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स्ट्रॉबेरी (Strawberry) एक प्रसिद्ध समशीतोष्ण पौधा है, जिसका फल अपने चमकीले लाल रंग,
विशिष्ट सुगंध, रसदार बनावट और मिठास के लिए व्यापक रूप से पसंद किया जाता है। स्ट्रॉबेरी
अत्यधिक गर्मी वाले क्षेत्रों में नहीं उगती है, इसे दुनिया के उन क्षेत्रों में भी बढ़ने में भारी कठिनाई
होती है जहां इसके लिए आवश्यक जलवायु परिस्थितियां उपलब्ध नहीं होती है। उष्णकटिबंधीय और
उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए आवश्यक वातावरण प्रदान नहीं करते हैं, लेकिन मेरठ
में एक किसान ने अपनी 1 एकड़ भूमि को विभाजित करके अपनी सामान्य गन्ने की खेती के साथ
स्ट्रॉबेरी उगाना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। किसान
सेवाराम अपने चार सदस्यीय परिवार के साथ मेरठ के अमरपुर गांव में रहते हैं और गन्ने की खेती
करते हैं, जिससे उन्हें प्रति माह 10,000 रुपये तक का ही मुनाफा होता था। लेकिन अपने परिवार
के अस्तित्व को सुनिश्चित करना अब तेजी से चुनौतीपूर्ण होता जा रहा था। वे केवल एक गन्ना
किसान था, जो अपनी 1 एकड़ जमीन पर सीमित आय के साथ, अपना व अपने परिवार का पेट
भरने के लिए संघर्ष कर रहा था।
सेवाराम की दुर्दशा देखकर, एक दिन उसके एक दोस्त कुलदीप ने,
जो बगल में एक खेत का मालिक था, उसे स्ट्रॉबेरी उगाना शुरू करने का सुझाव दिया। सेवाराम ने
बताया कि, "कुलदीप ने अपने अनुभव का वर्णन मुट्ठी भर स्ट्राबेरी के साथ बाज़ार जाने और पैसे से
भरे सूटकेस के साथ लौटने के अनुभव के रूप में किया था।" सेवाराम बताते हैं कि, मुझे इस बात में
रूचि इसलिए थी, क्योंकि गन्ना कुछ हद तक इसके विपरीत था, जिसमें टन उपज के साथ एक ट्रक
को लोड करना, और तुलनात्मक रूप से कम के साथ वापस आना, इसके अलावा रिटर्न देर से आना
जैसी समस्याएं शामिल थी। एक गन्ना किसान उपज खरीदने के लिए चीनी कारखाने पर बहुत
अधिक निर्भर करता है, जिसके कारण फसल को बेचने में महीनों लग जाते हैं और कमाई के लिए
लंबा इंतजार करना पड़ता है। वहीं दूसरी ओर स्ट्रॉबेरी का उत्पादन टन में करने की आवश्यकता नहीं
है, कुछ सौ किलो भी बेहतर कीमत प्राप्त करने में सक्षम हैं। इसलिए सेवाराम ने फलों की फसल के
साथ प्रयोग करना शुरू किया। उन्होंने 2013 में, हिमाचल प्रदेश से 2 रुपये प्रति पौधे मंगवाए और
अपनी आधी एकड़ भूमि पर 1,500 पौधे रोपे।
सेवाराम बताते हैं कि, पहले साल रिटर्न प्रभावशाली रहा, लेकिन दूसरे वर्ष से पौधे संघर्ष करने लगे
और 2015 तक जीवित नहीं रहे। उन्होंने अपना सारा निवेश खो दिया और अगले दो वर्षों तक
स्ट्रॉबेरी की खेती नहीं कर पाए। अन्य किसानों के साथ अनुसंधान और चर्चा करने से सेवाराम को
पता चला कि हिमाचल प्रदेश से खरीदे गए पौधे पर्याप्त लचीले नहीं थे, इसलिए उत्तर प्रदेश के
मौसम की स्थिति के अनुकूल होने में विफल रहे। अन्य किसानों ने बताया कि महाराष्ट्र के
महाबलेश्वर के स्ट्रॉबेरी के पौधों में जीवित रहने की दर बेहतर साबित हुए थी। 2018 के आसपास,
सेवाराम ने महाबलेश्वर में एक नर्सरी से संपर्क किया और 12 रुपये प्रत्येक के लिए समान संख्या में
पौधे खरीदे। सेवाराम बताते हैं कि, "पौधे अच्छे से बढ़े, मैंने पौधों को खरीदने के साथ-साथ उनके
रखरखाव के अन्य खर्चों पर कुल 2.5 लाख रुपये खर्च किए, और जब मैंने पीक सीजन के दौरान
फसल को 500 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा, तो इससे मैंने 1.5 लाख रुपये का मुनाफा
कमाया।" उनका कहना है कि गन्ने से भी ज्यादा मीठी स्ट्रॉबेरी के कारण अब उनकी कमाई दोगुनी
होकर लगभग 20,000 रुपये प्रति माह हो गई।
वे आगे कहते हैं कि, "फसल उगाने के लिए
