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भारत में सर्कस मनोरंजन के सबसे मूलभूत साधनों में से एक रहा है। भारत में सड़कों पर सर्कस के प्रदर्शन
प्राचीन काल से किए जाते हैं, परंतु यहाँ पर आधुनिक सर्कस के पिता के रूप फ़िलिप एस्टली (Philip
Astley) को माना जाता है।1879 में जब पहली बार, इटालियन सर्कस के मुख्य संचालक ग्यूसेप चिआरिनी
(Giuseppe Chiarini) ने पहली बार भारत का दौरा किया, तब उन्होंने अपना शो शुरू होने से पहले कहा था
कि, भारत में एक भी संगठित और बेहतर सर्कस नहीं है, और इसे विकसित करने के लिए कई सालों तक
इंतज़ार करना होगा।
बंबई में उनके शो के दौरान कुरुंदवाड़ रियासत सांगली (आज का कोल्हापुर) के राजा
बालासाहेब पटवर्धन भी इसे देखने आए। बालासाहेब के साथ अस्तबल के रखवाले विष्णुपंत चत्रे थे, जिन्हे
घोड़ों को प्रशिक्षित करने का अनुभव भी था उन्होंने इटालियन सर्कस की चुनौती को स्वीकार किया, और
घोषणा की कि वह तीन महीने के भीतर कुरुंदवाड़ में भी ऐसा ही कुछ करके दिखलायेंगे। विष्णुपंत चत्रे ने सर्कस के अधिकांश उपकरण चिआरिनी से ही खरीदे, और एक साल के भीतर, उन्होंने ग्रेट
इंडियन सर्कस (Great Indian Circus) नामक एक नई सर्कस कंपनी बना दी, जो की भारत की पहली
सर्कस कंपनी बनी। इसके बाद ग्रेट इंडियन सर्कस ने भारत के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया (उसी स्थान
सहित जहाँ चियारीनी का प्रदर्शन बॉम्बे में आयोजित किया गया था) और श्रीलंका, सिंगापुर, कुआलालंपुर,
जकार्ता और जापान सहित अन्य स्थानों का दौरा भी किया।
कोलकाता में चियारिनी के सर्कस प्रसंग से प्रेरित होकर, 1887 में बंगाल से प्रियनाथ बोस ने ग्रेट बंगाल
सर्कस (Great Bengal Circus) की स्थापना की, और बंगाल सहित भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के दौरे
भी किये। 1901 में केरल सरकार ने कन्नूर के थालास्सेरी में एक सर्कस अकादमी (circus academy) शुरू
की। यह देश की पहली सरकारी सर्कस अकादमी थी।
यदि हम वर्तमान में सबसे बड़ी सर्कस आधारित मनोरंजन कंपनी की बात करें तो, सर्कस डु सोलिएल
(Cirque du Soleil): "सर्कस ऑफ़ द सन (Circus of the Sun)" या "सन सर्कस (Sun Circus)" का नाम
सबसे पहले आता है, जिसकी स्थापना बाई-सेंट-पॉल (Bai-Saint-Paul) में 16 जून 1984 को पूर्व सड़क
कलाकारों लालिबर्टे (Laliberte) और गाइल्स स्टी-क्रॉइक्स (Gilles Ste-Croix) द्वारा की गई थी। 1984
में इनका पहला आधिकारिक शो ले ग्रैंड टूर डु सर्क डू सोलेइल (Le Grand Tour du Cirque du Soleil)
सफल रहा, 1990 और 2000 के दशक में सर्क डू सोलेइल का तेजी से विस्तार हुआ और आज यह छह
महाद्वीपों के 300 से अधिक शहरों अपना प्रदर्शन कर रहे हैं। कंपनी ने 50 देशों के 4, 900 लोगों को
रोजगार भी प्रदान किया, और 2017 में लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक राजस्व भी अर्जित
किया।
यदि हम भारत में सर्कस की वर्तमान परिस्थियों की बात करें तो यह थोड़ी दयनीय नज़र आती है। उदाहरण
के लिए रेम्बो सर्कस (Rambo Circus) को ले सकते हैं, जो भारत में उन मुट्ठी भर सर्कस कंपनियों में से
एक है, जो वर्षों से इस क्षेत्र में अपनी सेवा दे रहे हैं। जिनके चमकीले कपड़े पहने उत्साही कलाकार, जोकर,
जिमनास्ट और निशानेबाज़ बारी-बारी से प्रदर्शन करते हैं, और उच्च परिशुद्धता संतुलन के साथ साहसी
कौशल का प्रदर्शन भी करते हैं। इन कलाकारों का कहना है कि "इन दिनों, हमें अपने शो के लिए मुश्किल से
400 से 600 आगंतुक (दर्शक) मिलते हैं। हालांकि वे तकनीक को साथ में लेकर काम करने के इच्छुक हैं,
