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देखा गया है कि कोरोना वायरस से संक्रमित पांच में से चार लोगों में सूंघने की क्षमता पहले के मुकाबले में कम
हो गई है या पूरी तरह से खत्म हो गई है। न्यूरोलॉजिकल (Neurologically) रूप से यह हमारी सबसे मौलिक
संवेदना है। गंध हमारी नाक के रिसेप्टर्स (Receptors) के माध्यम से दिमाग को ट्रिगर (Trigger) करती है जिससे
तुरंत हमारी स्मृति या भावना सक्रिय हो जाती है और हमारा शरीर प्रतिक्रिया करता है। सूंघने की शक्ति कम होने
से व्यक्ति के जीवन पर असर पड़ता है। सूंघने की शक्ति कम होने से पीड़ित व्यक्ति खाने की सुगंध नहीं ले पाते
और धीरे-धीरे उनकी खाने की तरफ दिलचस्पी कम होती चली जाती है। इससे उनका वजन कम हो सकता है या वे
कुपोषण के शिकार हो सकते हैं, जो कि कोविड के दौरान हानिकारक है।महामारी के दौरान इस समस्या को गंभीरता
से लिया गया है। हम सभी ने अब यह महसूस किया है कि एक स्वस्थ गंध हमारे स्वभाव में निहित है और हमारी
भलाई के लिए आवश्यक है।
इस शहरीकरण ने हमारी सूंघने की क्षमता को भी हानि पहुंचाई है। गंध लेना हमारी एक संवेदना हैं। हजारों वर्षों में
क्रमिक विकास ने शायद ही इस संवेदना पर कोई प्रभाव डाला हो, परंतु बढ़ते शहरीकरण, प्रदूषण और
औद्योगीकरण ने हमारी सूंघने की क्षमता को प्रभावित किया है। सूंघने की क्षमता से ही हमारे शरीर में कई क्रियाएं
है जो गंध से ही सक्रिय होती है जैसे कि स्वादिष्ट खाने की खुशबू से ही भूख लग जाना, धूम्रपान या कोई दुर्गंध
आते ही उस स्थान से हट जाना आदि। लेकिन जब हमें कुछ भी सूंघाई नहीं देता हैं, तो हमें कुछ भी महसूस नहीं
होता और हमारा शरीर गंध के प्रति प्रतिक्रिया करने में विफल हो जाता हैं।यही कारण है कि शहरीकरण की वजह
से लोगों की घटती सूंघने की क्षमता एक चिंताजनक विषय बन गया है। अलास्का विश्वविद्यालय (University of
Alaska) के जैव मानवविज्ञानी (Bioanthropologist) कारा हूवर (Kara Hoover) कहते हैं कि शहरों में फैला
प्रदूषण हमारी सूंघने की क्षमता को कम कर देता है, आपका वातावरण जितना अधिक शहरी होगा, आपकी गंध की
संवेदना उतनी ही कम होगी। हमारी दुनिया तेजी से शहरीकरण और औद्योगीकरण से प्रदूषित होती जा रही है।
वर्तमान में शहरों में रहने वाले बच्चों की सूंघने की क्षमता उनके दादा-दादी की तुलना में कम होती है। हूवर का
मानना है कि पर्यावरणीय कारकों के कारण गंध की हमारी इंद्रियां एक स्पेक्ट्रम (Spectrum) पर समाप्त हो
सकती हैं, और उनका यह शोध घनी आबादी वाले क्षेत्रों में महक के अनुभव की विविधता पर केंद्रित है।
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