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हालांकि, भारत में चीता विलुप्त हो चुका है, लेकिन कई वर्षों पहले ऐसा नहीं था। यहां चीतों की अत्यधिक संख्या मौजूद थी। 'चीता' शब्द संस्कृत के शब्द चित्रका से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'चित्तीदार'। एशियाई चीता के शुरुआती दृश्य प्रमाण खरवई और खैराबाद और मध्य प्रदेश में ऊपरी चंबल घाटी के गुफा चित्रों में पाए जाते हैं, जो 2500 से 2300 ईसा पूर्व के हैं। 1935 में, जर्नल ऑफ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Journal of Bombay Natural History Society) द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका ने चीते की तत्कालीन सीमा के बारे में बताया था। उसमें लिखा गया था कि, यह बंगाल से लेकर संयुक्त प्रांत, पंजाब और राजपुताना, मध्य भारत से दक्कन तक में विचरण करता था। 1700 और 1800 के दशक में चीतों का इतना अंधाधुंध शिकार किया गया, कि अंत में यह भारत से विलुप्त हो गया। अंतिम एशियाई चीता को 1947 में वर्तमान छत्तीसगढ़ की कोरिया रियासत (koriya province) के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव द्वारा मारा गया था। बिल्ली जैसे दिखने वाले इस जीव को वश में करना बहुत आसान था। इसलिए इसे जानवरों के पीछे दौड़ने और उनका शिकार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। इसलिए इन्हें शिकार जैसे खेलों में उपयोग करने के लिए बड़ी संख्या में पकड़ा गया। चीतों को कैद में रखना लगभग असंभव था, इसलिए वे खुद को कैद में अनुकूलित नहीं कर पाते थे। बंदी चीताओं को पालना बहुत ही दुर्लभ था, किन्तु 1613 में, सम्राट जहाँगीर (Jahangir) ने चीतों को पालकर औपचारिक रूप से 20 वीं शताब्दी तक की पहली और एकमात्र मिसाल दर्ज की थी। खेल के लिए इन्हें पालतू रूप से पालने की बात मानसोलासा (Manasollasa) में उल्लेखित की गयी थी, जो 12 वीं शताब्दी में कल्याणी के राजा सोमेश्वर तृतीय की दरबार की गतिविधियों का वृतांत थी।
माना जाता है, कि सम्राट अकबर (Akbar) ने 16 वीं शताब्दी में अपने 49 साल के शासनकाल के दौरान शाही राजघराने के लिए 9,000 चीते पाले थे। आखिरकार, 18 वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में, जंगलों से चीतों विशेष रूप से शावकों को निकालने से इनकी संख्या बहुत कम हो गयी। जब अंग्रेजों ने भारत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली, तब चीतों की संख्या में और भी अधिक गिरावट आने लगी। ब्रिटिश (British) काल की समाप्ति तक इनकी संख्या बहुत ही कम रह गयी। प्रारंभिक 20 वीं सदी में चीतों की संख्या केवल कुछ हजार ही रह गयी थी। सर्वोच्च न्यायालय से अनुमति मिल जाने के बाद अब यह उम्मीद की जा रही है कि, लंबे समय के बाद भारत में चीते को देख पाना सम्भव होगा।