बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी राष्ट्र कवि रबिन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं से प्रभावित फिल्मकार

दृष्टि II - अभिनय कला
07-05-2022 10:50 AM
बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी राष्ट्र कवि रबिन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं से प्रभावित फिल्मकार

7 मई, 1861, के कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्में, रबिन्द्रनाथ टैगोर को इतिहास का सबसे प्रतिभाशाली और आकर्षक व्यक्ति कहना बिल्कुल भी अतिशियोक्ति नहीं होगी! टैगोर, चित्रकारी, कविता और संगीत आदि अनेक बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी थे। इन सभी के साथ ही वह एक प्रखर उपन्यासकार भी रहे हैं। लेखन पर उनकी पकड़ का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं की 1913 में लंदन में प्रकाशित अपने संग्रह गीतांजलि के लिए 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर ने साहित्य का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) भी जीता। उनके बहुमुखी ज्ञान ने जाने-माने फिल्मकार सत्यजीत रे को भी उनका मुरीद बना दिया। चलिए एक नज़र डालते हैं, एक साहित्यकार के तौर पर रबिन्द्रनाथ टैगोर के असाधारण एवं प्रभावशाली सफ़र पर!
भारत के राष्ट्रगान की रचना के लिए व्यापक रूप से जाने जाने वाले, टैगोर एक कवि, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, सामाजिक सुधार और चित्रकार थे। उन्हें 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में बंगाली साहित्य और संगीत में क्रांतिकारी बदलावों के लिए भी जाना जाता है। भारतीय इतिहास में कई ऐसे फिल्म निर्माता रहे हैं, जिन्होंने रबिन्द्रनाथ टैगोर के काम को धार्मिक रूप में जाना और अपने अनुकूलित किया। लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने उनके कार्यों के सार को बनाए रखते हुए भी उनके काम को एक नई और अलग व्याख्या प्रदान की। सत्यजीत रे और तपन सिन्हा ऐसा करने वाले दो सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।
सत्यजीत रे ने अपनी कई फिल्मों के सार को व्यक्त करने के लिए न केवल रवींद्र संगीत का इस्तेमाल किया, बल्कि उन्होंने टैगोर की कुछ कहानियों को चार फिल्मों में रूपांतरित भी किया । 1961 में, रे द्वारा टैगोर की तीन लघु कथाओं - पोस्टमास्टर, मोनिहारा और समाप्ति पर तीन कन्या (तीन बेटियां) फ़िल्में भी बनाई गई। टैगोर की लघु कहानी नोशटोनिर (Noshtonir) पर आधारित चारुलता (1964) ने रे को बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (Berlin International Film Festival) में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए अपना दूसरा सिल्वर बियर प्रदान किया गया, जबकि 1984 में बने “घरे बैरे” ने उन्हें कान फिल्म समारोह (Cannes Film Festival) में गोल्डन पाम नामांकन (golden palm nomination) भी जीता। वहीं दूसरे फ़िल्मकार तपन सिन्हा द्वारा टैगोर की कृतियों पर आधारित चार फिल्मों, काबुलीवाला (1957) - जिसे 1961 में हेमेन गुप्ता द्वारा हिंदी में बनाया जाएगा - खुसुदिता पाशन (1960), अतिथि (1969) और कादम्बिनी (2001) की व्याख्या की गई। सिनेमा को एक ऐसा माध्यम माना जाता है जहां दृश्य, संगीत और बोले गए शब्दों का समामेलन करने के लिए अन्य कलाएं एक साथ जुड़ती हैं। टैगोर, साहित्य,पेंटिंग और संगीत में मास्टर थे, इस प्रकार वह न केवल सिनेमा में उनकी कहानियों के अनुकूलन माने जाते हैं, बल्कि उनके संगीत ने सिनेमा जगत को भी प्रेरित किया है।
फ़िल्मकार सत्यजीत रे, जिनका जन्म तब हुआ जब टैगोर 60 वर्ष के थे। हालांकि, कम ही लोग जानते हैं कि, टैगोर ने एक बार रे के लिए एक कविता भी लिखी थी, जब वह सिर्फ छह साल के थे। दरअसल बचपन में सत्यजीत रे की मां उन्हें टैगोर से मिलाने के लिए ले गई थी, और उस समय छह साल के सत्यजीत ने टैगोर का ऑटोग्राफ लेने के लिए अपने साथ एक छोटी नोटबुक भी रखी हुई थी। जब छोटे रे ने, टैगोर को नोटबुक सौंपी, तो उन्होंने वह रे को अगले दिन तक वापस नहीं की। लेकिन जब वे दोनों अगले दिन उत्तरायण पर फिर से मिले, तो रे को आखिरकार नोटबुक वापस मिल गई! किंतु उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब उन्हें टैगोर से सिर्फ एक ऑटोग्राफ ही नहीं मिला, बल्कि उन्होंने रे के लिए बंगाली में एक सुंदर कविता भी लिखी थी।
रे शांतिनिकेतन में टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती विश्वविद्यालय के छात्र भी रहे हैं। टैगोर की मृत्यु तक वे वहीं रहे, और बाद में दुनिया के सबसे सम्मानित फिल्म निर्माताओं में से एक बन गए। लगभग चार दशकों के अपने सिनेमाई करियर में, रे ने कई यादगार फिल्में और वृत्तचित्र बनाए। जिस वर्ष उनकी मृत्यु हुई थी, 1992 में उन्हें अकादमी मानद पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उनकी उल्लेखनीय रचनाओं में द अपु त्रयी (The Apu Trilogy), द म्यूजिक रूम (the music room), द बिग सिटी (the big city) और चारुलता शामिल हैं। टैगोर की रचनाओं में नौकाडुबी (1906), गोरा (1910), चतुरंगा (1916), घरे बैरे (1916), शेषर कोबिता (1929), जोगजोग (1929) और चार ओध्याय (1934) भी शामिल हैं। सत्यजीत रे द्वारा रबीन्द्रनाथ की रचनाओं, घरे बैरे या द होम एंड द वर्ल्ड (The Home and the World), किशोर कन्या, और चारुलता को भी फिल्म के रूप में रिलीज़ किया गया था। यह शानदार फ़िल्में टेगोर के विचारोंको आगे बढ़ाते हुए, भारतीयों के बीच बढ़ती राष्ट्रवादी भावना जैसे मुद्दों पर चर्चा करती हैं।

संदर्भ

https://bit.ly/3MZlZTQ
https://bit.ly/3LQXoAo
https://bit.ly/39IPhro
https://bit.ly/3FqKQxi

चित्र संदर्भ
1  सत्यजीत रे और रबीन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मदर्स वैक्स म्यूज़ियम, कलकत्ता में सत्यजीत रे की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विवाह के अवसर पर सत्यजीत रे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रबीन्द्रनाथ टैगोर की तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)