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तंबाकू की फसल पर उपकर को 2% से बढ़ाकर 4% करने के इस कदम पर नाराज उत्पादकों ने केंद्र से तंबाकू बोर्ड अधिनियम में संशोधन पर रोक लगाने का आग्रह किया है। उत्तर प्रदेश के कई किसान जिनके द्वारा पूर्व में चबाने और हुक्का तम्बाकू को उगाया जा रहा था, इस प्रस्ताव के बाद अब सरसों, कपास, फूलगोभी, टमाटर, मटर, आलू और मक्का उगाने लगे हैं।अन्य किसान भी तंबाकू की खेती छोड़ने को तैयार हैं यदि उन्हें वैकल्पिक नकदी फसल के लिए समर्थन उपलब्ध कराया जाता है।हालांकि विभिन्न प्रकार के चबाने वाला तंबाकू संपूर्ण भारत में उपलब्ध है, और इनको कई मशहूर हस्तियों (जो तंबाकू के दाग से बेदाग हैं) द्वारा भी प्रचारितकिया जाता है जिस वजह से यह एक बहु-अरब डॉलर का उद्योग बना हुआ है। तंबाकू के रंगीन पाउच, जो आमतौर पर सुपारी, मसाले, चीनी, चूने और अन्य स्वादों के साथ मिश्रित होते हैं, अनगिनत छोटी दुकानों पर खरीदे जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (Global Adult Tobacco Survey) के अनुसार, 33 प्रतिशत भारतीय पुरुष और 26 प्रतिशत भारतीय वयस्क गुटखा, पान मसाला, खैनी, जर्दा और अन्य किस्मों को चबाते हैं।लेकिन अनुसंधान से पता चलता है कि भारत में प्रति वर्ष मुंह के कैंसर के 80,000 नए मामले दर्ज होते हैं, जो राष्ट्रीय कैंसर के बोझ के 30 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं।हालांकि इस बढ़ते आंकड़ों के चलते सरकार द्वारा कुछ कदम उठाए गए हैं, जैसे 2016 में दिल्ली सरकार ने धुआं रहित तंबाकू की सभी बिक्री और कब्जे पर प्रतिबंध बढ़ा दिया और एक बड़े प्रवर्तन अभियान की घोषणा करी।दिल्ली द्वारा इस प्रतिबंध को लागू किया गया है, और सुप्रीम कोर्ट ने गुटखा नामक एक प्रकार के चबाने वाले तंबाकू पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की, हालांकि सभी राज्यों ने इसका पालन नहीं किया है।
भारत के मजदूर वर्ग में चबाने वाले तंबाकू का प्रयोग विशेष रूप से प्रचलित है। चाय की भांति ही हमेशा उपलब्ध प्याले की तरह, दिन भर के काम के दौरान तंबाकू चबाना एक सस्ता विकल्प है।जैसे कि सिगरेट अधिक महंगी हैं, और वे लंबे समय तक नहीं चलती हैं। चबाने वाले तंबाकू को मुंह में घंटों तक रखा जा सकता है।साथ ही इसे जब सुपारी के साथ मिलाया जाता है, तो यह किसी की लार को चमकदार लाल रंग का कर देने में सक्षम होती है, और समय के साथ,इससे एक व्यक्ति के दांत भी लाल हो जाते हैं, क्योंकि ये उन्हें धीरे-धीरे खराब कर देती है। भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार सिगरेट के पैकेट को स्वास्थ्य चेतावनियों से 80 प्रतिशत तक आवृत किया जाना चाहिए।धूम्रपान के नकारात्मक परिणामों के बारे में एक या दो पंक्तियों के अलावा, चेतावनियों में आम तौर पर काले फेफड़ों और कैंसर रोगियों की छवियां शामिल होती हैं। वर्तमान न्यूनतम आवरण पैकेट का 20 प्रतिशत है।भारत में, तम्बाकू का उपयोग धूम्रपान, चबाने, स्थानीय अनुप्रयोगों, पीने और गरारे करने जैसे विभिन्न रूपों में किया जाता है, जिससे हानिकारक स्वास्थ्य प्रभाव जैसे हृदय रोगों, मस्तिष्क वाहिकीय रोगों, श्वसन रोगों और कैंसर से मृत्यु दर में वृद्धि होती है, इसके अलावा हानिकारक प्रजनन परिणामों, दंत और मौखिक रोग होते हैं। किसी भी रूप में तम्बाकू का उपयोग निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों में अधिक लोकप्रिय है। पान-क्विड चबाना (सुपारी, बुझा हुआ चूना, कत्था, अन्य मसालों और पान में लपेटे गए मसालों का मिश्रण) एक लोकप्रिय, सामाजिक रूप से स्वीकृत, प्राचीन रिवाज है और तंबाकू की शुरूआत ने इस प्रथा को प्रबलित किया।