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                                              भारत को उत्सवों और त्यौहारों का देश माना जाता है! सनातन, विश्व में एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जहां आपको साल के लगभग हर दिन उत्सव मनाने  और स्वादिष्ट व्यंजन खाने का अवसर मिल ही जाता है। ऐसे में हर त्यौहार और उससे संबंधित देवता  को समर्पित व्यंजन या पकवान भी अलग-अलग होते है। क्या आप जानना चाहते हैं कि किसी भी देवता को कोई व्यंजन क्यों अर्पित किया जाता है? 
भारतीय संस्कृति में भोजन कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है। योग-शास्त्र के अनुसार, हमारे शरीर को अन्न कोष कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि हमारे शरीर के अंदर मांस, भोजन (अन्न) से बनता है। यह अवधारणा सभी जीवित प्राणियों पर लागू होती है, क्योंकि उन्हें अपने शरीर को बनाए रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन के लिए पौधे सूरज की रोशनी, पानी और पांच प्रमुख तत्वों  (पंचमहाभूतों) का उपभोग करते हैं। पशु इन पौधों को खाते हैं, और मनुष्य, पौधों तथा जानवरों, दोनों को खाते हैं। जीवन को बनाए रखने के लिए खाने की यह भोजन श्रृंखला अति आवश्यक हैं।
उपनिषदों में भोजन को विशेष महत्व दिया गया है, क्योंकि इसके बिना संसार का अस्तित्व ही नहीं हो सकता। धार्मिक लेखों में यह वर्णित है कि “अन्न ही सत्य है," साधारण शब्दों में जिसका अर्थ है “भोजन सत्य" है। धार्मिक लेखों में भोजन पर इतना अधिक ध्यान देना इसके अस्तित्व की अहमियत को दर्शाता है। सनातन संस्कृति में भोजन को दिव्य और भोजन करने  की क्रिया कोएक दिव्य अनुभव माना जाता है ।
जब देवताओं को प्रसाद चढ़ाने की बात आती है, तो दूध तथा फल आमतौर पर देवताओं के पसंदीदा भोग माने जाते हैं। वैदिक ग्रंथों के अनुसार, धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान, दूध और इसके उप-उत्पाद, जैसे घी, माखन एवं दही आदि अग्नि को अर्पित किए जाते हैं, जो देवताओं तक पहुंचते हैं। फलों का प्रसाद , देवता के आधार पर अलग-अलग होता है। खट्टे फल, देवी माँ को अर्पित किए जाते हैं, जबकि मीठे फल भगवान विष्णु को चढ़ाए जाते हैं। वहीं सूखे मेवे भगवान शिव से जुड़े हुए हैं। 
भगवान शिव और विष्णु की भोजन प्राथमिकताएं भी अलग-अलग हैं। शिव को एक योगी या त्यागी के रूप में दर्शाया जाता है, इसलिए उन्हें कच्चा दूध  चढ़ाते  है। दूसरी ओर, भगवान विष्णु एक गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हैं, और इसलिए उनका प्रसाद भी स्वादिष्ट होता है। उन्हें पका हुआ भोजन अर्पित किया जाता है, क्योंकि यह कड़ी मेहनत का प्रतिनिधित्व करता है। अन्नकूट उत्सव के दौरान, एक गृहस्थ के जीवन में भोजन के महत्व को दर्शाने के लिए भगवान कृष्ण को भोजन के रूप में छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
जब प्रसाद की बात आती है तो देवी-देवताओं की प्राथमिकताएँ भी विशिष्ट होती हैं। उदाहरण के तौर पर, परंपरागत रूप से, माँ काली को जानवरों की बलि के द्वारा रक्त चढ़ाया जाता था , जो रक्त के साथ उनके जुड़ाव का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, आधुनिक समय में, पशु अधिकारों के कारण ऐसी प्रथाओं में गिरावट आई है। भागवत पुराण में बताया गया है कि भूदेवी विष्णु से कहती हैं कि लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं और वह उनका खून पीना चाहती हैं। दरअसल, मान्यता है कि रामायण और महाभारत में हुए युद्धों के पीछे का गुप्त कारण भी भूदेवी की यही प्यास है। अधर्म और अनैतिकता के अपने चरम पर पहुंचने पर देवी इन का नाश करने के लिए युद्ध के रूप में रक्त की आहुति प्राप्त करती है ।
धन की देवी लक्ष्मी की एक बहन, कलह की देवी, अलक्ष्मी है।मान्यता है कि जब यह दोनों बहनें एक साथ घर में प्रवेश करती हैं तो अलक्ष्मी को प्रसाद के रूप में एक नींबू और सात मिर्च दहलीज के ऊपर लटका कर घर के बाहर ही भोग लगाया जाना चाहिए,,  जिससे वह घर के बाहर रह सके। घर के अंदर लक्ष्मी को आमंत्रित करने के लिए मीठा भोग लगाया जाता है। रामायण और महाभारत की कई किवदंतियां भी प्रसाद के महत्व पर प्रकाश डालती हैं। एक किवदंती के अनुसार, अपनी उदारता के लिए जानी जाने वाली द्रौपदी भी उस समय मुश्किल में पड़ गई, जब एक बार कई ऋषि भोजन की तलाश में अचानक उनके द्वार पर आ पहुंचे। उस समय द्रौपदी के पास उन्हें खिलाने के लिए भोजन कम पड़ गया, जिसके बाद उन्होंने श्री कृष्ण से मदद करने का आग्रह किया! माना जाता है कि इसके बाद श्री कृष्ण ने चमत्कारिक रूप से चावल के मात्र एक दाने से सभी ऋषियों की भूख को शांत कर दिया। 
