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प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश अधीन भारत प्रत्यक्ष तौर पर भले ही शामिल नहीं था, लेकिन युद्ध में बड़ी भूमिका जरूर निभाई थी। प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था, इन्होंने विश्व युद्धों में दुश्मनों के नाकों चने चबवा दिए थे। युद्ध के लिए अंग्रेज़ी शासकों द्वारा कई भारतीय सेनाओं की टुकड़ियाँ तैयार की गयीं और युद्ध के लिए विभिन्न देशों या स्थानों में भेजा गया। इन सैन्य ईकाईयों में 7वां (मेरठ) डिवीजन (Division) भी शामिल था। यह ब्रिटिश भारतीय सेना का एक इंफैंट्री (Infantry) सैन्य डिवीजन था, जिसने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अपनी सक्रिय सेवा दी। मेरठ डिवीजन पहली बार भारतीय सेना सूची में 1829 में सर जेस्पर निकोलस (Sir Jasper Nicholas) की कमान में दिखाई दिया था।
प्रथम विश्व युद्ध के प्रारम्भ होने पर अगस्त 1914 में मूल मेरठ डिवीजन को बदलकर 7वें (मेरठ) डिवीजन के रूप में संगठित किया गया। 1914 में 7वीं (मेरठ) डिवीजन भारतीय अभियान सैन्यदल ए (Force A) का हिस्सा था, जिसे फ्रांस में लड़ने वाले ब्रिटिश अभियान दल को मजबूत करने के लिए भेजा गया था। इसने भारतीय सैन्य-दल के हिस्से के रूप में एक पैदल सेना डिवीजन का गठन किया, जबकि मेरठ घुड़सवार ब्रिगेड (Brigade) को भारतीय घुड़सवार सैन्य-दल में दूसरे भारतीय घुड़सवार डिवीजन का हिस्सा बनाने के लिए अलग कर दिया गया था। जबकि फ्रांस में 7वें ब्रिटिश डिवीजन के साथ भ्रम से बचने के लिए, डिवीजन और उनके ब्रिगेड को मेरठ डिवीजन के नाम से जाना जाता था। लेकिन हिंद महासागर में काम कर रहे जर्मन हमलावरों एमडेन और कोनिग्सबर्ग की गतिविधियों और परिवहन जहाजों की धीमी गति के कारण भारत से रवानगी विलंबित हो गई। अक्टूबर-नवंबर 1914 में यह डिवीजन आखिरकार, पहले मेसिन्स और अर्मेनिएटेस के युद्ध में शामिल हुई।
7वीं (मेरठ) डिवीजन, 39वें रॉयल गढ़वाल राइफल्स के साथ पश्चिमी मोर्चे पर प्रथम विश्व युद्ध लड़ने के लिए गए थे। इसके बाद 20 सितंबर को इस सैन्य संगठन को बॉम्बे से पश्चिमी मोर्चे के लिए रवाना किया गया। 7वें मेरठ डिवीजन क्षेत्र का गठन 7वीं (मेरठ) डिवीजन के क्षेत्र की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए सितंबर 1914 में किया गया था। इसने मूल डिवीजन को नियंत्रित करने के लिए ब्रिगेड बनाना शुरू किये जिसमें 14वीं (मेरठ) कैवलरी ब्रिगेड (Cavalry Brigade), बरेली और दिल्ली ब्रिगेड और देहरादून ब्रिगेड शामिल थीं। 1918 में यह डिवीजन आगरा, अल्मोड़ा, बरेली, भीम ताल, चकराता, चंबाटिया, देहरादून, दिल्ली, गंगोरा, कैलाणा, लैंसडौन, मेरठ, मुरादाबाद, मुट्टा, रानीखेत, रुड़की और सितोली में पदों और स्टेशनों के लिए उत्तरदायी था, जिसे 1920 में विखंडित कर दिया गया था।
ब्रिटिश भारतीय सेना ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यूरोपीय, भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अपने अनेक डिवीजनों और स्वतन्त्र ब्रिगेडों का योगदान दिया था। दस लाख भारतीय सैनिकों ने विदेशों में अपनी सेवाएं दी थीं, जिनमें से 62,000 सैनिक मारे गए थे और अन्य 67,000 घायल हो गए थे। युद्ध के दौरान कुल मिलाकर 74,187 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना का गठन कर इसके सात अभियान बलों को विदेशों में भेजा गया था, जिनमें पहले अभियान बल के तहत 7वें मेरठ डिवीजन को भी शामिल किया गया था तथा मार्च 1915 में न्यूवे चैपल (Neuve Chapelle) की लड़ाई में हमले का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। नए उपकरणों के साथ परिचितता की कमी से अभियान बल को युद्ध करने में बाधा उत्पन्न हुई।
वे महाद्वीपीय मौसम के आदी नहीं थे और इसलिए ठंड को सहने में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा, जिस वजह से उनके मनोबल में कमी आयी। मनोबल में कमी आने से कई सैनिक लड़ाई के क्षेत्र से भाग गए और डिवीजन को अंततः अक्टूबर 1915 में मेसोपोटामिया भेजा गया, जहां उन्हें किचनर की सेना के नए ब्रिटिश डिवीजनों द्वारा बदल दिया गया। जर्मनों को रोकने के लिए लाहौर और मेरठ डिवीजनों को पश्चिमी मोर्चे (यूरोप में) पर रखा गया था। भारत द्वारा पुरुषों और युद्ध सामग्रियों के रूप में बहुत योगदान दिया गया। यहां के सैनिकों द्वारा दुनिया भर के कई युद्ध क्षेत्रों में सेवा दी गयी जिनमें फ्रांस और बेल्जियम, अरब, पूर्वी अफ्रीका, गैलीपोली, मिस्र, मेसोपोटामिया, फिलिस्तीन, फारस, रूस और यहां तक कि चीन भी शामिल हैं। युद्ध के अंत तक 11,00,000 भारतीय सैनिकों में से 75,000 सैनिक शहीद हो गये थे।