषाणु आदि से क्षतिग्रस्त हो जाता है। इस प्रकार व्यक्ति के शरीर में बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं। कोशिकाओं में मौजूद गुणसूत्र और गुणसूत्रों में मौजूद जीन (Gene) अनुवांशिकता की जैविक इकाई हैं, और शरीर के कई लक्षणों को निर्धारित करते हैं। जीनों का समूह जीनोम (Genome) कहलाता है तथा यह आनुवंशिक पदार्थ बनाता है। जीनोम न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide) की 600 करोड़ से भी अधिक ईकाईयों से मिलकर बना है। विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए शरीर में प्रोटीन (Protein) और अन्य अणुओं का निर्माण विशिष्ट जीन क्रमों या DNA क्रमों के द्वारा किया जाता है। अगर इन DNA क्रमों में अंतर आ जाए तो शरीर में अनावश्यक या हानिकारक प्रोटीन का निर्माण होता है, जो हमारे शरीर की संरचना और कार्यिकी को प्रभावित करते हैं। DNA क्रम में इस प्रकार का अंतर ही उत्परिवर्तन है। उत्परिवर्तन कुछ परिस्थितियों में लाभकारी होते हैं, किन्तु अधिकांश उत्परिवर्तन शरीर में आनुवंशिक रोगों की संभावनाओं को बढ़ा देते हैं, जो फिर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित हो सकते हैं। पर्यावरण कारकों से होने वाले उत्परिवर्तन आनुवंशिक रोगों जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis), सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia), वर्णांधता (Color Blindness) आदि को विकसित करते हैं तथा यह विभिन्न कैंसर (Cancer) का कारण भी बनता है। ये बीमारियां पीढ़ी दर पीढ़ी संचरित हो सकती हैं।
इस प्रकार के उत्परिवर्तन के कारण होने वाले आनुवंशिक रोगों से बचने के लिए आवश्यक है कि परिवार के स्वास्थ्य इतिहास की पूरी जानकारी रखी जाए तथा इसे अपने स्वास्थ्य चिकित्सक से भी साझा किया जाये। स्वास्थ्य चिकित्सक आपको उचित सलाह देगा कि कैसे आप इस परिस्थिति में अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं। रोगों की पहचान के लिए उचित स्वास्थ्य परीक्षण, स्वस्थ आहार सूची, नियमित व्यायाम, तंबाकू और शराब का सेवन न करना आदि बातों की उचित जानकारी आपको अपने चिकित्सक से प्राप्त होगी।
आपके कुछ आनुवंशिक परीक्षण भी किए जाएंगे जो रोग की पहचान और उसे दूर करने के लिए प्रभावशाली होंगे। उत्परिवर्तन के उपचार इसके प्रकार के आधार पर किए जाते हैं। वर्तमान में आनुवंशिक रोगों के उपचार के लिए सी.आर.आई.एस.पी.आर. (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeat -CRISPR) तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जो आनुवंशिक रोगों के उपचार के लिए प्रभावी तकनीक है।
इस तकनीक का प्रयोग सर्वप्रथम 2012 में किया गया था। इस तकनीक में कुछ नए जीनों को सम्पादित किया जाता है जो आनुवांशिक रोगों की संभावना को कम कर देता है। भविष्य में इस प्रकार की तकनीक कैंसर, रक्त विकारों, रंजक हीनता, एड्स (AIDS), सिस्टिक फाइब्रोसिस, मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy), हंटिंगटन की बीमारी (Huntington’s) आदि के उपचार के लिए बहुत कारगर सिद्ध हो सकती हैं।