चबाने वाले उत्पादों को पूरे दिन और कभी-कभी पूरी रात भी बुक्कल सल्कस (Buccal sulcus) या पाउच (Pouch) में रखा जाता है; आमतौर पर उत्तर भारत की आबादी में मुंह के आगे के हिस्से में, और दक्षिण भारतीयों में मुंह के पीछे के हिस्से में।भारत में सिगरेट पीना हमेशा से वर्जित रहा है और धुंआ रहित तंबाकू को सुविधाजनक रूप से कहीं भी ले जाने और इसके लंबे समय तक सही रहने और इसके आक्रामक विपणन के साथ प्रचारित होने से तंबाकू चबाने की आदत में अचानक नाटकीय वृद्धि हुई है, और यह वृद्धि केवल पुरुषों में ही नहीं,महिलाओं और बच्चों के बीच भी हुई है।
सुपारी और पान मसाला के कार्सिनोजेनिक (Carcinogenic) प्रभाव ने भारत में 83,000 मौखिक कैंसर की उच्चतम घटनाओं और 46,000 मृत्यु दर को जन्म दिया है।1995 में, दक्षिण भारत के त्रिवेंद्रम जिले में मौखिक कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने में मौखिक दृश्य निरीक्षण की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए एक समुदाय-आधारित यादृच्छिक मौखिक कैंसर जांच अध्ययन को लागू किया गया था।घरेलू दौरों के माध्यम से परिवारों की गणना, साक्षात्कार और मुंह के कैंसर की जांच की गई। मौखिक कैंसर और महत्वपूर्ण स्थिति की जानकारी सक्रिय घरेलू यात्राओं के माध्यम से और जनसंख्या-आधारित कैंसर पंजीकरण के साथ अभिलेखशृंखला के माध्यम से या मृत्यु की जानकारी के लिए सरकारी अभिलेख से एकत्र की गई थी।वहीं जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (Johns Hopkins Bloomberg School of Public Health) के सहयोग से भारत में मौजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, सरकार द्वारा लगाए गए गुटखे पर प्रतिबंध ने राज्य स्तरीय कानून उत्पाद की उपलब्धता और खपत में कमी को देखा गया है। सात राज्यों (असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उड़ीसा) और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में किए गए अध्ययन से पता चला है कि अध्ययन किए गए क्षेत्राधिकारों में गुटखा प्रतिबंध का समर्थन बहुत अधिक (92%) है और लगभग सार्वभौमिक(99%) का मानना था गुटखा प्रतिबंध भारत के युवाओं के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।हालांकि, अध्ययन से पता चला कि अधिकांश उत्तरदाता तंबाकू खरीद रहे हैं और इसे जर्दा के साथ पान मसाला के एक पैकेट के साथ मिला रहे हैं। इस नवाचार ने प्रतिबंध के उद्देश्य और परिणामी प्रभाव पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। जिससे यह पता चलता है कि धूम्रपान रहित तंबाकू के उपयोग को संपूर्ण रूप से खत्म करने के लिए अभी कई अधिक कदमों को उठाने की आवश्यकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3PkFS9n
https://wapo.st/3yUjNr2
https://bit.ly/3B3bhJ4
https://bit.ly/3uZPvCc
चित्र संदर्भ
1. तम्बाकू पर प्रतिबन्ध को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. भारत में गुटखा स्ट्रीट वेंडर, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. तम्बाकू से हुए मुंह के कैंसर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मई 2013 तक भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में तंबाकू पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)