दुनिया भर में कीड़े मकोड़ों से बने खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ रही है

तितलियाँ और कीट
30-06-2021 10:10 AM
दुनिया भर में कीड़े मकोड़ों से बने खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ रही है

इस बात में कोई दो-राय नहीं कि, हमारा पर्यावरण अनेक कारणों से निरंतर नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है। परंतु यह जानना भी जरूरी है कि, आम लोगों में पर्यावरण पर मानवीय कारणों से पड़ने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही है। लोग दूध, डेयरी उत्पाद, अंडे और मांस जैसे पशु उत्पादों के वैकल्पिक आहार तलाश रहे हैं। साथ ही धीरे-धीरे लोगों में शाकाहारी बनने के प्रति भी लोकप्रियता भी बढ़ रही है। लोकप्रियता की इसी मांग को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक विभिन्न प्रकार के कीड़ों जैसे लार्वा के मक्खन और कॉक्रोच से दूध का निर्माण कर रहे हैं। बेल्जियम (Belgium) में गेन्ट विश्वविद्यालय (University of Ghent) के वैज्ञानिक वफ़ल, केक और कुकीज़ में मक्खन के विकल्प के तौर पर लार्वा (larva) के साथ प्रयोग कर रहे हैं, उनका मानना है कि कीड़ों से ग्रीस का उपयोग डेयरी उत्पादों की तुलना में अधिक टिकाऊ है। इस प्रयोग के लिए शोधकर्ता मक्खी के लार्वा (काले सैनिक) को एक कटोरी पानी में भिगोते हैं, जिसके बाद इन्हे ब्लेंडर में डाला जाता है, जिससे यह लार्वा एक चिकनी ग्रेश बन जाते हैं। फिर कीट मक्खन को अलग करने के लिए एक रसोई अपकेंद्रित्र (Centrifuge) (एक यंत्र) का उपयोग किया जाता है और इस प्रकार मक्खी के लार्वा को स्वादिष्ट मक्खन में बदल दिया जाता है। शोधकर्ता कहते हैं कि, ऐसी सामग्री अधिक टिकाऊ होती है। साथ ही संग्रहण के नज़रिये से भी कीड़े कम भूमि क्षेत्र (मवेशियों की तुलना में) का उपयोग करते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, जब एक केक में मक्खन के एक चौथाई हिस्से को लार्वा वसा से बदल दिया जाता है, तो उपभोक्ताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु यदि दोनों को 50-50 प्रतिशत रखा जाय, तो उन्हें स्वाद असामान्य सा प्रतीत होता है। कीट से निर्मित भोजन में उच्च स्तर के प्रोटीन, विटामिन, फाइबर और खनिज होते हैं ,और साथ ही वैज्ञानिक इसे पशु उत्पादों तथा पर्यावरण के अनुकूल और सस्ते विकल्प के रूप में देख रहे हैं। वर्तमान हालातों को देखकर भविष्य के लिए दूध के भी विकल्प की तलाश की जा रही है। अतः मक्खन सामान ही शोधकर्ता, तिलचट्टे (Cockroaches) से दूध बनाने की दिशा में भी अग्रसर हैं। 2016 की एक रिपोर्ट से यह स्पष्ट हुआ है की, प्रषान्तीय तिलचट्टे (Pacific beetle cockroaches) से पोषक तत्वों से भरे दूध के क्रिस्टल बनाए जा सकते हैं, जिसका प्रयोग निकट भविष्य में मनुष्यों द्वारा भी किया जायेगा। परन्तु एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार तिलचट्टे से निर्मित दूध का उत्पादन इतना भी आसान नहीं है, क्यों की 100 ग्राम दूध बनाने के लिए 1,000 तिलचट्टे लगते हैं। हालाँकि इनसे दूध की गोली बन सकती है। विश्व भर में कई दुकानों पर पहले ही स्वादिष्ट आइसक्रीम बनाने के लिए एंटोमिल्क (कीटों से बने दुग्ध उद्पाद) का उपयोग किया जाता है, इन्हे भविष्य का एक स्थायी, प्रकृति के अनुकूल, पौष्टिक, लैक्टोज़-मुक्त, स्वादिष्ट, अपराध-मुक्त डेयरी विकल्प के रूप देखा जा रहा है। दुनिया भर में पहले ही मनुष्यों द्वारा विभिन्न कीट प्रजातियों को प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों जैसे बर्गर पैटी, पास्ता, या स्नैक्स में एक घटक के रूप में प्रयोग किया जाता है। विश्व स्तर पर लगभग 1,000 से 2,000 के बीच कीट प्रजातियों का खाद्य के रूप में प्रयोग किया जाता है, इन प्रजातियों में 235 तितलियाँ और पतंगे, 344 भृंग (beetles), 313 चींटियाँ, मधुमक्खियाँ और ततैया, 239 टिड्डे, क्रिकेट और तिलचट्टे, 39 दीमक, और 20 ड्रैगनफलीज़ (dragonflies) शामिल हैं। कीड़ों में दूसरे मांस श्रोतों की तुलना में अधिक पोषक तत्व होते हैं, जैसे झींगुर (crickets) में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जिनके प्रोटीन की तुलना सोयाबीन से की जाती है। टिड्डियों में प्रत्येक 100 ग्राम कच्चे टिड्डे के लिए 8 से 20 मिलीग्राम आयरन होता है। और झींगुर में प्रत्येक 100 ग्राम में 12.9 ग्राम प्रोटीन, 121 कैलोरी और 5.5 ग्राम वसा होता है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि विभाग ने भविष्य में दुनिया भर में बढ़ते मध्यम वर्ग के लिए खाद्य पदार्थों के आभाव के समाधान के रूप में एंटोमोफैगी या खाने वाले कीड़ों को घोषित किया है। जैसे-जैसे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं समृद्ध और समृद्ध होती जाती हैं, उतनी ही प्रोटीन की मांग बढ़ती जाती है। 2050 तक विश्व की जनसंख्या नौ अरब तक पहुंचने का अनुमान है, अतः बढ़ती जनसंख्या में प्रोटीन की मांग को पूरा करतें हेतु कीटों को संभावित खाद्य माना जा रहा है, जिस कारण यह इनसे जुड़ा खाद्य व्यापार भविष्य में निश्चित तौर पर प्रगति करेगा। भारत में भी कीड़े हमेशा हमारी पाक परंपरा का हिस्सा रहे हैं। तमिलनाडु में ईसल से लेकर छत्तीसगढ़ के गोंड आदिवासियों द्वारा बनाई गई लाल-चींटी की चटनी तक। पूर्वोत्तर के बोडो लोगों के लिए, कीड़े उनके आहार का मुख्य आधार हैं, इनमे कैटरपिलर, दीमक, टिड्डे, क्रिकेट और भृंगप्रमुख हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/2U5FHHa
https://bit.ly/3doGpWJ
https://bit.ly/3dpkmPT
https://bit.ly/2SyQoBN
https://bit.ly/3x4mDI3
https://en.wikipedia.org/wiki/Insects_as_food

चित्र संदर्भ
1. घटक के रूप में प्रसंस्कृत क्रिकेट (झींगुर) के बने कीट ऊर्जा बार का एक चित्रण (wikimedia)
2. लार्वा से निर्मित बटर केक का एक चित्रण (indiatoday)
3. जर्मनी में स्ट्रीट फूड के रूप में पूरे, तले हुए खाद्य कीड़े का एक चित्रण (wikimedia)