 भारत में देवताओं को पान चढ़ाना भी एक देवीय परंपरा है। इसे जीवन में समृद्धि और संतोष लाने का एक उपाय माना जाता है। विवाहित देवताओं को पान और सुपारी अर्पित की जाती है, जो एक सुखी गृहस्थ जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। धन की देवी ‘माता लक्ष्मी’ को अक्सर विष्णु को पान चढ़ाते हुए दर्शाया जाता है, जो आनंद, विलासिता और सफलता का प्रतीक है। 
वही ‘श्रीफल’ भी भगवान के प्रिय होते हैं, जो कि ऐसे फल होते हैं जो पूरे वर्ष आसानी से उपलब्ध हो,  जैसे कि नारियल या केले । इन फलों को अनंत धन और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है। चावल को भी कभी-कभी श्रीफल के रूप में जाना जाता है, और इसका उपयोग अनुष्ठानों में किया जाता है जहां कलश के नीचे चावल फैलाए जाते हैं और कलश के मुख पर समृद्धि के प्रतीक नारियल को रखा जाता है  ।
आइए भारतीय पौराणिक कथाओं में वर्णित भोजन या प्रसाद के कुछ अन्य उदाहरणों को देखते हैं -
1.  माखन मिश्री: जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण को भोग के रूप में माखन मिश्री अर्पित की जाती है। ऐसी मान्यता है कि एक बालक के रूप में भगवान कृष्ण मक्खन चुराते थे, जिससे उन्हें ‘माखन चोर’ उपनाम मिला।
2.  मोदक: गणेश चतुर्थी के दौरान तैयार की जाने वाली यहलोकप्रिय मिठाई देवी पार्वती ने अपने पुत्र भगवान गणेश के लिए बनायी थी  , जिन्हें यह मीठा व्यंजन अत्यंत प्रिय था।
3. ठंडाई: यह पेय भगवान शिव को समर्पित महा शिवरात्रि के त्यौहार से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान विष पीने के बाद अपने गले को शांत करने के लिए ठंडाई का ही सेवन किया था।
4.बेर या जोजोबा: महाकाव्य रामायण में, भगवान राम की परम भक्त शबरी को हम सभी जानते हैं। शबरी ने प्रभु श्री राम को प्रत्येक बेर स्वयं चखकर ही खिलाया क्योकि वह उन्हें केवल सबसे मीठा बेर देना चाहती थी। वह बेचारी इस बात से भी अनजान थी कि प्रसाद को जूठा नहीं करना चाहिए। किंतु शबरी की भक्ति से भाव विभोर प्रभु श्री राम ने भी इन झूठे बेरों को उतनी ही विनम्रता से ग्रहण किया ।
5. शहद: दुर्गा सप्तशती के एक अध्याय में राक्षस महिषासुर से देवी दुर्गा के युद्ध का वर्णन मिलता है। यह उल्लेख किया जाता है कि देवी दुर्गा राक्षस का वध करने से पहले शहद पीती हैं।
6. अनार: रामायण में अनार का वर्णन भी मिलता है। रामायण में एक अध्याय है जहां पवन पुत्र हनुमान बचपन में गलती से सूर्य को अनार समझकर निगल जाते हैं।
7. मोहनथाल: आपने इस व्यंजन का नाम अवश्य ही सुना होगा क्योंकि यह एक पारंपरिक भारतीय मिठाई है जो मुख्य रूप से बेसन, घी और चीनी से बनाई जाती है। यह मिठाई श्री कृष्ण से जुड़ी हुई है और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव के दौरान खूब चाव से परोसी एवं खाई जाती है। ‘मोहनथाल’ नाम ‘मोहन’ और ‘थाल’ शब्दों के संयोजन से बना है, जिसमें मोहन शब्द भगवान कृष्ण के लिए एक विशेषण है, और थाल शब्द उस थाली को संदर्भित करता है जिस पर मिठाई परोसी जाती है। मोहनथाल भारत के ब्रज, राजस्थान और गुजरात क्षेत्रों में बनने वाला एक लोकप्रिय व्यंजन है। भारतीय उपमहाद्वीप में अन्य मिठाइयों की तरह, मोहनथाल को दिवाली और कृष्ण जन्माष्टमी जैसे धार्मिक त्योहारों के अवसर पर खूब पसंद किया जाता है, और इसे मंदिरों में प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है।
 
 
संदर्भ  
https://rb.gy/n771b 
https://rb.gy/1ipy5 
https://rb.gy/6hs23 
 
 चित्र संदर्भ 
1. लक्ष्मी पूजा के प्रसाद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
2. कन्या पूजन के दौरान प्रसाद ग्रहण करती छोटी बच्ची को दर्शाता चित्रण (flickr) 
3. शिव लिंग के समक्ष रखे गए प्रसाद को दर्शाता चित्रण (flickr) 
4. सत्य नारायण पूजा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
5. माखन मिश्री को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
6. मोदकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
7. ठंडाई को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
8. बेर या जोजोबा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
9. शहद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
10. अनार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 
11. मोहनथाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)