आवश्यक प्रयास भी कम थे, और पौधे अच्छी तरह से बढ़े और जीवित रहे। मैं आय से संतुष्ट हूं,
और अब मुझे नकदी आने के लिए महीनों इंतजार भी नहीं करना पड़ता।" जहां उन्हें लॉकडाउन के
दौरान और खराब मौसम के कारण नुकसान हुआ था वहीं अब उन्हें अच्छा रिटर्न मिल रहा है। शेष
आधा एकड़ में उगाए गए गन्ने से होने वाली आय ने उन्हें निवेश लागत को कवर करने में मदद की
और नुकसान के लिए एक सहारा प्रदान किया। सेवाराम कहते हैं कि "स्ट्रॉबेरी ने उन्हें गन्ने की
तुलना में अधिक मीठा लाभ दिया है। शुरू में मेरा परिवार थोड़ा आशंकित था क्योंकि हम हमेशा से
गन्ने की खेती में रहे हैं, लेकिन गन्ने की खेती में पैसा देर से आता है और इसमें जोखिम भी
शामिल है। अगर किसी को स्ट्रॉबेरी की खेती में रुचि है, तो वह इसे गन्ने के साथ कर सकता है।
स्ट्रॉबेरी दिसंबर में बोई जाती है और मार्च तक फल देती है और गन्ने को मार्च के बाद बोया जा
सकता है।"
भारत में स्ट्रॉबेरी अंग्रेजों (British) के आने से पहले से ही थी, लेकिन उसकी नस्ल छोटी और कम
उपज वाली थी, वे (North American) उत्तरी अमेरिकी और चिली बेरीज (Chilean berries) का
एक संकर लाए। यूरोप (Europe), एशिया (Asia) और भारत की पहाड़ियों में सदियों से जानी जाने
वाली स्ट्रॉबेरी, खेती के लिए बहुत छोटे और कम फल पैदा करने वाली थी। लेकिन इसमें रुचि तब
बढ़ी जब अमेरिका में स्ट्रॉबेरी की विभिन्न किस्मों की खोज की गई।
हाल ही में भारत सहित अन्य स्थानों में भी स्ट्रॉबेरी को बड़ी सफलता मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
के "मन की बात" (Mann Ki Baat) में, उन्होंने बुंदेलखंड के शुष्क क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी उगाने के लिए
झांसी की गुरलीन कौर के प्रयासों की सराहना की। गुरलीन ने स्ट्रॉबेरी को अपनी छत पर उगाया,
फिर उन्हें खेतों में ले गई और अब झांसी में स्ट्रॉबेरी का त्योहार है। पिछले साल दिसंबर में, टाइम्स
ऑफ इंडिया (Times of India) ने कच्छ के पास के रेगिस्तान में स्ट्रॉबेरी उगाए जाने की सूचना
दी थी।
हरेश ठाकर को महाराष्ट्र के लोनावला के स्ट्रॉबेरी के खेतों से 30,000 पौधे मिले, और उसी
महीने टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक अन्य युवा किसान, श्याम गांवकर पर भी रिपोर्ट की थी, जिसने
गोवा के सत्तारी तालुका की उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों में स्ट्रॉबेरी उगाई, जहां वे मिर्च के साथ-साथ
पनपती हैं।
स्ट्रॉबेरी की एक जापानी किस्म ओमाकेस बेरी (Omakase Berry) है, इन हाई-टेक
स्ट्रॉबेरी की कीमत प्रति टुकड़ा $ 5 और $ 6.25 के बीच है।
ओमाकेस बेरी, न्यू जर्सी (New
Jersey) स्थित कंपनी द्वारा उगाई जाने वाली एक किस्म है, जिसे ओशी (Oishii) कहा जाता है,
ये पूरी तरह से एक अलग स्ट्रॉबेरी होने का अनुभव कराती है, जिसे घर के अंदर उगाया जाता है।
इसकी सबसे खास बातों में से एक इसकी एकरूपता है और इसकी मीठी सुगन्ध इसकी उत्कृष्ट
विशेषताओं में से एक है। इसे विशेष रूप से "बहुत मजबूत सुगंध और उच्च मिठास स्तर" के लिए,
जापान में मौजूद 250 किस्मों में से चुना गया था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3Eu8J6q
https://bit.ly/3JUE1V3
https://bit.ly/3vA7deO
https://wapo.st/3rEx30f
चित्र संदर्भ
1.स्ट्रॉबेरी में छोटी बच्ची को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
2. टोकरी में रखी स्ट्रॉबेरी को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
3. कटे हुए स्ट्राबेरी के साथ स्ट्राबेरी किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. खेत में स्ट्रॉबेरी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)