परंतु गंभीर वित्तीय कमी के कारण यह संभव नहीं है। साथ ही सर्कस कंपनी चलाने के लिए प्रति दिन कुल
1.5 लाख रुपये की ज़रूरत है। वर्ल्ड सर्कस फेडरेशन (World Circus Federation) के सदस्य दिलीप कहते
हैं," भारत में सर्कस को न तो मान्यता दी जाती है, और न ही कलाकारों को उचित सम्मान दिया जाता है।
इसके विपरीत अन्य देशों में सर्कस को संस्कृति मंत्रालय के तहत माना जाता है। भारत में इसे मनोरंजन के
साधन के रूप में देखा जाता है। ऐसा कोई साझा मंच भी नहीं है, जहाँ सर्कस कंपनियाँ अपनी चिंताएँ व्यक्त
कर सकें। कई कलाकार बिना किसी आधुनिक रहने की सुविधा के, अस्थायी टेंटों में दयनीय परिस्थितियों
में रहते हैं, उनमें से कुछ अपने विस्तारित परिवारों के साथ भी रहते हैं।
हमारे शहर मेरठ का नौचंदी मेला सर्कस भी बेहद प्रसिद्ध है। हालाँकि नौचंदी मेला के सर्कस में भारत के
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2001 में भालू, बंदर और बड़ी बिल्लियों के उपयोग पर सरकारी प्रतिबंध लगा
दिया गया। ग्रेट रैम्बो सर्कस (Great Rambo Circus) के मैनेजर दिलशाद का कहना है कि, पिछले साल
नौचंदी में उन्हें 80 लाख रुपये का नुक़सान हुआ था। चूँकि पहले एक हाथी की उपस्थिति मात्र ही, सर्कस में
भारी भीड़ को आकर्षित करती थी। लेकिन अब कोई हमें देखने क्यों आएगा?
कई लोगों के चहरे पर मुस्कान लाने वाले जोकर, शेर, बाघ और हाथी जैसे जानवर जो रिंग मास्टर्स के
निर्देश पर प्रदर्शन करते हैं। जब से जानवरों को सर्कस से प्रतिबंधित किया गया है, कलाकार तंग रस्सी
साइकिल चलाने जैसे स्टंट करके अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। सर्कस के टिकटों की कीमतों में काफ़ी
गिरावट आई है दिलशाद ने कहा कि अगले साल सर्कस को बंद करने पर विचार कर रहे हैं।
वर्ष 2020 से कोरोनावायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने सभी की आजीविका को काफ़ी प्रभावित किया है।
लॉकडाउन ने सर्कस के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, क्योंकि शो के लिए कोई दर्शक नहीं मिल रहे हैं।
यह संभव है कि सर्कस अगली पीढ़ी के लिए एक इतिहास बन सकता है। सर्कस संचालकों के अनुसार,
लगभग 10 से 15 सर्कस कोरोनावायरस के कारण बंद हो गए और जो शेष बचे भी हैं, वे आर्थिक तंगी से
संघर्ष कर रहे हैं। ऊपर से मल्टीमीडिया के विकास ने सर्कस व्यवसाय को स्थगित करने में आग में घी का
काम किया है, क्योंकि अब बच्चों के पास उनके मनोरंजन के लिए बहुत सारे विकल्प हैं। भारत के सबसे
लोकप्रिय और सबसे पुराने सर्कस में से एक रेम्बो सर्कस, COVID-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ
है। हालाँकि अपने सदस्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए, इसने डिजिटल शो शुरू किए हैं। सर्कस
उद्योग को बचाये रखने के लिए वे कहते कि, सरकार को आर्थिक रूप से उनकी मदद करनी होगी। किसी ने
नहीं सोचा था कि यह बीमारी इतने लंबे समय तक परेशान करेगी। ऑनलाइन सर्कस दिखाना लंबे समय
तक संभव नहीं है, क्योंकि एक पूरा परिवार एक टिकट पर सर्कस देख लेता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3hZbqn6
https://bit.ly/3kGjevE
https://bit.ly/3kMgBbO
https://bit.ly/3x1yRAa
https://bit.ly/2UCvPW0
https://bit.ly/2TsSmE6
https://bit.ly/2Wfk88l
https://bit.ly/3rr7UVD
https://www.bbc.com/news/world-asia-india-52407534
चित्र संदर्भ
1. बंद पड़े सर्कस के बाहर दुखी जोकर का एक चित्रण (flickr)
2. ग्रेट बंगाल सर्कस पिरामिड एक्ट का एक चित्रण (wikimedia)
3. रेम्बो सर्कस (Rambo Circus) का एक चित्रण (youtube)
4. विदेशी कलाकारों का सर्कस के दौरान प्रस्तुत किया गया चित्रण (Wikimedia)