भारत का सुंदर पहाड़ी राज्य कश्मीर अपनी प्राकृतिक ख़ूबसूरती के साथ-साथ केसर की खेती के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। केसर नाम की उत्पत्ति अरबी शब्द ज़ाफ़रान से हुई है जिसका अर्थ “पीला” होता है। दुनिया के सबसे महंगे मसालों में से एक केसर को "लाल सोना" भी कहा जाता है। इसका इतिहास 3500 से अधिक वर्षों पुराना बताया जाता है। रोमनों (Romans) ने इसे डियोडराइज़र (Deodorizer) के रूप में इस्तेमाल किया, मिस्र के चिकित्सकों ने इसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल या पेट की बीमारियों (Gastrointestinal Ailments) के इलाज के लिए इस्तेमाल किया और ऐसा कहा जाता है कि क्लियोपेट्रा सभ्यता (Cleopatra Civilization) कॉस्मेटिक उत्पादों के लिए केसर का इस्तेमाल करती थी। यह एक ऐसा मसाला है जो क्रोकस सैटिवस (Crocus Sativus) पौधे के बैंगनी फूलों के वर्तिकाग्र से निर्मित होता है। प्रत्येक फूल में तीन वर्तिकाग्र होते हैं, जिन्हें हाथ से चुना जाता है और फिर मसाला बनाने के लिए सुखाया जाता है। एक ग्राम केसर के उत्पादन में हजारों फूलों की आवश्यकता होती है। क्रोकेटिन की सामग्री के कारण स्टिग्मा / वर्तिकाग्र आमतौर पर नारंगी-लाल रंग के होते हैं। कश्मीर में केसर की खेती के तहत कुल 5,707 हेक्टेयर भूमि में से 90 प्रतिशत से अधिक भूमि दक्षिण कश्मीर में पुलवामा जिले की पंपोर तहसील में संरक्षित है, जबकि शेष खेती मध्य कश्मीर के बडगाम और श्रीनगर जिलों में की जाती है। अपनी विशेष सुगंध के लिए जाना जाने वाला केसर एक शक्तिशाली स्वाद और रंग एजेंट है। आइए एक नजर डालते हैं कश्मीर में इसकी कटाई के दौरान ।